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DNA ANALYSIS: रहाणे के घर के बाहर बोर्ड पर लिखा था W 5 4 3 2 1 0, जानें क्या है इसका मतलब?

आज हम ऑस्ट्रेलिया से टेस्ट सीरीज जीतकर अपने देश लौटे भारतीय क्रिकेट टीम के उन खिलाड़ियों की सफलता का विश्लेषण करेंगे, जिन्होंने ये साबित कर दिया है कि नाम बड़ा नहीं होता, काम बड़ा होता है. इन खिलाड़ियों ने बता दिया है कि अनुभव बड़ा नहीं होता है, योग्यता और सफलता की जिद सबसे बड़ी होती है.

टी. नटराजन

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टी. नटराजन

हमारे देश में क्रिकेट धर्म की तरह माना जाता है. ऑस्ट्रेलिया से क्रिकेट के नायक जब अपने घर लौटे तो उनका ऐसे स्वागत हुआ, जैसे भगवान धरती पर उतर आए हों. ये किसी नेता की चुनावी रैली नहीं है  न ही इस भीड़ को किसी ने पैसे देकर बुलाया है.  ये लोग खुद अपने नायक के स्वागत के लिए आए है क्योंकि, इन्होंने क्रिकेट के मैदान में एक बहुत मजबूत और अनुभवी टीम को हराया है.  इन्होंने ये विश्वास दिलाया है कि छोटी लड़ाईयां हारने के बावजूद हम बड़ा युद्ध जीत सकते हैं. युवा होने का जज्बा क्या होता है ये इन खिलाड़ियों ने समझाया है. जब हम दर्द चोट और विरोधियों के दिए अपमान को भुला देते हैं तो देश के लिए गौरव के बड़े मौके पैदा होते हैं.  जुबान नहीं प्रदर्शन से जवाब देने वाले ऐसे ही एक नायक हैं टी नटराजन. तमिलनाडु के सलेम जिले में टीम इंडिया के गेंदबाज टी नटराजन का जोरदार स्‍वागत किया गया. नटराज का गांव इसी जिले में है.  टी नटराजन यहां एक रथ पर बैठे नजर आए और पूरा गांव स्वागत के लिए पहुंचा.  ये बताता है कि नटराजन की कामयाबी कितनी बड़ी है. ये तस्वीरें बताने के लिए काफी हैं कि टीम इंडिया की ऑस्ट्रेलिया में मिली जीत कितनी बड़ी है. टेस्ट सीरीज जीतकर अपने घर लौटे टी नटराजन के स्वागत में पूरा गांव खड़ा आया. टी नटराजन की मां परिवार चलाने के लिए चाय की दुकान पर बैठती हैं. पिता मजदूरी करते हैं.  कुछ साल पहले इनके पास प्रैक्टिस करने के लिए लेदर बॉल तक नहीं थी और उन्होंने टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलना शुरू किया. ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टी नटराजन ने सिर्फ 1 टेस्ट मैच खेला, लेकिन 3 विकेट लेकर उन्होंने दिखा दिया कि भले ही उन्हें साथी खिलाड़ियों की चोट की वजह से टीम में एंट्री मिली है, लेकिन संघर्ष के बाद मिली सफलता अनमोल होती है.

अजिंक्य रहाणे

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अजिंक्य रहाणे

ऑस्ट्रेलिया में ऐतिहासिक जीत हासिल करने वाली टीम के कप्तान अजिंक्य रहाणे का स्वागत भी शानदार स्‍वागत हुआ.  उनके घर के बाहर एक बोर्ड लगाया गया था. जिस पर लिखा हुआ था W 5 4 3 2 1 0.

यहां W का मतलब है- रहाणे वर्ल्ड क्लास कप्तान हैं.

5 का मतलब- रहाणे ने 5 टेस्ट में कप्तानी की.

4 का मतलब- उनकी कप्तानी में भारत ने 4 टेस्ट जीते हैं.

3 का मतलब- रहाणे ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 3 टेस्ट मैच जीता है.

