Nitish Kumar PM Narendra Modi: नीतीश कुमार ने ट्वीट में खुशी तो जता दी है लेकिन उनका मन जानता होगा कि पीएम मोदी के एक ऐलान ने कैसे उनकी राजनीतिक टेंशन बढ़ा दी है. यह एक तरह से पैर से दरी खींच लेने जैसा है. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिया जाएगा.
Trending Photos
Bihar Politics: 'स्व. कर्पूरी ठाकुर जी को देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया जाना हार्दिक प्रसन्नता का विषय है... इसके लिए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को धन्यवाद.' पुराना ट्वीट डिलीट कर आधी रात पीएम को धन्यवाद कहते हुए फिर से लिखना सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की विडंबना को दिखाता है. जिस कर्पूरी ठाकुर की विरासत को बढ़ाने की बात पर बिहार की पार्टियों में रेस दिखाई देती है, मोदी सरकार या कहें भाजपा ने एक झटके में बाजी पलट दी. कल दोपहर तक कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाने को लेकर जेडीयू और बीजेपी में तनातनी देखी जा रही थी. एक ग्राउंड पर दो दावेदार खड़े थे, रात होते-होते सियासी गर्माहट ने पारा चढ़ा दिया. पिछले दो-तीन महीने के राजनीतिक घटनाक्रम को देखें तो समझ में आ जाएगा कि मोदी के एक फैसले ने कैसे नीतीश कुमार को भंवर में फंसा दिया है.
पूर्व मुख्यमंत्री और महान समाजवादी नेता स्व॰ कर्पूरी ठाकुर जी को देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया जाना हार्दिक प्रसन्नता का विषय है। केंद्र सरकार का यह अच्छा निर्णय है। स्व॰ कर्पूरी ठाकुर जी को उनकी 100वीं जयंती पर दिया जाने वाला यह सर्वोच्च सम्मान दलितों, वंचितों और…
— Nitish Kumar (@NitishKumar) January 23, 2024
...और दिल्ली दूर होती गई
हो सकता है कुछ लोग इसे 'ना इधर के, ना उधर के' वाली स्थिति भी कहें. 72 साल के नीतीश के बारे में कुछ महीने पहले तक कहा जाता था कि वह केंद्रीय भूमिका में खुद को देख रहे हैं. पीएम दावेदार भी माना जाने लगा. हालांकि वह खुद ना-ना करते रहते. वैसे भी कोई खुद को पीएम मटैरियल थोड़ी कहता है! RJD का खेमा मानकर चलने लगा कि तेजस्वी यादव को अब सीएम की कुर्सी मिलने ही वाली है. लालू यादव भी तैयारी करने लगे थे लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के करीब आने पर I.N.D.I.A गठबंधन में नीतीश को वो भाव नहीं मिला जिसकी उन्हें उम्मीद थी. दिल्ली बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम आगे कर दिया गया. कहा गया कि नीतीश कुमार नाराज होकर जल्दी निकल गए.
इग्नोर किए गए नीतीश?
इसके बाद हर रोज अटकलबाजियों का दौर चलता रहा. नीतीश को ऐसा लगा कि उन्हें इंडिया अलायंस में इग्नोर किया जा रहा है. जबकि वो पहले नेता थे जिसने एंटी-बीजेपी मोर्चा खड़ा करने के लिए शुरुआती प्रयास किए. वह आसानी से संयोजक बनाए जाने की उम्मीद कर रहे थे लेकिन जेडीयू की तरफ से 'बैटिंग' जोरदार तरीके से नहीं हुई. ऐसे में ललन सिंह पर गाज गिरी. नीतीश ने पार्टी की कमान अपने हाथों में ले ली. बाद में खबर आई थी कि राहुल और खरगे ने नीतीश से बात की है. उन्हें मनाने की कोशिशें हुईं और संयोजक पद ऑफर हुआ तो नीतीश ने खुद मना कर दिया.
नीतीश सीट शेयरिंग समझौता जल्दी चाह रहे थे लेकिन अब तक स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी है. कुछ दिन पहले तेजस्वी-लालू मिले तो कहा गया कि 17-18 सीटें वे आपस में बांट सकते हैं. बाकी में कांग्रेस और दूसरे दल होंगे. हालांकि इस पर भी बात फाइनल नहीं हुई. जाहिर है नीतीश का I.N.D.I.A के साथ तालमेल बन नहीं पा रहा है. यही वजह है कि कल जब वह शायद बजट पर चर्चा करने के लिए राजभवन गए तो पाला बदलने की अटकलें लगाई जाने लगीं.
