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नई दिल्ली: क्या कभी आपने सोचा है कि क्रिकेट के मैदान पर भारत के मुस्लिम खिलाड़ी नमाज क्यों नहीं पढ़ते? सिर्फ पाकिस्तान के ही खिलाड़ी स्टेडियम में हजारों लोगों के बीच नमाज क्यों पढ़ते हैं? यहां तक कि भारत की टीम में खेलने वाले दूसरे धर्मों के खिलाड़ियों को भी अपने धर्म का इस तरह से प्रदर्शन करते हुए नहीं देखा होगा. पाकिस्तान की टीम अपनी हर जीत को इस्लाम की जीत बताती है और हर मैच को एक धर्म युद्ध की तरह खेलती है. तो क्या हम ये मान लें कि इस्लाम के नाम पर आतंकवाद फैलाने वाला पाकिस्तान, अब क्रिकेट के नाम पर भी जेहाद कर रहा है? और इसीलिए वो अपनी हर जीत को इस्लाम की जीत बताता है.
कल जब भारतीय टीम के पूर्व खिलाड़ी मोहम्मद कैफ मेरे साथ इसी शो में थे, तब मैंने उनसे यही सवाल पूछा था कि क्या भारत के किसी मुस्लिम खिलाड़ी ने कभी मैदान पर नमाज पढ़ी है? जैसे पाकिस्तान के खिलाड़ी पढ़ते हैं. इस पर उनका जवाब ये था कि वो इसे बहुत निजी मानते हैं और उन्होंने भारतीय टीम के लिए खेलते हुए कभी ऐसा नहीं किया. आज आपको ये बताएंगे कि मैदान पर नमाज पढ़ना क्रिकेट जेहाद कैसे है?
मैदान पर पाकिस्तानी खिलाड़ियों द्वारा नमाज पढ़ना असल में एक तरह का जिहाद ही है, जिसे आप क्रिकेट जिहाद भी कह सकते हैं. जेहाद अरबी भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ है दीन-ए-हक यानी इस्लाम धर्म को मानने से इनकार करने वालों से जंग करना या उनके खिलाफ संघर्ष की शुरुआत करना. यानी जेहाद उस युद्ध की घोषणा है, जिसमें इस्लाम धर्म के विस्तार के लिए सबकुछ जायज है. हालांकि हम ऐसा नहीं कह रहे सभी मुसलमान ऐसा सोचते हैं. ये सोच केवल उन कट्टरपंथियों की है, जो खेल को भी धर्म का मैच बनाना चाहते हैं.
ऐसा माना जाता है कि विभाजन के बाद 1950 और 1960 के दशक में किसी भी खेल के दौरान पाकिस्तानी खिलाड़ी मैदान पर नमाज नहीं पढ़ते थे. इसकी पहली बार शुरुआत वर्ष 1978 में हुई, जब Asian Games के हॉकी फाइनल में भारत और पाकिस्तान की टीमों के बीच मुकाबला हुआ. इस मुकाबले में पाकिस्तान ने भारत को एक जीरो से हरा दिया था और इस जीत के बाद उसके कुछ खिलाड़ियों ने मैदान पर सजदा किया था और नमाज पढ़ी थी. उस समय ये पूरी दुनिया के लिए एक नई घटना थी. क्योंकि इस तरह से कभी किसी देश ने पाकिस्तान के खिलाड़ियों को मैदान पर नमाज पढ़ते हुए नहीं देखा था. लेकिन इसे विडम्बना ही कहेंगे कि तब इस घटना पर चर्चा तो हुई लेकिन किसी देश ने इसका विरोध नहीं किया.
ये इत्तेफाक ही था कि इसी साल दो दशकों के बाद भारत की क्रिकेट टीम, पाकिस्तान के दौरे पर टेस्ट सीरीज खेलने गई थी और हम ये सीरीज हार गए थे, जैसा कि किसी भी खेल में होता है. एक टीम जीतती है और एक हारती है. लेकिन इस जीत के बाद पाकिस्तान के कप्तान मुश्ताक मोहम्मद ने अपने एक बयान में कहा था कि ये पूरी दुनिया में मुसलमानों की हिन्दुओं पर जीत है. सोचिए, एक खेल की जीत हार, धर्म की जीत हार कैसे हो सकती है.
