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2020 India Road Accidents: साल 2020 में मार्च के बाद देश में लंबा लॉकडाउन होने के बावजूद 1 लाख 31 हजार लोगों ने रोड एक्सीडेंट्स में अपनी जां गंवा दी. सरकार ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि 2019 के मुकाबले 2020 में 18 प्रतिशत कम एक्सीडेंट्स हुए. लेकिन 2020 में मार्च के बाद से सड़कों पर गाड़ियों की संख्या भी ना के बराबर थी. कोरोनावायरस महामारी की वजह से भारत में लॉकडाउन लग चुका था. उसके बाद भी देश में सवा लाख से ज्यादा लोगों की जान सड़क हादसों में चली गई. भारत की सड़कों पर एक्सीडेंट्स तो हर रोज होते हैं, लेकिन इससे कोई सबक नहीं लेता.
2020 में सड़क हादसे - 3 लाख 66 हजार 138
2019 में सड़क हादसे - 4 लाख 49 हजार 2
2020 में सड़क हादसों में मौंतों की संख्या - 1 लाख 31 हजार 714
2019 में सड़क हादसों में मौंतों की संख्या - 1 लाख 51 हजार 113
2020 में 1 लाख 216 हजार 496 एक्सीडेंट्स नेशनल हाइवे पर हुए, कुल एक्सीडेंट्स में से 32 प्रतिशत एक्सीडेंट्स हाइवे पर हुए हैं. इसमें 47 हजार 984 लोग मारे गए. जबकि 2019 में हुए कुल रोड एक्सीडेंट्स में से तकरीबन 1 लाख 38 हजार यानी 30% एक्सीडेंट्स नेशनल हाइवे पर हुए जिसमें 53 हजार लोग मारे गए.
2020 में सड़क हादसों में मरने वाले कुल लोगों में से 43 प्रतिशत यानी 56 हजार 873 लोग टू व्हीलर सवार थे. वहीं, दूसरे नंबर पर पैदल चलने वाले लोगों की मौत हुई. ये संख्या 2020 में 23 हजार 477 यानी तकरीबन 18 प्रतिशत थी.
वाहन संख्या की बात करें तो भारत में पूरी दुनिया का केवल 1 प्रतिशत वाहन है. लेकिन भारत में पूरी दुनिया के 11 प्रतिशत रोड एक्सीडेंट्स होते हैं. परिवहन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश के नेशनल हाइवेज पर 3 हजार 750 Black Spots हैं. ये वो जगह हैं, जहां बार-बार एक्सीडेंट्स होते हैं. किसी एक स्पॉट पर तीन साल में पांच रोड एक्सीडेंट्स हो जाएं या किसी स्पॉट पर तीन साल में 10 मौतें हो जाएं तो उसे Black Spot माना जाता है. अब इन स्पॉट्स को zero fatality spots बनाने की योजना है. यानी वो जगह जहां एक भी एक्सीडेंट ना हो. हालांकि ये एक ऐसा लक्ष्य है जिसे पूरा करने के रास्ते में कई रुकावटें हैं.
भारत के कुल रोड नेटवर्क में नेशनल और स्टेट हाइवे केवल 5 प्रतिशत हैं. लेकिन इन्हीं 5 प्रतिशत सड़कों पर 48 प्रतिशत एक्सीडेंट्स होते हैं. देश में हर साल 5 लाख एक्सीडेंट होते हैं. जिनमें हर साल डेढ़ लाख लोगों की मौत हो जाती है. मरने वालों में 65 प्रतिशत लोग 18 से 45 साल की उम्र के बीच के होते हैं. बॉर्डर रोड ऑरगनाइजेशन यानी BRO के मुताबिक भारत में 1990 में मौतों की दस बड़ी वजहों की लिस्ट में रोड एक्सीडेंट्स 9वें नंबर पर था. आज भी भारत में दिल की बीमारी से या कोरोना वायरस की वजह से होने वाली मौतों के बाद सबसे ज्यादा मौतें एक्सीडेंट्स की वजह से हो जाती हैं.
