Himachal Pradesh के Baddi में प्रदूषणा पर NGT सख्त, किया इस कमेटी का गठन
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Himachal Pradesh के Baddi में प्रदूषणा पर NGT सख्त, किया इस कमेटी का गठन

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने हिमाचल प्रदेश के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) को सिरसा नदी में प्रदूषण के लिए कड़ी फटकार लगाई है.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने हिमाचल प्रदेश के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) को सिरसा नदी में प्रदूषण के लिए कड़ी फटकार लगाई है. NGT ने कहा कि राज्य के बद्दी क्षेत्र में फार्मास्युटिकल यूनिट्स से निकलने वाले जहरीले इंडस्ट्रियल अपशिष्टों के डिस्चार्ज को सिरसा (Sirsa) नदी में डिस्चार्ज किए जाने से रोकने में बोर्ड बुरी तरह विफल रहा है. 

  1. बद्दी में नहीं किया जा नियमों का पालन
  2. भूमिगत जल में मिला रहे हैं केमिकल
  3. एक्शन के लिए NGT ने बनाई कमेटी

NGT की प्रिंसिपल बेंच ने 23 जून को सुनाए आदेश में कहा कि इस तरह की विफलता सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण की सुरक्षा की के लिए बड़ा खतरा है. 

बद्दी में नहीं किया जा नियमों का पालन

NGT में पेश की गई SPCB की रिपोर्ट में कहा गया है कि बद्दी में औद्योगिक अपशिष्टों (इंडस्ट्रियल एफ़्फ़ुलेंट्स) के ट्रीटमेंट के लिए बने कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (CEPB) मानदंडों को पूरा नहीं कर रहा है. वह सही ट्रीटमेंट किए बिना अपशिष्ट(वेस्ट) का नदी में डिस्चार्ज कर रहा है. साथ ही ऐंटीबायटिक दवाओं की वेस्टेज के ट्रीटमेंट के तय पैमाने के बराबर नहीं हैं. 

रिपोर्ट में कहा गया है कि सिप्रोफ्लोक्सासिन और ओफ़्लॉक्सासिन जैसे अवशिष्ट एंटीबायोटिक दवाओं की कॉन्सेंट्रेशन 1,139 और 348 गुना थी. यह पर्यावरण मंत्रालय (MoEFCC) की ओर से अधिसूचित मसौदा मानकों से अधिक थी. कई स्थानों से लिए गए नमूने सतह के पानी और उप-जल में एंटीबायोटिक डिस्चार्ज दिखाते हैं. यह मनुष्यों और जानवरों के बीच हानिकारक एंटीबायोटिक प्रतिरोध पैदा कर सकता है और घातक साबित होने के साथ-साथ बीमारियों से ठीक होने की संभावना को कम कर सकता है.

भूमिगत जल में मिला रहे हैं केमिकल

रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा प्रतीत होता है कि प्रदूषणकारी एंटीबायोटिक दवाओं की पूरी मात्रा सतह और भूमिगत जल में पाइप डालकर छोड़ी जा रही है, जो चिंताजनक है. इसके अलावा, चूंकि नालागढ़ और बरोटीवाला में स्थित दवा इकाइयाँ सीईटीपी से जुड़ी नहीं हैं. वे अपने अपशिष्टों को सीधे नदियों में बहा रहे थे.

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एनजीटी ने इस तथ्य पर सख्ती से ध्यान दिया कि बोर्ड के अधिकारियों ने पर्यावरण मंत्रालय की आड़ लेकर अपनी करतूत को सही ठहराने की कोशिश की थी. अफसरों ने दावा किया था कि MoFECC ने अवशिष्ट एंटीबायोटिक दवाओं के मानकों को संशोधित नहीं किया था. इसके बाद ट्राइब्यूनल ने बोर्ड को जल अधिनियम की धारा 17 के तहत मानक निर्धारित करने का निर्देश दिया. उसने मंत्रालय को इन मानकों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में तेजी लाने का भी निर्देश दिया.

एक्शन के लिए NGT ने बनाई कमेटी

NGT ने मंत्रालय के एक नामित अधिकारी, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, एसपीसीबी और जिला मजिस्ट्रेट की एक संयुक्त समिति बनाकर इस मामले में तीन महीने के भीतर कार्रवाई कर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया. ट्राइब्यूनल ने कहा कि रिपोर्ट में सीईटीपी से जुड़ी फार्मा इकाइयों की संख्या और अपशिष्टों को सीधे नाले और नदी में छोड़ने और सिरसा- सतलुज नदियों की जैविक गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले कारकों पर भी ध्यान में रखा जाएगा.

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