भारत समेत दुनिया भर के कई देशों में कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी की दूसरी लहर ने तांडव मचा रखा है. रोजाना लाखों की संख्या में लोग संक्रमित हो रहे हैं, जबकि कई लोग इस महामारी की चपेट में आकर अपनी जान गंवा चुके हैं. इसी बीच वैज्ञानिकों ने ऐसा बयान दिया है जिसे सुनकर सभी सतके में आ गए हैं. उनका कहना है कि बहुत जल्द लोग कोरोना के दो और वायरस की चपेट में आकर संक्रमित हो सकते हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ आईओवा के वायरोलॉजिस्ट स्टैनले पर्लमैन ने अपनी स्टडी में बताया कि कुछ साल पहले मलेशिया में 8 बच्चे बीमार हुए थे, जिन्हें निमोनिया की शिकायत थी. जब अस्पताल में इनका सैंपल जांच किया गया तो पता चला कि वो एक नए कोरोना वायरस से संक्रमित हैं, जो कुत्तों में पाया जाता है. ये बात भले ही पुरानी है, लेकिन अब भी वैश्विक स्तर पर लोगों के लिए खतरा बना हुआ है.
वैज्ञानिकों की जांच में ये भी पता चला है कि वायरस किसी भी इंसान या जीव में खुद को म्यूटेंट करने की क्षमता रखता है. इसके बारे में और जानने के लिए जब वैज्ञानिकों ने मलेशिया के एक मरीज में मिले कोरोना वायरस के जीनोम सिक्वेंसिंग की जांच की तो पा चला कि यहां पर 4 कोरोना वायरस मौजूद हैं. इसमें से दो कुत्तों में पाए जाते हैं. जबकि तीसरा बिल्ली में और चौथा एक सुअर में. इस संबंध में कई मीडिया रिपोर्ट्स भी अब तक छप चुकी हैं.
हालांकि कोरोना वायरस किस तरह एक प्रजाति के जीव से दूसरी प्रजाति के जीव में प्रवेश कर रहा है, इसकी जांच अभी पूरी नहीं हो पाई है. लेकिन वैज्ञानिकों ने जो कैनाइनलाइक कोरोना वायरस (Caninelike Coronavirus) और फैलाइन कोरोना वायरस (Feline Coronavirus) खोजे हैं, जिनसे लोगों के संक्रमण की खबर तो आई है, लेकिन क्या से एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल रहे हैं इसकी पुष्टि वैज्ञानिकों ने नहीं की है.
पहली रिपोर्ट में शोधकर्ता और ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी वूस्टर की वेटरीनरी वायरोलॉजिस्ट एनस्तेसिया व्लासोवा ने कहा कि कुत्तों में पाया जाने वाला कोरोना वायरस इंसानों में रेप्लीकेट यानी खुद को बढ़ा सकता है. हमने इस वायरस को कुत्तों के ट्यूमर सेल्स में विकसित किया है.
स्टैनले ने कहा, 'कुत्तों और बिल्लियों में पाया जाने वाला कोरोना वायरस दुनिया में हर जगह मौजूद है. मलेशिया में बच्चों में जो कोरोना वायरस मिला था वो भी कुत्तों से संबंधित था. इनके स्पाइक प्रोटीन कैनाइन कोरोना वायरस टाइप 1 से मिलते थे. वहीं दूसरे का स्पाइक प्रोटीन पोर्सीन कोरोना वायरस से मिलता था. इसे ट्रांसमिसेबल गैस्ट्रोएंट्राइटिटस वायरस या TGEV कहते हैं. ये बिल्लियों के स्पाइक प्रोटीन से 97 फीसदी मेल खाता है.
वहीं, टेक्सेस के एक वैज्ञानिक बताया कि इन सभी कोरोना वायरस का जन्म एकसाथ नहीं हुआ था. ये धीरे-धीरे एक जीव से दूसरे जीव में फैलता रहा और म्यूटेट करता रहा. इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया, जिससे ये वायरस तेजी से फैलता गया.
आपको बता दें कि जिन 8 बच्चों की जांच की गई उसमें से 7 बच्चे 5 साल से कम के हैं. जबकि 4 नवजात थे. ये सभी बच्चे 4 से 7 दिन अस्पताल में थे, उसके बाद ठीक होकर अपने घर चले गए. वैज्ञानिक कोरोना वायरस को चार जेनेरा में बांटते हैं- अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा. नए वाले को ही अल्फा कहा जा रहा है. यह तीसरा अल्फा वायरस है जो इंसानों को संक्रमित कर रहा है. बाकी दो अल्फा कोरोना वायरस आमतौर पर सर्दी जुकाम के लिए जिम्मेदार होते हैं.
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