Modi Govt on Article 370: चीफ जस्टिस ने केंद्र से गृह मंत्रालय के पास मौजूद मूल कागजात के अलावा उन 562 रियासतों में से राज्यों की एक सूची पेश करने को कहा, जिनका भारत में विलय समझौते पर दस्तखत किए बिना हुआ था. मामले पर अब 28 अगस्त को सुनवाई फिर शुरू होगी.
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Supreme Court on Article 370: सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 370 पर लगातार सुनवाई हो रही है. आर्टिकल 370 को क्यों हटाया गया, इसके समर्थन में केंद्र सरकार ने गुरुवार दलीलें दीं. मोदी सरकार ने कहा कि जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधान को रद्द करने में कोई संवैधानिक धोखाधड़ी नहीं हुई.
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली 5 जजों की संविधान पीठ इस मामले पर सुनवाई कर रही है. बेंच ने उनकी दलीलों पर गौर करते हुए कहा कि उन्हें निरस्त करने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया को उचित ठहराना होगा क्योंकि अदालत ऐसी स्थिति नहीं बना सकती है जहां अंत साधन को उचित ठहराता है.
आर्टिकल 370 को रद्द करने का विरोध करने वाले याचिकाकर्ता इस बात पर जोर देते रहे हैं कि इस प्रावधान को निरस्त नहीं किया जा सकता था. क्योंकि जम्मू कश्मीर संविधान सभा की सहमति इस तरह का कदम उठाने से पहले जरूरी थी. 1957 में पूर्ववर्ती राज्य का संविधान का मसौदा तैयार करने के बाद खत्म हो गया था.
'आर्टिकल 370 को रद्द करना जरूरी था'
उन्होंने कहा है कि संविधान सभा के लोप हो जाने से आर्टिकल 370 को स्थायी दर्जा मिल गया. अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने जब यह कहा कि आर्टिकल 370 को रद्द करना जरूरी था और अपनाई गई प्रक्रिया में कोई खामियां नहीं हैं. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, 'हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अंत साधन को उचित ठहराता हो. साधन को साध्य के अनुरूप होना चाहिए.'
केंद्र की ओर से बहस शुरू करने वाले वेंकटरमणी ने कहा, आर्टिकल 370 को हटाने में सही प्रक्रिया का पालन किया गया है, कोई गलत काम नहीं हुआ और कोई संवैधानिक धोखाधड़ी नहीं हुई, जैसा कि दूसरे पक्ष ने आरोप लगाया है. कदम उठाया जाना जरूरी था. उनका तर्क गलत और समझ से परे है.'
'संविधान सभा शब्द विधानसभा शब्द से कैसे बदला?'
चीफ जस्टिस DY चंद्रचूड़ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि आखिरकार उन्हें यह बताना होगा कि जिस दिन अनुच्छेद 370 को हटाया गया, उस दिन इसके खंड 2 में मौजूद 'संविधान सभा' शब्द को 'विधानसभा' शब्द से कैसे बदल दिया गया.
चीफ जस्टिस ने मेहता से कहा, 'आपको यह तर्क देना होगा कि यह एक संविधान सभा नहीं बल्कि अपने मूल रूप में एक विधानसभा थी. आपको यह जवाब देना होगा कि यह अनुच्छेद 370 के खंड 2 के साथ कैसे मेल खाएगा जो विशेष रूप से कहता है कि संविधान सभा का गठन संविधान बनाने के मकसद से किया गया था.'
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वह अदालत को संतोषजनक जवाब देने की कोशिश करेंगे और अपनाई गई प्रक्रिया के बारे में बताएंगे कि यह कैसे संवैधानिक रूप से स्वीकार्य है. पांच अगस्त, 2019 को, नए जुड़े आर्टिकल 367(4)(डी) ने 'राज्य की संविधान सभा' कथन को 'राज्य की विधान सभा' से रिप्लेस करके आर्टिकल 370(3) में संशोधन किया गया था.
सॉलिसिटर जनरल बोले- 2019 तक ऐसे काम करता था 370
मेहता ने कहा, 'मैं दिखाऊंगा कि आर्टिकल 370 वर्ष 2019 तक कैसे काम करता था. कुछ चीजें वास्तव में चौंकाने वाली हैं और मैं चाहता हूं कि अदालत इसके बारे में जाने. क्योंकि व्यावहारिक रूप से दो संवैधानिक अंग-राज्य सरकार और राष्ट्रपति- एक-दूसरे के परामर्श से संविधान के किसी भी भाग में, जैसे चाहें संशोधन कर सकते हैं और उसे जम्मू-कश्मीर पर लागू कर सकते हैं.'
उदाहरण के तौर पर, मेहता ने कहा कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना को 1954 में आर्टिकल 370(1)(बी) के तहत संविधान आदेश से जम्मू और कश्मीर पर लागू किया गया था. मेहता ने कहा, 'इसके बाद 1976 में 42वां संशोधन हुआ और भारतीय संविधान में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द जोड़े गए, लेकिन पांच अगस्त, 2019 तक इसे (जम्मू कश्मीर पर) लागू नहीं किया गया. जम्मू कश्मीर के संविधान में न तो ‘समाजवादी’ और न ही ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द था.’’
मेहता ने आगे भी कहा कि वह दिखाएंगे कि अगर आर्टिकल 370 को निरस्त नहीं किया गया होता तो इसका कितना 'विनाशकारी प्रभाव' हो सकता था. इस अदालत ने ठीक ही कहा है कि अंत साधन को उचित नहीं ठहरा सकता, लेकिन मैं साधनों को भी उचित ठहराऊंगा. वे संवैधानिक रूप से स्वीकार्य हैं.
28 अगस्त को फिर शुरू होगी सुनवाई
चीफ जस्टिस ने केंद्र से गृह मंत्रालय के पास मौजूद मूल कागजात के अलावा उन 562 रियासतों में से राज्यों की एक सूची पेश करने को कहा, जिनका भारत में विलय समझौते पर दस्तखत किए बिना हुआ था. मामले पर अब 28 अगस्त को सुनवाई फिर शुरू होगी.
केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 को रद्द करते हुए राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में बांट दिया था. 2019 के प्रावधानों को रद्द करने को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को 2019 में एक संविधान पीठ को भेजा गया था.
(इनपुट- PTI)