हमारे देश में भले ही कितनी तरक्की और विकास की बातें हों लेकिन छूआछूत और भेदभाव की जड़ें इतनीं गहरीं हैं कि खत्म ही नहीं होतीं।
Trending Photos
मुंबई: हमारे देश में भले ही कितनी तरक्की और विकास की बातें हों लेकिन छूआछूत और भेदभाव की जड़ें इतनीं गहरीं हैं कि खत्म ही नहीं होतीं।
ताजा मामला महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित विदर्भ के वासीम जिले का है। जहां एक दलित महिला को ऊंची जाति वालों ने अपने कुए से पानी लेने के लिए मना कर दिया। महिला ने यह बात अपने पति को बताई। इसके बाद दलित महिला के पति ने मात्र चालीस दिनों में एक नया कुंआ खोद दिया। आज इस कुंए से ना केवल दलित महिला बल्कि उनकी बिरादारी के सभी लोग पानी पी रहे हैं।
विश्वास से लबरेज तांजे ने बताया कि कड़ी मेहनत के बाद जमीन के अंदर प्रचुर पानी पाकर वह खुद को सौभाग्यशाली मान रहे हैं। तांजे ने कहा, ‘‘मेरे परिवार सहित दूसरे लोगों ने मेरी आलोचना की लेकिन मैं प्रतिबद्ध था।’’इस घटना की खबर तुरंत अधिकारियों तक पहुंच गई जिसके बाद वासीम के जिला प्रशासन ने तहसीलदार क्रांति डोम्बे को गांव में भेजा।
तहसीलदार ने कहा कि तांजे के काम की प्रशंसा करते हुए जिला प्रशासन ने उन्हें ‘‘प्रतिबद्धता और मजबूत इच्छाशक्ति के व्यक्तित्व’’ से सम्मानित किया।यह पूछने पर कि क्या तांजे को सरकारी सहायता मुहैया कराई गई तो डोम्बे ने कहा कि इस तरह का अभी कोई प्रस्ताव नहीं है। बहरहाल सरकार ने दलित व्यक्ति की असाधारण उपलब्धि का संज्ञान लिया है।
बापूराव तांजे एक और दशरथ मांझी!
एक और दशरथ मांझी की संज्ञा दे दी गई? दशरथ मांझी यानी बिहार का वह पर्वत पुरुष, जिसने अकेले दम पहाड़ काट रास्ता बना डाला था।
वह आठ घंटे मजदूरी करता। उसके बाद पांच-छह घंटे कुएं की खुदाई करता।लोग उसे सनकी समझते, उसकी इस अजूबी हरकत पर हंसते। परंतु बापूराव तांजे अपने काम पर लगा रहा। और चालीस दिन की खुदाई के बाद कुएं से पानी निकल आया।
जो लोग मजाक उड़ा रहे थे,तारीफ करने लगे, जो उसे सनकी मान रहे थे, उसे पराक्रमी मानने लगे। बापूराव के पराक्रम से केवल उसकी पत्नी को ही पानी नहीं मिला, बल्कि पड़ोस के सभी दलित परिवार बापूराव के कुएं से पानी लेने लगे।
बापूराव के कारनामे की ख्याति फैली तो क्या सरपंच, क्या तहसीलदार, सभी उसके दरवाजे पहुंच गए। न्यूज चैनल्स उसे नायक की तरह प्रस्तुत कर रहे हैं। अखबारों ने उसकी प्रशस्ति में समाचार छापे। देखते-देखते वह विख्यात हो गया है बापूराव, इसे कहते हैं जहां चाह वहां राह और बापूराव तांजे इसकी जीती जागती मिसाल है।