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नई दिल्ली: मुस्लिम समाज की आर्थिक और शैक्षिक बदहाली की पृष्ठभूमि में भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त डॉ एसवाई कुरैशी ने कहा कि मुस्लिम लड़के अपने माता पिता का सहारा बनने के लिए पढ़ाई बीच में छोड़ देते हैं।
उन्होंने दिल्ली यूथ वेलफेयर असोसिएशन के पुरस्कार वितरण समारोह में कल कहा कि मुस्लिम समाज में लड़कियां शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। अच्छे पदों पर पहुंच रही हैं। लेकिन लड़कों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। वे अपने माता पिता का सहारा बनने के लिए पढ़ाई बीच में छोड़कर रोजगार की तलाश में जुट जाते हैं या अपना विरासती काम करने लगते हैं। हमें इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
इस कार्यक्रम में कक्षा दसवीं और 12वीं में 85 फीसदी से ज्यादा नंबर हासिल करने वाले पुरानी दिल्ली के तमाम सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों के 109 छात्र छात्राओं को पुरस्कृत किया गया। इसके अलावा बच्चों की शिक्षा में मांओं की भूमिका को सराहते हुए 10 छात्र छात्राओं की मांओं को भी सम्मानित किया गया।
बच्चों की शिक्षा में मांओं की भूमिका स्वीकार करते हुए पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि बच्चों की शिक्षा में सबसे अहम किरदार उसके माता-पिता का होता है। इसलिए माता-पिता की भी हौसला अफजाई करनी जरूरी है। हिमालय ड्रग कंपनी के निदेशक डॉ सैयद फारूक ने कहा कि शिक्षा तीन प्रकार की होती है जो अभिव्यक्त की कला, रहन-सहन का सलीका और कमाने का सलीका सिखाती है। जहां रहने का सलीका नहीं होता वहां जहालत होती है। उन्होंने कहा कि कई बार हम पढ़ लिख तो लेते हैं लेकिन हमारा जिंदगी बसर करने का तरीका नहीं बदलता है।