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नई दिल्ली: 11 मई को ही राजस्थान के एक छोटे से गांव पोखरण में दोपहर तीन बजकर 45 मिनट पर परमाणु परीक्षण (Pokhran Nuclear Test) किया गया था. उस समय भारत में हुए परमाणु परीक्षण की गूंज ने कई देशों को हिला दिया था. ये देश हैरान थे कि भारत ने ये कैसे मुमकिन कर दिखाया. तब पश्चिमी देशों ने भारत के इस कदम को दुस्साहस माना. इसके बाद अमेरिका ने भारत पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे और यूरोप ने भी परमाणु परीक्षण के लिए भारत की आलोचना की थी. लेकिन भारत ने इन सभी आलोचनाओं को किनारे रखते हुए 13 मई को फिर से पोखरण में दो और परमाणु परीक्षण किए.
11 मई से 13 मई के बीच कुल 5 परमाणु परीक्षण पोखरण की धरती पर किए गए और भारत दुनिया का छठा Nuclear Power वाला देश बन गया. ये हमारे देश के लिए ऐतिहासिक क्षण था और इसी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 11 मई को यानी आज ही के दिन National Technology Day मनाने का ऐलान किया. इसलिए आज हम इतिहास के पन्नों को पलट कर पोखरण की कहानी आपसे शेयर करना चाहते हैं. इस कहानी को शेयर करने के पीछे आज हमारा एक विचार भी है.
आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत Nuclear Power वाला देश तो 47 साल पहले ही वर्ष 1974 में बन गया था लेकिन इस शक्ति को अर्जित करने के बाद भी वो कभी पश्चिमी देशों के Elite Group में शामिल नहीं हो पाया. हमारा देश आज भी परमाणु शक्ति के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए संघर्ष कर रहा है. भारत को अब तक Nuclear Suppliers Group में शामिल नहीं किया गया है. कूटनीति का खेल देखिए कि परमाणु बम बनाना तो आसान है लेकिन परमाणु शक्ति का इस्तेमाल विकास और शांतिपूर्ण कार्यों के लिए करना मुश्किल है.
पश्चिमी देशों ने भारत को हमेशा कम करके आंका है. इन देशों को लगता है कि भारत अपनी रक्षा के लिए हथियार भी उनसे खरीदे, दवाइयां और वैक्सीन भी उनसे खरीदे, अपने लोगों का पेट भरने के लिए लोन के लिए इन पर निर्भर रहे और खबरों के लिए भी पूरी तरह इन्हीं पर निर्भर हो जाएं क्योंकि ये शक्तिशाली और आर्थिक रूप से सम्पन्न देश हैं. भारत को लेकर पश्चिमी देशों का नजरिया हमेशा से ऐसा रहा है कि हम उस चीज के लिए उनके सामने हाथ फैलाएं, जो हमारे लिए जरूरी है और जिन पर इन देशों का प्रभुत्व है. आज भी ऐसा ही हो रहा है और पहले भी ऐसा ही होता आया है. लेकिन पोखरण की कहानी हमें बताती है कि भारत कभी भी इन देशों के नजरिए से बंधा नहीं रहा.
भारत ने बनाई खास रणनीति
पोखरण में परमाणु परीक्षण के लिए तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने गुप्त और कुशल रणनीति तैयार की थी और परमाणु परीक्षण की जिम्मेदारी Department of Atomic Energy के पूर्व अध्यक्ष आर. चिदंबरम, DRDO के निदेशक और पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर ए.पी.जे अब्दुल कलाम और न्यूक्लियर साइंटिस्ट अनिल काकोडर को सौंपी गई थी. भारत को इससे पहले वर्ष 1995 में परमाणु परीक्षण कार्यक्रम के लिए रोका जा चुका था क्योंकि तब अमेरिका को इसकी सूचना मिल गई थी. इसीलिए 1998 में इसे लेकर अलग रणनीति अपनाई गई. तय हुआ कि सभी वैज्ञानिक और इंजीनियर परीक्षण वाली जगह पर सेना की वर्दी में ही जाएंगे.