1970 के दशक का ये वही दौर था, जब पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक सैन्य तख्तापलट के बाद वहां के राष्ट्रपति बने थे. 1978 से 1988 तक वो पाकिस्तान के हेड ऑफ स्टेट रहे और उनके कार्यकाल में इस्लाम धर्म को अलग-अलग तरीकों से दुनिया के बीच रखा जाने लगा. जैसे खिलाड़ियों ने बात-बात में अल्लाह और इंशाल्लाह कहना शुरू कर दिया और मैदान पर जीत के बाद नमाज पढ़ी जाने लगीं. और इस तरह खेल को जेहाद का रूप दे दिया गया.
भारत के पूर्व राजदूत और पाकिस्तान में भारत के हाई कमिश्नर रहे जी. पार्थसारथी ने एक बार वर्ष 1982 की घटना का जिक्र करते हुए बताया था कि उस समय पाकिस्तान के मौजूदा प्रधानमंत्री और पूर्व क्रिकेटर इमरान खान से जब ये पूछा गया कि उनके लिए खेल का मतलब क्या है तो उन्होंने इसके जवाब में कहा था कि वो भारत के साथ क्रिकेट मैच को एक खेल की तरह नहीं देखते, बल्कि उनके लिए ये एक जेहाद है, जो वो कश्मीर के लिए कर रहे हैं. यानी पाकिस्तान के मौजूदा प्रधानमंत्री भारत के साथ क्रिकेट मैच को कश्मीर जिहाद मानते थे. ये बात इमरान खान ने पाकिस्तान के एक पत्रकार को बताई थी और उस पत्रकार ने जी. पार्थसारथी को इसकी जानकारी दी थी.
क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारत और पाकिस्तान के बीच पहली बार मुकाबला वर्ष 1992 में खेला गया था और उस वक्त इमरान खान की कप्तानी में पाकिस्तान की क्रिकेट टीम भारत से मैच हार गई थी. हालांकि बाद के मैचों में उसने शानदार प्रदर्शन किया और पाकिस्तान की टीम फाइनल में पहुंच गई, जहां उसका मैच इंग्लैंड से हुआ. जब इंग्लैंड फाइनल में हार गई तो पाकिस्तान के तीन खिलाड़ियों ने मैदान पर नमाज पढ़ी थी. ये तीन खिलाड़ी थे- आमिर सोहेल, मोइन खान और रमीज राजा. रमीज राजा आज पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष हैं.
हालांकि एक ऐसा समय भी था, जब PCB के ही एक अध्यक्ष ने पाकिस्तान टीम के एक पूर्व कप्तान को इस्लाम धर्म और क्रिकेट के बीच संतुलन बना कर रखने की सलाह दे दी थी. ये बात वर्ष 2006 की है और उस समय पाकिस्तान के कप्तान इंजमाम उल हक थे, जिन पर ये आरोप लगे थे कि वो अपने टीम के खिलाड़ियों पर रोजाना नमाज पढ़ने के लिए दबाव बना रहे हैं. तब पाकिस्तान के खिलाड़ियों को ऐसा लगने लगा था कि अगर उन्होंने नमाज नहीं पढ़ी तो उन्हें टीम से बाहर कर दिया जाएगा.
इस घटना से एक साल पहले वर्ष 2005 में पाकिस्तान के इकलौते ईसाई धर्म के खिलाड़ी यूसुफ युहाना ने इस्लाम धर्म अपना लिया था और अपना नाम बदल कर मोहम्मद युसफ कर लिया था. इस धर्म परिवर्तन के बाद वो पहले से काफी अलग नजर आने लगे थे. धर्म बदलना किसी का भी निजी मामला हो सकता है और हमें इस पर कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन सवाल तब उठने लगे जब युसुफ योहाना से मोहम्मद युसुफ बने इस पाकिस्तानी खिलाड़ी ने दूसरे देशों के क्रिकेटर्स का धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश की.