2 का मतलब- उन्होंने अपनी कप्तानी में 2 सीरीज जीती है.

1 का मतलब- उन्होंने अपनी कप्तानी में सिर्फ 1 टेस्ट ड्रॉ खेला है.

0 का मतलब- उनकी कप्तानी में कोई भी टेस्ट मैच भारत नहीं हारा है.

नेतृत्व की कुशलता त्याग की कसौटी पर कसी जाती है. इस टीम के असली कप्तान तो विराट कोहली थे. पर वो अपने पिता होने का दायित्व निभाने सीरीज बीच में छोड़ कर लौट आए. उनके घर में भी आज खुशियां हैं.  पर जब वो खुशी की इन तस्वीरों को देख रहे होंगे तो वो कैसा महसूस कर रहे होंगे? क्या उन्हें नहीं लग रहा होगा कि उन्‍होंने देश को खुशी देने का एक बड़ा मौका गंवा दिया है. पर विराट कोहली के फैसले ने देश को ये सोचने का मौका भी दिया है कि कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए, उसकी जगह लेने वाली प्रतिभा की कमी इस देश में नहीं है.  ये देश बराबरी पर खड़े मुकाबलों को जीतना सीख चुका है. सीमा को तोड़ कर उड़ना सीख चुका है, जो लोग हमें कम करके आंकते हैं उन्हें गलत साबित करना भी हम जानते हैं.  ये न्‍यू इंडिया है, जो जीतना सीख चुका है. 

वॉशिंगटन सुंदर

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वॉशिंगटन सुंदर

मेहनत से कामयाबी हासिल की जा सकती है. भले ही कितनी मुश्किलें आए हिम्मत नहीं हारनी चाहिए. वॉशिंगटन सुंदर की कहानी भी ऐसी ही है. 4 वर्ष में उनके पिता को पता चला कि सुंदर सिर्फ एक कान से ही सुन सकते हैं, लेकिन क्रिकेट के लिए उनके जुनून में कभी कमी नहीं आई. ऑस्ट्रेलिया में अपने पहले टेस्ट मैच में 4 विकेट और 84 रन बनाकर सुंदर ने साबित कर दिया कि उन्हें इसी मौके का इंतजार था.

मोहम्‍मद सिराज

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मोहम्‍मद सिराज

आपने विराट कोहली के पिता बनने के बाद कई तस्वीरें देखी होंगी. पर अब हम एक और तस्‍वीर की बात करेंगे. ये भी एक पिता से जुड़ी है जिन्हें उनका बेटा आखिरी वक्त में नहीं देख सका.  टीम इंडिया के तेज गेंदबाज मोहम्मद सिराज ऑस्ट्रेलिया से भारत लौटने के बाद सीधे अपने पिता की कब्र पर गए. अपने पिता की कब्र पर गए मोहम्‍मद सिराज की ये तस्‍वीर सामने आई जिसमें छिपा दर्द हमें समझना चाहिए. सिराज जब ऑस्ट्रेलिया में थे, तब उनके पिता की मौत हो गई थी. लेकिन सिराज उस वक्त अपने देश वापस नहीं लौटे. दृढ़ निश्चय के साथ उन्होंने टेस्ट सीरीज में डेब्‍यू किया और भारत की ओर से सबसे ज्‍यादा विकेट लेने वाले बॉलर बन गए. सिराज ने अपने पिता का सपना तो पूरा कर दिया, लेकिन उनके पिता ये देखने के लिए इस दुनिया में नहीं थे. सिराज की मां ने जब उन्हें पिता के देहांत की बात बताई,  तो साथ में ये भी कहा कि तुम देश के लिए खेलो. अपने दुख से आगे देश के गर्व को रखो.  पिता के दायित्व और मातृभूमि के प्रति कर्तव्य के बीच गेंदबाज मोहम्मद सिराज ने संतुलन बनाया और देश को गौरव का मौका दिया. इतिहास बनाने के बावजूद अपने को खोने का गम क्या होता है. वो आप इस तस्वीर को देखकर समझ सकते हैं. ये तस्‍वीर है, भारतीय टीम के तेज गेंदबाज मोहम्मद सिराज की. ऑस्ट्रेलिया से टेस्ट सीरीज जीतने के बाद देश लौटे सिराज, हैदराबाद एयरपोर्ट से सीधे अपने पिता की कब्र पर गए. उन्‍होंने वहां फूल चढ़ाए और नम आंखों से उन्‍हें याद किया. एक साधारण से परिवार से आने वाले मोहम्मद सिराज के संघर्ष की कहानी भी आज आपको जरूर जाननी चाहिए.  सिराज के पिता मोहम्मद गौस ऑटोरिक्शा ड्राइवर थे.  जब तक सिराज को फर्स्‍ट क्‍लास क्रिकेट खेलने का मौका नहीं मिला था, तब तक उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. लेकिन उनका सपना था कि सिराज भारत की तरफ से खेले. पर वो अपने बेटे को देश के लिए टेस्ट क्रिकेट में विकेट लेते हुए नहीं देख सके.  62 दिन पहले 20 नवंबर को उनके पिता की फेफड़े की बीमारी से मौत हो गई.  उस वक्त मोहम्मद सिराज ऑस्ट्रेलिया में थे. सख्त कोरोना प्रोटोकॉल की वजह से सिराज ने वहीं रुकने का फैसला किया. मुश्किल वक्‍त में सिराज ने हौसला नहीं खोया और इसके बाद जो हुआ वो पूरी दुनिया को पता है.