भारत में हर वर्ष औसतन 5 लाख रोड एक्सीडेंट्स होते हैं. भारत में हर घंटे 53 रोड एक्सीडेंट्स होते हैं और हर चार मिनट में एक मौत रोड एक्सीडेंट्स की वजह से हो जाती है. भारत पूरी दुनिया में सड़क हादसों में होने वाली मौतों के मामले में पहले नंबर पर है. हाल ही में संसद में सरकार ने एक सवाल के जवाब में बताया कि रोड एक्सीडेंट्स को कम करने पर काम किया जा रहा है. नेशनल हाइवेज पर ब्लैक स्पॉट्स की पहचान करके वहां सड़क के डिजाइन में बदलाव किये जा रहे हैं. बस और ट्रक जैसे भारी वाहन अगर अपनी लेन की जगह दूसरी लेन में आते हैं तो उन पर फाइन बढ़ाया जा सकता है. बूढ़े हो चुके वाहनों को सड़कों से हटाने की योजना देश भर में लागू की जा सकती है. कारों के डिजाइन को लेकर भी सरकार सख्त हुई है. जल्दी ही कारों में छह एयरबैग, एडवांस्ड इमरजेंसी ब्रेक सिस्टम और सभी फ्रंट फेसिंग सीटों के लिए थ्री-पॉइंट सीट बेल्ट देना अनिवार्य किया जाएगा.
आपको सुनकर अच्छा नहीं लगेगा लेकिन भारतीयों की जान भारतीय खुद ही ले रहे हैं. भारत में लेन ड्राइविंग के बारे में तो बात करना ही बेकार है. ओवरटेकिंग ..ओवर स्पीडिंग और कहीं भी अपनी मर्जी से गाड़ी को बीच सड़क में रोक देना, ट्रैफिक सिग्नल्स का सम्मान ना करना और उस पर ये आत्मविश्वास कि अगर ट्रैफिक नियम तोड़ने पर किसी ने पकड़ लिया तो कुछ ले-देके मामला निपट जाएगा. ये वो बड़ी वजहे हैं जो सड़क को लोगों के लिए सुरक्षित बनाने के हर प्रयास को बेकार साबित कर देती हैं.
भारत में रोड एक्सीडेंट्स के कारणों को देखें तो मोटे तौर पर तीन कारण हैं. मानवीय गलतियां पहले नंबर पर है, जिसमें ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन, बिना ड्राइविंग लाइसेंस और बिना हेलमेट और सीट बेल्ट्स जैसे सेफ्टी डिवाइस के वाहन चलाना. दूसरे नंबर पर है सड़कों की हालत और तीसरे नंबर पर है वाहनों की हालत. ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन में सबसे ऊपर है ओवर स्पीडिंग. 2020 में भारत में हुए कुल सड़क हादसों में ओवरस्पीडिंग की वजह से 73 प्रतिशत एक्सीडेंट्स हुए, 70 प्रतिशल लोगों की जान जाने की वजह ओवरस्पीडिंग रही और 63 प्रतिशत लोग इसी वजह से घायल हुए. इसके बाद बारी आती है Wrong Side गाड़ी चलाने वालों की और लेन ड्राइविंग ना करने की.
अब दूसरी बड़ी वजह यानी सड़कों की हालत की बात करें तो ज्यादा बड़ी और खुली सड़कों पर ज्यादा एक्सीडेंट्स दर्ज किए गए हैं. भारत में 2020 में हुए कुल सड़क हादसों में से 47 प्रतिशत हाइवे पर हुए. 2019 के मुकाबले 2020 में एक्सीडेंट्स भले ही कम हो गए लेकिन हाइवे पर एक्सीडेंट्स 2 प्रतिशत बढ़े हैं. यानी भारतीयों को साफ और चौड़ी सड़कें मिल जाएं तो सबसे पहले उस पर गाड़ी दौड़ाने का ख्याल आता है, सुरक्षित ड्राइविंग का नहीं. ट्रैफक नियमों का पालन करवाने के लिए हर चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस या सीसीटीवी से चालान कटने का सिस्टम होना भी जरुरी है. जिस पर भारत में अभी बहुत काम किए जाने की जरुरत है.
2019 में आर्थिक नुकसान का आंकलन करने के लिए बनाई गई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में होने वाले एक्सीडेंट्स में 8 लाख वाहन कबाड़ हो गए और भारत को एक वर्ष में तकरीबन 180 करोड़ का नुकसान हो गया. लेकिन इस नुकसान से बड़ी है रोजाना असमय जान गंवा रहे लोग. भारत में रोड एक्सीडेंट में मारे जाने वाले लोगों में से 65 प्रतिशत 18 से 45 वर्ष के लोग होते हैं यानी भारत सड़क हादसों में अपनी युवा आबादी को खो रहा है. किसी अपने की असमय मौत की कीमत यानी मुआवजे का हिसाब लगाने वाली कोई करेंसी दुनिया में नहीं बनी है. इसीलिए धीरे चलें और सुरक्षित रहें...क्योंकि घर पर आपका कोई इंतजार कर रहा है.
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