खुद इंजमाम उल हक ने ये बताया था कि कराची में एक टेस्ट मैच के बाद मोहम्मद युसुफ ने वेस्टइंडीज के महान खिलाड़ी Brian Lara को अपने घर दावत पर बुलाया था और वहां उन्हें इस्लाम धर्म अपनाने का सुझाव दिया था. यही नहीं मोहम्मद युसुफ ने भी इस्लाम धर्म का महिमामंडन करने के लिए एक बार ये बयान दिया था कि जब से उन्होंने इस्लाम धर्म अपनाया है, तब से उनका Batting Average डबल हो गया है.
2006 में जब मोहम्मद युसुफ इंग्लैंड दौरे पर गए, तब टीम के साथ ग्राउंड पर नमाज पढ़ने की भी उनकी एक तस्वीर सामने आई थी. इस तस्वीर को भी आज आप देख सकते हैं और समझ सकते हैं कि क्रिकेट के मैदान पर पाकिस्तानी खिलाड़ियों द्वारा नमाज पढ़ने की ये परम्परा नई नहीं है. हालांकि इसका एक बड़ा कारण International Cricket Council यानी ICC भी है. ICC के Code of Conduct में ये तो लिखा है कि क्रिकेट के खेल के दौरान कोई भी टीम या खिलाड़ी किसी भी तरह का राजनीतिक और धार्मिक संदेश नहीं दे सकती. लेकिन इसमें धार्मिक प्रार्थना और संकेतों को लेकर कुछ स्पष्टता नहीं है. यानी नियमों में खामी की वजह से पाकिस्तान के खिलाड़ी ऐसा करते हैं और इस पर कभी कोई विवाद नहीं होता.
यहां जो बात आज आपको समझनी है, वो ये कि मुसलमान खिलाड़ी सिर्फ पाकिस्तान की टीम में नहीं हैं. भारत की क्रिकेट टीम में भी इस्लाम धर्म को मानने वाले खिलाड़ियों का लम्बा इतिहास रहा है. लेकिन हमारे देश में खेल को हमेशा खेल के चश्मे से ही देखा गया है, ना कि इसे धर्म से जोड़ने की कोशिश हुई है. और आप हमारी इस बात को कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं.
भारतीय क्रिकेट टीम के एक, दो या तीन नहीं, बल्कि चार-चार मुस्लिम खिलाड़ी कप्तान रह चुके हैं. इनमें मोहम्मद अजहरुद्दीन के बारे में तो आप सबको पता होगा. लेकिन बहुत कम लोग ये जानते हैं कि वर्ष 1962 में मंसूर अली खान पटौदी भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान बने थे और तब उनकी उम्र सिर्फ 21 साल थी. वो उस समय के पूरी दुनिया के सबसे कम उम्र के कप्तान थे. और सबसे बड़ी बात ये उपलब्धि उन्होंने धर्म के आधार पर नहीं बल्कि अपनी प्रतिभा के आधार पर इस देश में हासिल की थी. उनके पिता इफ्तिखार अली खान पटौदी तो भारतीय क्रिकेट टीम के पहले ऐसे कप्तान थे, जो मुसलमान थे. वो क्रिकेट ही नहीं भारतीय हॉकी टीम का भी हिस्सा रहे.
भारत को आजाद हुए जब एक वर्ष ही हुआ था और विभाजन के बाद देश में हिन्दु-मुसलमान के मुद्दे पर बहस छिड़ी थी, उस समय भी टीम में गुलाम अहमद नाम के खिलाड़ी का चयन हुआ, जो बाद में भारतीय टीम के कप्तान भी बने. इसके अलावा जहीर खान, इरफान पठान और सबा करीम जैसे कई बड़े खिलाड़ी भारतीय टीम का हिस्सा रहे, लेकिन इनमें से किसी भी खिलाड़ी ने कभी मैदान पर ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे खेल का मैदान, धर्म का मैदान बन जाए. इससे आप भारत और पाकिस्तान के मुसलमान खिलाड़ियों में अंतर को समझ सकते हैं.
