भारत (India) को आजादी मिलते ही और पाकिस्तान (Pakistan) के बनते ही पुंछ के मुस्लिमों ने कश्मीर के हिंदू शासक हरि सिंह को टैक्स देने से मना कर दिया था और उनके खिलाफ विद्रोह करना शुरू कर दिया था. वहीं पाकिस्तान से आए हिंदू और सिख अपने साथ हिंसा की ढेरों कहानियों लेकर आए थे, जिसके कारण यहां दोनों समुदायों के बीच झड़पें होने लगीं.
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नई दिल्ली: भारत-पाक विभाजन (Partition) के बाद से ही दोनों देशों की दुश्मनी जगजाहिर है, लेकिन 22 अक्टूबर 1947 वो दिन था, जब पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ पहला दुस्साहस करने की कोशिश की थी. इस दिन पाक ने अपने आदिवासी आक्रमणकारियों को कश्मीर भेजा था और उन्हें खदेड़ने के लिए 27 अक्टूबर, 1947 को भारतीय सैनिकों ने पहली बार घाटी में अपने कदम रखे थे. तब से ही कश्मीरी 27 अक्टूबर को काले दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं. लेकिन इस साल संस्कृति मंत्रालय इस नरेटिव को बदलने का प्रयास कर रहा है. 22 अक्टूबर को ऐसे दिन के तौर पर चिन्हित किया जा रहा है, जिस दिन कश्मीर पर पाकिस्तानी आक्रमण शुरू हुआ था. क्योंकि इसी दिन पहले भारत-पाक युद्ध के लिए मंच सजा था.
भारत (India) को आजादी मिलते ही और पाकिस्तान (Pakistan) के बनते ही पुंछ के मुस्लिमों ने कश्मीर के हिंदू शासक हरि सिंह को टैक्स देने से मना कर दिया था और उनके खिलाफ विद्रोह करना शुरू कर दिया था. वहीं पाकिस्तान से आए हिंदू और सिख अपने साथ हिंसा की ढेरों कहानियों लेकर आए थे, जिसके कारण यहां दोनों समुदायों के बीच झड़पें होने लगीं. इसमें बड़ी तादाद में लोग मारे गए थे.
पाकिस्तान ने बंद कर दी थीं ट्रेनें
वैसे तो हरि सिंह कश्मीर को ना तो पाकिस्तान में शामिल करना चाहते थे और ना भारत में लेकिन ऐसा हुआ नहीं. पाकिस्तान के साथ व्यापार को लेकर कई समझौते हुए थे लेकिन मतभेदों के चलते जब पाकिस्तान को परिवहन के लिए पेट्रोल नहीं मिला तो उसने सियालकोट से जम्मू की ट्रेन सेवा बंद कर दी. इसके बाद हालात बिगड़े और अक्टूबर आधा गुजरने तक हरि सिंह और उनकी छोटी सेना के लिए स्थिति खतरनाक हो गई.
22 अक्टूबर को हजारों आदिवासी आक्रमणकारी मुजफ्फराबाद, डोमेल और अन्य स्थानों को पार करते हुए श्रीनगर की सड़कों पर पहुंचे और हरि सिंह के राज्य की चौकियों को पार कर लिया. कश्मीर की सेना बहुत छोटी थी, उसमें भी मुस्लिम सैनिकों ने हमलावरों के साथ हाथ मिला लिया था.
रक्षा मंत्रालय के युद्ध के आधिकारिक इतिहास के अनुसार, 'आक्रमणकारियों की योजना चतुराई भरी थी और शुरुआत में उन्होंने इसे अच्छे से अंजाम भी दिया. मोटर रोड पर मुख्य हमला किया. हमलावरों के पास राइफलें और अन्य हथियार थे, सुरक्षा बलों के पास कुछ हल्की मशीनगनें थीं और लगभग 300 लॉरियां थीं.'
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पाक का झूठ और झूठ का सबूत
पाकिस्तान ने कहा कि इस आक्रमण से उसका कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन सबूत कुछ और कहते थे. यहां तक कि पाकिस्तान सेना के मेजर-जनरल अकबर खान ने खुद अपनी पुस्तक 'Raiders of Kashmir' में भी इसके सबूत दिए हैं. भारतीय सैन्य इतिहास कहता है कि आक्रमण की योजना पाकिस्तानी सेना ने दो महीने पहले ही बना ली थी और इसका नाम ऑपरेशन गुलमर्ग रखा था.
26-27 अक्टूबर की रात को पाक समर्थित हमलावरों ने बारामूला पर हमला किया फिर 27 अक्टूबर को सेंट जोसेफ कॉन्वेंट एंड हॉस्पिटल को निशाना बनाया. इस हमले में हुई हत्याओं का उल्लेख ब्रिटिश पत्रकार एंड्रयू व्हाइटहेड ने 'A Mission in Kashmir' में किया है. उन्होंने तो यह भी लिखा है कि आदिवासी 'बेकाबू लोग' थे और 'वे लूटपाट करके गए'.
15 दिन में भारतीय सेना ने पलट दी थी बाजी
हरि सिंह के भारत में प्रवेश करने के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के एक दिन बाद ही आक्रमणकारियों को बाहर करने के लिए 27 अक्टूबर को भारतीय सैनिक यहां पहुंचे थे.
इसके बाद सैनिकों और आक्रमणकारियों के बीच लड़ाई चली और भारतीय सेना ने 8 नबंवर को श्रीनगर पर, 9 नवंबर को बारामूला पर और 13 नवंबर तक उरी पर नियंत्रण कर लिया था.
हालांकि युद्ध तो आदिवासियों के समर्थन में औपचारिक रूप से पाकिस्तानी सेना के मैदान में उतरने के एक साल बाद तक जारी रहा, जब तक कि 31 दिसंबर, 1948 की रात को युद्ध विराम घोषित नहीं किया गया और फिर 5 जनवरी 1949 को युद्ध विराम की शर्तों को स्वीकार नहीं कर लिया गया.