दो दिन पहले कांग्रेस के नेता दावा कर रहे थे कि राहुल गांधी की यात्रा जब बिहार आएगी तो नीतीश कुमार स्वागत करेंगे. हालांकि कुछ घंटे पहले जेडीयू ने कह दिया कि कांग्रेस से कोई बातचीत नहीं हुई है.
आरजेडी vs जेडीयू तनातनी
पिछली बार जब नीतीश ने महागठबंधन तोड़ा था तब तेजस्वी और लालू परिवार भ्रष्टाचार में घिरा था. इस समय भी आरजेडी के साथ जेडीयू के संबंध अच्छे नहीं हैं. लालू यादव 20 सीटें मांग रहे हैं. RJD का तर्क है कि वोटों का समीकरण उसके फेवर में है इसलिए जेडीयू को कम सीटों पर लड़ना चाहिए. जेडीयू की कमान जब नीतीश ने अपने हाथों में ली थी तो पार्टी अंदरूनी कलह से गुजर रही थी. अब नीतीश को डर है कि अगर 16-17 सीटें नहीं मिलीं तो कई सांसद पार्टी छोड़ सकते हैं. कई भरोसेमंद पहले ही किनारा कर चुके हैं.
वैसे भी मीडिया रिपोर्टों में नीतीश की लोकप्रियता का ग्राफ कम दिखाया जा रहा है. आरजेडी मुस्लिम-यादव वोट (35 प्रतिशत) अपने साथ मान रही है. पिछले लोकसभा चुनाव में आरजेडी-कांग्रेस-लेफ्ट को 37 प्रतिशत वोट मिले थे. इसी आधार पर अब आरजेडी ज्यादा सीटें मांग रही है.
तनातनी की एक वजह और है. जब ललन सिंह का इस्तीफा हुआ तो आरोप लगे थे कि वह लालू के करीब जा रहे थे. वह लालू की पार्टी से चुनाव लड़ने का मन भी बना चुके हैं. यहां तक कहा गया कि नीतीश को लगने लगा था कि आरजेडी उनकी पार्टी को तोड़ना चाहती है. बीजेपी के कुछ नेता कहने लगे थे कि लालू ने समीकरण सेट कर लिया है. इससे नीतीश की टेंशन बढ़ती गई.
अचानक मंत्री बदले
आरजेडी से तनातनी के बीच पिछले शनिवार को नीतीश ने कैबिनेट के तीन मंत्रियों के विभाग बदल दिए. चंद्रशेखर, आलोक मेहता और ललित यादव तीनों आरजेडी कोटे से हैं. इससे पहले नीतीश ने अपनी पार्टी की नई टीम बनाई, जिसमें ललन सिंह को जगह नहीं मिली. पुराने नेताओं को ज्यादा तवज्जो दी गई है. जेडीयू-आरजेडी के रिश्ते में खटास की चर्चा हो ही रही थी कि गृह मंत्री अमित शाह का एक इंटरव्यू सामने आया. उन्होंने कहा कि पुराने साथी आना चाहेंगे तो विचार किया जाएगा.
बिहार के शिक्षा मंत्री रहे चंद्रशेखर और अपर मुख्य सचिव केके पाठक के बीच काफी विवाद देखा गया. इसका असर महागठबंधन पर भी दिखा. लालू के करीबी एमएलसी सुनील सिंह ने नीतीश कुमार के खिलाफ खुलकर बोला. उन्होंने कहा कि सीएम का किसी मंत्री से विवाद होता है तो वह इसी तरह के अधिकारी उनके विभाग में भेज देते हैं. चार-पांच मंत्रियों को छोड़कर सभी मंत्री अपने अधिकारी से परेशान हैं. कहा गया कि जब चंद्रशेखर ने रामचरितमानस को लेकर विवादित बात कही तो नीतीश नाराज हो गए थे और केके पाठक को उनके विभाग में डाल दिया. पाठक हाल में छुट्टी से लौटे तो मंत्री जी का ही तबादला हो चुका था.
बीजेपी ने छीन लिया नीतीश का मुद्दा
24 घंटे में पटना का सियासी माहौल काफी बदल गया है. पिछड़े समुदाय की राजनीति करने वाले नीतीश कुमार से बीजेपी ने बड़ा मुद्दा छीन लिया. जातीय सर्वे के बाद जेडीयू जिस बढ़त की उम्मीद कर रही थी, कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न बनाने के बाद उस पर असर पड़ सकता है. यह भी हो सकता है कि नीतीश 'आपदा में अवसर' ढूंढ लें और नया समीकरण देख भाजपा से असल में खुश हो जाएं. जाहिर है चुनाव में भाजपा अब पिछड़ी जातियों के लिए सम्मान की बात जोरशोर से उछालेगी. आगे का फैसला नीतीश कुमार को करना है. 4 फरवरी को पीएम मोदी बिहार आ रहे हैं.