अब हम अपने इस विश्लेषण की एक गुगली डालने वाले हैं. और वो गुगली ये है कि एक बार सोच कर देखिए अगर T-20 वर्ल्ड कप का फाइनल भारत और पाकिस्तान के बीच खेला गया तो फिर क्या होगा? ये वर्ल्ड कप का फाइनल नहीं बल्कि वर्ल्ड वॉर का फाइनल मैच बन जाएगा और इसमें खेल से बड़ा होगा धर्म. क्रिकेट के खेल में गुगली उस डिलीवरी को कहा जाता है, जिसमें बॉल पड़ने के बाद उल्टी दिशा में घूम जाती है. और इस T-20 वर्ल्प कप में भी कुछ ऐसा होता हुआ ही दिख रहा है.
भारत की तरह न्यूजीलैंड की क्रिकेट टीम भी अपना पहला मैच पाकिस्तान से हार चुकी है. और अब दोनों टीमों के बीच दूसरा मैच 31 अक्टूबर यानी इस रविवार का होना है. अगर इस मैच में भारत की टीम न्यूजीलैंड को हरा देती है तो इस बात की पूरी सम्भावना है कि वर्ल्ड कप में न्यूजीलैंड का सफर यहीं पर खत्म हो जाएगा. क्योंकि भारत को इसके बाद तीन और मैच खेलने होंगे, जिसमें उसका मुकाबला अफगानिस्तान, स्कॉटलैंड और नामीबिया से है. ये तीनों ही टीमें भारतीय टीम के सामने काफी कमजोर हैं और ऐसी उम्मीद है कि भारत ये तीनों मैच तो आसानी से जीत ही जाएगा.
और अगर ऐसा हो गया तो दूसरे ग्रुप से भारत और पाकिस्तान की टीमें ही Semifinal Qualify करेंगी, जहां उनका मैच पहले ग्रुप की टॉप टू टीमों से होगा. सरल शब्दों में कहें तो भारत-पाकिस्तान के बीच अब अगला मैच वर्ल्ड कप के फाइनल में ही हो सकता है और अगर ऐसा हुआ तो ये अब तक का सबसे बड़ा मुकाबला होगा. और शायद Viewership के मामलें में भी ये मैच कई नए कीर्तिमान बना दे.
2019 के वनडे वर्ल्ड कप में भारत-पाकिस्तान का मैच टीवी पर साढ़े 27 करोड़ लोगों ने देखा था. जबकि 5 करोड़ लोग ऐसे थे, जिन्होंने डिजिटल माध्यम से इस मैच का लाइव प्रसारण देखा. इस हिसाब से इस मैच की टोटल Viewership 32 करोड़ के आसपास थी. ये आंकड़ा कितना बड़ा है इसे आप इस बात से समझ सकते हैं कि अमेरिका की कुल आबादी 32 से 33 करोड़ है. आप ये तो गारंटी से कह सकते हैं कि अगर वर्ल्ड कप का फाइनल भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ तो इससे ICC, BCCI और पाकिस्तान के क्रिकेट बोर्ड को काफी मुनाफा होगा. हालांकि इस मैच में जितना पैसा बरसेगा, उतनी ही नफरत ही नफरत भी बरसेगी.
क्योंकि ये धर्म का मैच बन जाएगा. ये हिन्दू Vs मुसलमान का मैच बन जाएगा और ये World Cup का नहीं, बल्कि World War के फाइनल मैच जैसा होगा. क्योंकि क्रिकेट जेहाद के लिए पाकिस्तान को इससे बड़ा कोई और मंच नहीं मिल सकता. और सबसे बड़ी बात अगर पाकिस्तान की टीम भारत से फाइनल हार गई तो शायद उनके खिलाड़ियों के लिए अपने देश पाकिस्तान जाना भी मुश्किल हो जाएगा.
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां आपको कई विविधताएं मिल जाएंगी. यहां आपको पाकिस्तान की जीत पर पटाखे फोड़ने वाले भी मिल जाएंगे और आपको भारत की हार पर टीवी फोड़ने वाले भी मिल जाएंगे. लेकिन पाकिस्तान में ऐसा नहीं है. पाकिस्तान के लिए भारत से मैच, मैच नहीं बल्कि धर्म युद्ध है, जिसमें पाकिस्तान की टीम इस्लाम को जीतते हुए देखना चाहती है. इसलिए आज 14 नवम्बर को खेले जाने वाले फाइनल का ये पूर्वानुमान हमने आपको पहले ही बता दिया है ताकि आप इस मैच के लिए तैयार हो जाएं.