शार्दुल ठाकुर

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शार्दुल ठाकुर

टीम इंडिया के ऑल राउंडर शार्दुल ठाकुर की कहानी भी उन लोगों के लिए प्रेरणा है, जिनका सपना भारत की तरफ से क्रिकेट खेलना है. शार्दुल ठाकुर पूरी टेस्ट सीरीज में सिर्फ 1 मैच में ही खेले,  लेकिन उन्होंने बैट और बॉल दोनों से ऐसी बेहतरीन परफॉरमेंस दी, जो ऑस्ट्रेलिया को ब्रिसबेन टेस्ट में हराने के लिए काफी था. शार्दुल ठाकुर का परिवार मुंबई से 87 किलोमीटर दूर पालघर के गांव में वर्षों से रह रहा है. क्रिकेट के लिए शार्दुल का जुनून ऐसा था कि वो सुबह 4 बजे उठकर 5 बजे की ट्रेन पकड़कर बोरीवली जाते थे, ताकि अपने स्कूल के लिए क्रिकेट खेल सके. इसलिए उनका नाम पालघर एक्सप्रेस भी पड़ा. हर दिन 3 घंटे ट्रेन में सफर की वजह से वो बचपन में मानसिक रूप से मजबूत थे. शार्दुल ठाकुर के पिता बताते हैं कि वो शार्दुल की इस काबिलियत को बहुत पहले पहचान चुके थे इसलिए वो हमेशा अपने बेटे को क्रिकेट खेलने के लिए प्रेरित करते थे. 

नवदीप सैनी

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नवदीप सैनी

भारत के तेज गेंदबाज नवदीप सैनी का देश के लिए टेस्ट खेलना, सपने के पूरे होने जैसा है. सीनियर खिलाड़ियों की चोट ने इन्हें भी टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू का मौका मिल गया. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2 टेस्ट मैच में उन्होंने 4 विकेट लिए. हरियाणा के करनाल से ऑस्ट्रेलिया तक का सफर नवदीप सैनी के लिए सपने जैसा है. उनके पिता सरकारी ड्राइवर थे. आमदनी इतनी नहीं थी कि बेटे के लिए क्रिकेट एकेडमी की फीस भर सकें.  लेकिन नवदीप सैनी ने हिम्मत नहीं हारी.  टेनिस बॉल से बॉलिंग की प्रैक्टिस जारी रखी और अब वो भारतीय क्रिकेट टीम के चमकते सितारे हैं.

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