प्रमुख मुस्लिम महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा था कि, मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ दिलाने का मकसद तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक प्रस्तावित कानून में निकाह हलाला, बहुविवाह और बच्चों के संरक्षण जैसे मुद्दे को शामिल नहीं किया जाता.
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नई दिल्लीः मुस्लिम महिलाओं के निकाह हलाला और बहुविवाह को लेकर दाखिल पुरानी याचिका पर जल्द सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय से कहा है कि अभी जल्द संविधान पीठ के गठन की संभावना नहीं है. गौरतलब है कि तीन तलाक पर सुनवाई समाप्त करते हुए पांच न्यायाधीशों वाली पीठ ने इन मुद्दों को खुला रखा था. निकाह हलाला और बहुविवाह पर सुप्रीम कोर्ट में चार याचिकाएं दाखिल की गई हैं. प्रमुख मुस्लिम महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा था कि, मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ दिलाने का मकसद तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक प्रस्तावित कानून में निकाह हलाला, बहुविवाह और बच्चों के संरक्षण जैसे मुद्दे को शामिल नहीं किया जाता.
नफीसा खान सहित चार याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इन दोनों प्रथाओं पर रोक लगाने और इन्हें असंवैधानिक करार दिए जाने की मांग की थी. याचिका में नफीसा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि आईपीसी की धाराएं सभी नागरिकों पर बराबरी से लागू होने चाहिए. उन्होंने कहा कि तीन तलाक आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता माना जाता है.
वहीं बहुविवाह को धारा 494 के तहत एक अपराध माना गया है. ऐसे में इन प्रथाओं पर रोक लगाई जानी चाहिए, क्योंकि कानून के तहत ये दोनों अपराध की श्रेणी में आते हैं. वहीं दिल्ली भाजपा के नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि, बहुविवाह और निकाल हलाला अनुच्छे-14 विधि के समक्ष समानता, (15) धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक और (21) (जीवन जीने का अधिकार) तथा लोक व्यवस्था, नैतिकता एवं स्वास्थ्य के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों के लिए नुकसानदेह है. ऐसे में इन प्रथाओं पर रोक लगाना चाहिए.
(इनपुट सुमित कुमार से भी)