देश के ज्यादातर राज्यों में शुक्रवार के दिन खुले में नमाज पढ़ी जाती है और इसकी वजह से पार्कों को बन्द कर दिया जाता है. सड़कों को बन्द कर दिया जाता है. ट्रैफिक रोक दिया जाता है और कई जगहों पर तो ट्रेन, अस्पताल और रिहायशी इलाको में भी नमाज़ पढ़ी जाती है, जिससे लोगों को काफी परेशानी होती है.
ये हाल तब है जब इंडोनेशिया की 8 लाख मस्जिदों के बाद भारत में सबसे ज्यादा 3 लाख मस्जिदें हैं. हालांकि कुछ रिपोर्ट ऐसी भी हैं, जो ये बताती हैं कि दुनिया में सबसे ज्यादा मस्जिदें इंडोनेशिया में नहीं, बल्कि भारत में हैं. लेकिन जो बात आपको सोचनी है वो ये कि लाखों मस्जिदें होते हुए भी हमारे देश में खुले में नमाज पढ़ी जाती है. पूरी दुनिया में 27 देश ऐसे हैं, जिनका राष्ट्र धर्म इस्लाम है. लेकिन इसके बावजूद इन देशों में भी इतने बड़े पैमाने पर खुले में नमाज नहीं पढ़ी जाती. सऊदी अरब में तो ये नियम है कि वहां गाड़ी रोकर कर कोई व्यक्ति नमाज नहीं पढ़ सकता.
अब सोचिए अगर भारत में ऐसा कोई नियम बन गया तो क्या होगा? पिछले दिनों इंडोनेशिया में ये फैसला लिया गया था कि वहां लोगों को होने वाली परेशानियों को देखते हुए मस्जिदों पर लगे लाउस्पीकर की आवाज को कम रखा जाएगा. क्या भारत में इस तरह के फैसलों की कल्पना की जा सकती है. जवाब है नहीं. आज हमने इस मुद्दे पर आपके लिए एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है, जो आपको उन लोगों की तकलीफ के बारे में बताएगी, जो खुले में नमाज की वजह से काफी परेशान होते हैं. और बड़ा सवाल यही है कि क्या इन लोगों के संवैधानिक अधिकार नहीं हैं?
हालांकि धर्म का ये मैच क्रिकेट के किसी ग्राउंड तक सीमित नहीं है. स्थान और स्थिति के हिसाब से इसके स्वरूप जरूर बदल जाते हैं लेकिन सवाल वहीं रहते हैं. और इसे आप हमारी इस खबर से समझ सकते हैं. आपको याद होगा 27 अक्टूबर को हमने आपको देश की राजधानी दिल्ली के पास गुरुग्राम से एक खबर दिखाई थी, जहां स्थानीय लोग खुले में नमाज पढ़ने का विरोध कर रहे थे. और आज फिर से गुरुग्राम में इसी मुद्दे पर जबरदस्त हंगामा हुआ.
गुरुग्राम के सेक्टर 12 में आज सरकारी जमीन पर सामूहिक रूप से जुम्मे की नमाज पढ़ी गई, जिसके बाद वहां आसपास रहने वाले लोग सड़कों पर उतर आए. इनमें वो मुसलमान भी थे, जिन्हें प्रशासन ने नमाज की वजह से दुकानें खाली करने का आदेश दे दिया है. गुरुग्राम में खुद प्रशासन द्वारा ऐसी 37 जगह चिन्हित की गई हैं, जहां मुस्लिम समुदाय के लोग शुक्रवार को जुम्मे की नमाज पढ़ सकते हैं. और ये जगह भी इन्हीं में से एक है.
इसलिए आपके मन में भी ये सवाल हो सकता है कि जब जगह प्रशासन ने दी है तो फिर विरोध क्यों हो रहा है. दरअसल, स्थानीय लोगों का कहना है कि अकेले इसी शहर में कुल 22 बड़ी मस्जिदें हैं, लेकिन इसके बावजूद बड़ी संख्या में लोग सड़कों और पार्कों को घेर कर नमाज पढ़ते हैं, जिससे उन्हें काफी परेशानी होती है.