DNA: आतंक के साए से आजाद हुई घाटी, अब कश्मीर के लोग भी बड़े पर्दे पर देखेंगे सिनेमा
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DNA: आतंक के साए से आजाद हुई घाटी, अब कश्मीर के लोग भी बड़े पर्दे पर देखेंगे सिनेमा

DNA: आर्टिकल 370 हटने के बाद आज देशभर के कई निर्देशक, निर्माता अपनी फिल्मों, वेब सीरीज और डॉक्यूमेंट्री की शूटिंग के लिए कश्मीर आना चाहते हैं. कश्मीर प्रशासन के अनुसार उन्हें ऐसे करीब 500 आवेदन मिल चुके हैं और इनमें 150 फिल्मों को शूटिंग की मंजूरी भी दे दी गई है.

DNA: आतंक के साए से आजाद हुई घाटी, अब कश्मीर के लोग भी बड़े पर्दे पर देखेंगे सिनेमा

DNA Analysis: मीर खुसरो ने एक बार हिंदुस्तान के लिए कहा था. 'गर फिरदौस बर रु-ए जमीं अस्त, हमीं अस्तो हमीं अस्तो हमीं अस्त..'.फारसी में कही गई इन पंक्तियों का अर्थ है कि 'अगर धरती पर कहीं जन्नत है तो बस यहीं है यहीं है यहीं है. आने वाले वक्त में ये लाइनें अलग-अलग लोगों के द्वारा, अलग-अलग जगहों के लिए कही गईं, दोहराई गईं. लेकिन शायद खुसरो की कही इन पक्तियों की असल मंजिल कश्मीर थी और इसीलिए कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है. इस देश के एक बड़े वर्ग ने कश्मीर की इसी खूबसूरती को सिल्वर स्क्रीन के जरिए देखा और महसूस किया है. यानी सिनेमा वो धागा है, जिसने सालों तक कश्मीर को देश के दूसरे हिस्सों से जोड़ कर रखा. ऐसे में आइए जानें कश्मीर और सिनेमा के इसी खूबसूरत रिश्ते के बारे में.

कश्मीर और सिनेमा का कनेक्शन

अगर आप फिल्में देखने के शौकीन हैं, तो आपने वर्ष 1964 में आई शम्मी कपूर और शर्मिला टैगोर की फिल्म कश्मीर की कली जरूर देखी होगी. डल झील पर फिल्माए गए इस फिल्म के गीत आज भी लोगों को कश्मीर और वहां की खूबसूरत वादियों की याद दिलाते हैं. कश्मीर के दिलकश नजारे. हरी-भरी वादियां. बर्फ से ढके पहाड़ और सुनहरे पत्तों से ढके चिनार के पेड़ हमेशा से ही फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों को आकर्षित करते रहे हैं. हर निर्देशक की ख्वाहिश होती है कि वो एक बार कश्मीर में शूटिंग जरूर करे और इसीलिए भारतीय सिनेमा की कई बेहतरीन और कामयाब फिल्मों की शूटिंग कश्मीर में की जा चुकी है. चाहे वो शम्मी कपूर और सायरा बानो की जंगली हो. ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया की सुपरहिट फिल्म बॉबी हो. सनी देओल की बेताब हो. इसी तरह हाइवे, राजी, हैदर और बजरंगी भाईजान जैसी फिल्मों में भी कश्मीर पूरी खूबसूरती के साथ किसी किरदार की तरह मौजूद है. सनी देओल की फिल्म बेताब के नाम पर तो यहां एक जगह का नाम भी है, जिसे बेताब वैली कहा जाता है.

