नई दिल्ली: भारत की आजादी का इतिहास भगत सिंह (Bhagat Singh) के बिना पूरा नहीं हो सकता. आजादी के लिए लड़ते हुए 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी दी गई थी. उनकी शहादत के 91 साल बाद भी भगत सिंह को इसलिए याद किया जाता है क्योंकि वो आज भी प्रासंगिक हैं. 23 मार्च को उनका शहीदी दिवस है. इस मौके पर जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें.
देश की आजादी को जिंदगी का मकसद बनाने वाले भगत सिंह 23 वर्ष की उम्र में शहीद हो गए थे. भगत सिंह ने आजादी के सपने को पूरा होते हुए नहीं देखा. भारत आजाद होता उससे करीब 16 साल 4 महीने और 23 दिन पहले ही उन्हें फांसी दे दी गई. लेकिन भगत सिंह के सपनों का भारत कैसा हो इसके बारे में उन्होंने बहुत कुछ लिख दिया था.
91 साल पहले शहीद हो चुके नौजवान भगत सिंह के सपनों को भारत क्यों साकार नहीं कर पाया. ये सवाल भी प्रासंगिक बना हुआ है. भगत सिंह ने लाहौर जेल में फांसी से पहले जेलर के नाम एक पत्र लिखा था जिसमें लिखा था कि ये युद्ध तब तक चलता रहेगा, जब तक शक्तिशाली लोग भारत की जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर एकाधिकार जमाए रखेंगे, चाहे ऐसे लोग अंग्रेज पूंजीपति हों या अंग्रेज शासक अथवा कोई भारतीय ही क्यों न हों.
दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में Hindustan Socialist Republican Association की स्थापना के समय भगत सिंह ने कहा था, 'हमारा लक्ष्य केवल भारत की आजादी नहीं है. आजादी का मतलब यह नहीं हो सकता कि अंग्रेज भारत छोड़कर चले जायें, बल्कि आजादी का मतलब है एक शोषण मुक्त समाज, एक ऐसी व्यवस्था जिसमें मानव के द्वारा मानव का शोषण ना किया जाए.'
भगत सिंह ने 1928 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसो. (Hindustan Republican Association) का नाम बदल कर Hindustan Socialist Republican Association कर दिया था. इन संगठनों के नाम से ही आप ये समझ सकते हैं कि भगत सिंह के विचारों में सिर्फ आजाद भारत के लिए ही जगह थी.
भगत सिंह ने कहा था कि लोग परिस्थिति के आदी हो जाते हैं और उनमें बदलाव करने की सोच से ही डर जाते है. हमें इस भावना को क्रांति की भावना से बदलने की जरूरत है. इसीलिए भगत सिंह को याद रखने की जरुरत साल के हर दिन है और अमल में लाने की जरुरत तो हर वक्त है क्योंकि आजाद भारत को आज भी विचार क्रांति, प्रगति की क्रांति और सबसे जरुर राष्ट्रवाद की सोच वाली क्रांति की बहुत जरुरत है.
भगत सिंह की कई निशानियां आज भी पंजाब में सहेज कर रखी गई हैं. भगत सिंह के पूरे परिवार को जानने के लिए भगत सिंह मेमोरियल की दीवारों पर फैमिली ट्री मौजद हैं. देश की आजादी में सशस्त्र क्रांति का बिगुल बजाने वाले भगत सिंह के घर में क्रांति की जगह सादगी नजर आती है. आंगन में छोटा सा कुंआ, आटा चक्की, चूल्हा जैसे कुछ बर्तन देखने वाले भी हैरान होते हैं कि अंग्रेजों की नाक के नीचे बम बरसा देने वाले भगत सिंह कितनी सादगी में जीते थे.
पंजाब की नई सरकार ने भगत सिंह के शहीदी दिवस पर छुट्टी घोषित करने का ऐलान किया है. बता दें कि आजादी के लिए लड़ते हुए 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी दी गई थी. भगत सिंह के परिवार के लोग भी यही मानते हैं कि भगत सिंह को उनके जन्म और शहादत के वक्त याद कर लेना या उनके स्मारक से शपथ लेने की जगह भगत सिंह के सपनों का भारत बनाने पर जोर दिया जाना चाहिए.
भगत सिंह का जन्म पाकिस्तान के लायलपुर स्थित बंगा गांव में हुआ था लेकिन उनके परदादा फतेह सिंह ने पंजाब के खटकड़कलां में एक घर बनाया था. भगत सिंह कुछ वक्त पंजाब में बने इस घर में रहे थे. ये घर अब एक संरक्षित स्मारक है. भागां वाला यानी किस्मत वाला. भगत सिंह की दादी ने उनके जन्म के समय उनके लिए यही कहा था. दादी की कही इस बात से ही नाम रखा गया भगत सिंह. इस गांव में जगह जगह भगत सिंह की प्रेरणा देने वाली तस्वीरें मौजूद हैं.
पंजाब के नवांशहर में मौजूद भगत सिंह का पैतृक गांव खटकड़ कलां चर्चा में है. सूबे के नए CM भगवंत मान ने यहां के भगत सिंह स्मारक में शपथ ली. जिसे शहीद भगत सिंह नगर भी कहा जाता है. खटकड़ कलां स्थित भगत सिंह के पूर्वजों का घर अब स्मारक है. इस जगह को चुनने वाली सरकार भगत सिंह के विचारों पर चलते हुए क्रांति लाना चाहती है. शपथ ग्रहण समारोह भव्य था जिस पर करीब 2 करोड़ खर्च हुआ. VIP पार्किंग के लिए गेंहू की अधपकी फसल काट दी गई. हालांकि ये काम आम आदमी की भलाई और भगत सिंह के विचारों से मेल नहीं खाते. इस से आप समझ सकते हैं कि भगत सिंह और उनके विचारों का इस्तेमाल केवल बड़ी बड़ी बातें करने के लिए किया गया है. यहां बात सिर्फ पंजाब में बनी AAP की सरकार की नहीं है. ऐसा बहुत कुछ है जो बताता है कि भगत सिंह के सपने अधूरे हैं.
91 साल पहले शहीद हो चुके नौजवान भगत सिंह के सपनों को भारत क्यों साकार नहीं कर पाया. ये सवाल भी प्रासंगिक बना हुआ है. भगत सिंह ने लाहौर जेल में फांसी से पहले जेलर के नाम एक पत्र लिखा था जिसमें लिखा था कि ये युद्ध तब तक चलता रहेगा, जब तक शक्तिशाली लोग भारत की जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर एकाधिकार जमाए रखेंगे, चाहे ऐसे लोग अंग्रेज पूंजीपति हों या अंग्रेज शासक अथवा कोई भारतीय ही क्यों न हों.
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