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नई दिल्ली: जम्मू एयरबेस पर हुए ड्रोन अटैक (Jammu Drone attack) में सबसे पहला शक पाकिस्तान (Pakistan) पर गया है और ये शक निराधार भी नहीं है. पिछले 2-3 महीने में पाकिस्तान ने ड्रोन तकनीक को लेकर जबरदस्त उत्साह दिखाया है. इस काम में पाकिस्तान के पुराने दोस्त चीन (China) के साथ-साथ नया दोस्त तुर्की भी पूरी मदद कर रहा है.
पाकिस्तान ने जून के आखिरी हफ्ते में एक यूएवी से मिसाइल फायर करने का परीक्षण भी किया है. 15 अप्रैल को पाकिस्तान के साइंस एंड टेक्नोलॉजी मिनिस्टर चौधरी फवाद हसन और चीन कंपनी 'दा जियांग इनोवेशंस' (Da-Jiang innovations DJI) के अध्यक्ष के बीच लंबी मीटिंग हुई. इस मीटिंग में पाकिस्तान में ड्रोन के बड़े पैमाने पर उत्पादन में साझेदारी को अंतिम रूप दिया गया. पाकिस्तानी सेना, नौसेना, वायुसेना और स्ट्रेटजी प्लानिंग डिवीजन के एक प्रतिनिधिमंडल ने 22 मई से लेकर 6 जुलाई तक चीन में एयर डिफेंस से जुड़े हुए कई संस्थानों का दौरा किया और Advanced High to Medium Altitude Air Defence System (HIMADS) का बारीकी से अध्ययन किया.
इस तरह का सिस्टम बालाकोट जैसे किसी हमले के समय सुरक्षा प्रदान करता है लेकिन पाकिस्तानी अधिकारियों का तुर्की दौरा ज्यादा महत्वपूर्ण है. पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों ने 31 मई से लेकर 11 जून तक तुर्की के मशहूर ड्रोन बायराक्तार (Bayraktar) की फैक्ट्री का दौरा किया. इस दौरे के बाद पाकिस्तानी अधिकारियों ने तुर्की के सामने Bayraktar के दो मॉडलों के साझा उत्पादन का प्रस्ताव रखा है. Bayraktar आसमान में 22500 फीट की ऊंचाई पर लगातार 24 घंटे तक मंडरा सकता है और 150 किमी दूर तक अपने कैमरे की फीड भेज सकता है। इसमें कुछ बदलाव करने के बाद इसे हमला करने वाले असरदार ड्रोन के रूप में भी आसानी से विकसित किया जा सकता है.
पाकिस्तानी सेना ने जून में ही छोटे यूएवी के इस्तेमाल के बारे में अपनी सेना में एक्सरसाइज भी की है. इस एक्सरसाइज का उद्देश्य पूरी पाकिस्तानी सीमा के पास भारत के इलाके में जासूसी करने के लिए छोटे यूएवी एस 250 के इस्तेमाल की योजना बनाना है. पाकिस्तानी सेना की हर ब्रिगेड को अपने इलाके में S-250 के उपयोग और उसकी तैनाती के बारे में विस्तृत रिपोर्ट 20 जून तक भेजनी थी. खुफिया सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तान अपने लड़ाकू बुर्राक ड्रोन से बर्क लेजर गाइडेड मिसाइल फायर करने का परीक्षण करने के बहुत करीब है.
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बुर्राक ड्रोन को पाकिस्तानी वायुसेना और National Engineering and Scientific Commission (NESCOM) ने मिलकर बनाया है. इसका पहली बार प्रदर्शन मार्च 2015 में किया गया लेकिन दावा है कि इससे पहले भी इसका इस्तेमाल खैबर इलाके में नागरिक प्रदर्शनकारियों पर किया गया था. पाकिस्तान की तैयारी जवाबी ड्रोन हमले से बचने की भी है. सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तान जर्मनी से ड्रोन हमलों से बचाव के लिए आर्टोस सिस्टम खरीद रहा है. ये सिस्टम ड्रोन के आवागमन पर नजर रखा सकता है और नेविगेशन जैमिंग क्षमता भी रखता है.
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