घाटी में लौटा लाइट कैमरा और एक्शन का दौर

वर्ष 1960 के दशक में बॉलीवुड की 9 फिल्मों की शूटिंग कश्मीर में हुई थी. 1970 के दशक में ये आंकड़ा बढ़कर 11 हो गया. 1980 के दशक में घाटी में 6 फिल्मों की ही शूटिंग हुई, क्योंकि ये दशक बीतते-बीतते आतंकवाद कश्मीर में अपनी जड़ें जमाने लगा था और 1990 के दशक में जब आतंकवाद चरम पर था, तब ये आंकड़ा घटकर चार पर ही सिमट गया था. हालांकि वर्ष 2000 से 2010 के बीच वहां 15 फिल्मों की शूटिंग हुई. जबकि वर्ष 2010 से अब तक यानी करीब 12 वर्षों में कुल 21 फिल्मों की शूटिंग कश्मीर में हो चुकी है. यानी 60 के दशक से शुरू हुआ कश्मीर और सिनेमा का ये खूबसूरत रिश्ता कई उतार चढ़ाव झेलने के बाद भी उतना ही मजबूत और ताजा बना हुआ है और आज ये विश्लेषण इसलिए भी जरूरी है क्योंकि आज ये रिश्ता एक नई ऊंचाई हासिल करने वाला है. आज कश्मीर में एक बार फिर लाइट कैमरा और एक्शन की आवाजें गूंजने लगी है.

बड़े पर्दे पर कश्मीर की खूबसूरती नहीं देख सकते कश्मीर के ही लोग

आर्टिकल 370 हटने के बाद आज देशभर के कई निर्देशक, निर्माता अपनी फिल्मों, वेब सीरीज और डॉक्यूमेंट्री की शूटिंग के लिए कश्मीर आना चाहते हैं. कश्मीर प्रशासन के अनुसार उन्हें ऐसे करीब 500 आवेदन मिल चुके हैं और इनमें 150 फिल्मों को शूटिंग की मंजूरी भी दे दी गई है. लेकिन हम आपको इसी रिश्ते का एक दूसरा पहलू भी बताना चाहते हैं. ये पहलू थोड़ा स्याह और डरावना है. जिस कश्मीर में इतनी फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है और आज भी हो रही है. उसी कश्मीर में आज एक भी सिनेमा हॉल नहीं है. यानी कश्मीर में बनी फिल्में पूरी दुनियाभर के सिनेमाघरों में भले ही देखी जाती हों, लेकिन इन्हें कश्मीर के लोग कश्मीर में ही नहीं देख सकते और आज अगर कश्मीरी सिनेमाहॉल में फिल्म देखना चाहे. तो उसे करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर जम्मू ही जाना पड़ेगा. या फिर उसे घर पर ही टीवी या फोन पर ही फिल्में देखनी पड़ेंगी.

हालांकि हमेशा से ऐसा नहीं था. 1990 की शुरुआत तक कश्मीर में करीब 15 सिनेमा हॉल थे और यहां लोग फिल्में भी देखते थे. लेकिन 90 के दशक में आतंकवाद की शुरुआत के बाद कश्मीर घाटी के सभी सिनेमा हॉल एक एक कर बंद हो गए. वर्ष 1999 और 2000 के दौरान सरकार ने कुछ थिएटरों को फिर से खोलने के प्रयास भी किए. लेकिन सुरक्षा के कारणों से और कट्टरपंथियों के दबाव की वजह से इन्हे फिर से बंद करना पड़ा. 2010 में आतंकियों ने घाटी में चलने वाले इकलौते नीलम सिनेमा को भी बंद कर दिया था और तब से कश्मीर में एक भी ऐसा सिनेमा हॉल नहीं है, जहां बैठकर लोग अपने परिवार, अपने दोस्तों के साथ फिल्में देख सकें और अपना मनोरंजन कर सकें.

लेकिन अब तीस वर्षों के बाद कश्मीर में पहला मल्टीप्लेक्स खोलने की तैयारी की जा रही है. श्रीनगर के शिवपोरा इलाके में बन रहे इस मल्टीप्लेक्स का निर्माण आखिरी चरण में है और इसे अगले कुछ दिनों में ही सिनेमाप्रेमियों के लिए खोले जाने की तैयारी है. कश्मीर के इस पहले मल्टीप्लेक्स में तीन स्क्रीन्स होंगी और यहां एक बार में कुल 520 लोग फिल्में देख सकेंगे. इस मल्टीप्लेक्स के निर्माण में पारंपरिक 'खतमबंद' छत और पेपर माची डिजाइनों को शामिल किया गया है. यानी आधुनिकता के साथ यहां कश्मीरियत की भी झलक नजर आएगी. ये मल्टीप्लेक्स दरअसल कश्मीर 2.0 की नई तस्वीर है और ये तस्वीर बताती है कि आज कश्मीर कट्टरपंथियों की विचारधारा को खारिज कर चुका है और दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ने को तैयार है और सिनेमा उसके इसी सफर का हिस्सा है.

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