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CIA के सैटेलाइट से बचने का बनाया प्लान
दिलचस्प बात ये है कि उस समय जिन वैज्ञानिक का वजन ज्यादा था या जो काफी अनफिट या उम्रदराज दिखते थे, उन्हें वहां नहीं भेजने का फैसला किया गया. ऐसा इसलिए किया गया ताकि वैज्ञानिकों को जवानों के बीच आसानी से पहचाना ना जा सके और इसका असर परमाणु कार्यक्रम पर ना पड़े. इस दौरान जब आर. चिदंबरम, डॉक्टर कलाम और दूसरे न्यूक्लियर साइंटिस्ट पोखरण जाते थे तो उन्हें भी सेना की वर्दी पहननी होती थी. वो बंकरों में रह कर योजना पर काम करते थे. इसी तरह अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA के सैटेलाइट से बचने के लिए तब वैज्ञानिकों ने अद्भुत रणनीति बनाई थी. उन्होंने ये जानकारी जुटा ली थी कि किस समय अमेरिका का सैटेलाइट भारत पर नजर रख रहा होता है. इसलिए दिन के समय वैज्ञानिक सेना के जवानों की तरह रहते थे, और रात के समय परमाणु परीक्षण में जुट जाते थे.
तब भी सड़कों पर था विदेशी मीडिया
इन तमाम कोशिशों के बाद ही 11 मई और 13 मई को हमारा देश पोखरण में परमाणु परीक्षण कर पाया था. यहां एक दिलचस्प जानकारी ये है कि जिस तरह से आज पश्चिमी देशों का मीडिया भारत के अस्पतालों और जलती चिताओं की रिपोर्टिंग कर रहा है, उस समय भी यही मीडिया दिल्ली की सड़कों पर घूम रहा था. तब उन्हें ऐसे लोगों की तलाश थी जो इस परमाणु परीक्षण के विरोध में प्रदर्शन करें लेकिन तब पश्चिमी मीडिया को इसमें कामयाबी नहीं मिली. लोग सरकार के साथ थे लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण पहलू ये भी है कि तब इस पर राजनीति भी खूब हुई थी. जैसे कि आज कोरोना वायरस पर हो रही है.
जमकर हुई थी राजनीति
उस समय सोनिया गांधी ने कहा था कि 'Real strength lies in restraint, not in the display of shakti'. यानी असली शक्ति संयम में है न कि शक्ति के प्रदर्शन में है. सोनिया गांधी का ये बयान वाजपेयी सरकार पर सीधा हमला था क्योंकि उस समय परमाणु परीक्षण को सरकार ने ऑपरेशन शक्ति नाम दिया था. इसके अलावा वामपंथी दलों ने तत्कालीन सरकार से परमाणु कार्यक्रम को बिना देरी के रोकने की मांग की थी और CPI-ML के एक नेता ने तो तब इसे हिन्दू बम बता दिया था.
दलाई लामा ने किया था समर्थन
सोचिए उस समय परमाणु कार्यक्रम का भी साम्प्रदायिकरण कर दिया गया था हालांकि बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा, जिन्हें दुनिया शांति का दूत मानती है, उन्होंने उस समय वाजपेयी सरकार को पत्र लिख कर उसका समर्थन किया था. उनका कहना था कि कुछ देश परमाणु हथियार रखें और कुछ नहीं. ये सही नहीं है. ये अलोकतांत्रिक है. बड़ी बात ये है कि जैसी राजनीति आज से 23 वर्ष पहले देश में होती थी, वैसी ही राजनीति आज भी है. आज भी आप विपक्ष को इसी तरह की भूमिका में पाएंगे. लेकिन हमारा मानना है कि कोई भी राजनीति देश से ऊपर नहीं होती.
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नहीं भूलनी चाहिए पोखरण की कहानी
सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि आपको पोखरण की ये कहानी भूलनी नहीं चाहिए, क्योंकि ये कहानी हमें याद दिलाती है कि पश्चिमी देश भारत को किस रूप में देखते हैं. इसलिए 23 वर्ष पुराने इन ऐतिहासिक पलों को हमने अपनी एक रिपोर्ट में जोड़ने की कोशिश की है. और हम चाहते हैं कि आज आप इस रिपोर्ट को ना सिर्फ पढ़ें बल्कि इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर भी करें.
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