नई नीति के तहत अब अंडर ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और डिप्लोमा स्तर के मेडिकल कोर्सेज में एडमिशन के लिए OBC समुदाय के छात्रों को 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को 10 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा. अभी ये व्यवस्था OBC समुदाय के छात्रों के लिए सिर्फ केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में थी, लेकिन अब राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में भी छात्रों को आरक्षण का फायदा मिलेगा.
ये ऐतिहासिक इसलिए भी है क्योंकि, आजादी के बाद से 73 वर्षों में देश में ऐसी व्यवस्था नहीं थी. मोदी सरकार का ये फैसला इसी सत्र से यानी 2021-2022 से लागू हो जाएगा. इसमें ऑल इंडिया कोटा स्कीम के तहत OBC समुदाय और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को MBBS, Doctor Of Medicine, Master of Surgery, Diploma, Bachelor of Dental Surgery और MDS के Medical Courses में आऱक्षण के आधार पर दाखिला मिल सकेगा.
ऑल इंडिया कोटा स्कीम की शुरुआत वर्ष 1986 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर हुई थी. तब इस स्कीम के तहत ये व्यवस्था की गई कि छात्र दूसरे राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में भी प्रवेश ले सकें.
उस समय अंडरग्रेजुएट की 15 प्रतिशत सीटें और पोस्ट ग्रेजुएट की 50 प्रतिशत सीटें दूसरे राज्यों के छात्रों के लिए आरक्षित की गईं.
हालांकि वर्ष 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने ही इसी ऑल इंडिया कोटा स्कीम में Scheduled Caste के लिए 15 प्रतिशत सीटें और Scheduled Tribes के लिए 7.5 प्रतिशत सीटों के आरक्षण को मंजूरी दे दी.
सरल शब्दों में कहें, तो ऑल इंडिया कोटा स्कीम में Under Graduate के लिए जो 15 प्रतिशत सीटें और Post Graduate की जो 50 प्रतिशत सीटें थीं, उन्हीं में से SC और ST समुदाय के छात्रों को आरक्षण दिया गया और अब जो OBC समुदाय को 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को 10 प्रतिशत आरक्षण मिला है, वो भी इसी कोटे से है. इस फैसले से मौजूदा सत्र में OBC समुदाय और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के 5 हजार 550 छात्रों को फायदा मिलेगा.
वर्ष 1980 में आई मंडल कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक, तब देश में OBC समुदाय की कुल आबादी लगभग 52 प्रतिशत थी. इसके लिए तब Mandal Commission ने 1931 की जनगणता के आंकड़ों के आधार बनाया था. 1931 की जनगणना हमारे देश की आखिरी ऐसी जनगणना थी, जिसमें जातियों के हिसाब से जनगणना की गई थी.
हालांकि इसमें एक खामी ये थी कि तब नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की व्यवस्था शुरू नहीं हुई थी और काफी लोगों ने खुद को ऊंची जातियों का बताया था. यानी अगर लोग ईमानदारी से बताते तो OBC समुदाय की आबादी और ज्यादा होती.
वर्ष 2007 में जब National Sample Survey Organisation ने अपनी एक रिपोर्ट पेश की तो इसमें बताया गया कि देश में OBC समुदाय की आबादी 41 प्रतिशत है. हालांकि अनौपचारिक आंकड़े के मुताबिक, देश की कुल आबादी में OBC समुदाय की हिस्सेदारी 54 प्रतिशत है. यानी आज जो फैसला लिया है, जो वो इस विशाल समुदाय को सीधे तौर पर साधने का काम करेगी.
पिछले कुछ वर्षों में मोदी सरकार का जोर OBC समुदाय पर ज्यादा रहा है. अभी जब केंद्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ था तो सरकार में OBC समुदाय के मंत्रियों की संख्या 27 हो गई थी और आजाद भारत में ऐसा पहली बार हुआ, जब इस समुदाय को भारत की सरकार में इतना बड़ा प्रतिनिधित्व मिला. बड़ी बात ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद OBC समुदाय से आते हैं.
इस फैसले का एक बड़ा प्रभाव उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधान सभा चुनावों पर भी दिख सकता है. उत्तर प्रदेश में OBC समुदाय की आबादी से 42 से 52 प्रतिशत के बीच है. ये अनौपचारिक आंकड़ा है. सही आंकड़ा इससे थोड़ा ज्यादा ही हो सकता है.
हालांकि हो सकता है कि आज केंद्र सरकार के इस फैसले से ऊंची जातियों के लोगों में नाराजगी बढ़ जाए. ऐसे लोग सरकार से नाराज हो जाएं, जो आरक्षण का विरोध करते हैं और सबको समान अवसर की बात करते हैं. इसलिए इस फैसले के जहां फायदे दिखते हैं तो कुछ नुकसान भी इसमें हैं.
मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण के इस फैसले के साथ आज देश की नई शिक्षा नीति को भी एक साल पूरे हो गए. वैसे तो कोरोना वायरस की वजह से हमारे देश के स्कूल और कॉलेज पिछले डेढ़ वर्षों से बंद हैं, लेकिन ये शिक्षा नीति अपना काम लगातार कर रही है. इस पर कोई ताला नहीं लगा है. प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि नई शिक्षा नीति के तहत 8 राज्यों के 14 इंजीनियरिंग कॉलेज, 5 भारतीय भाषाओं हिंदी तमिल, तेलुगू, मराठी और बांग्ला में इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू करने जा रहे हैं. शिक्षा नीति के एक साल पूरे होने के साथ आज आपको ये बात याद रखनी है कि आरक्षण पर केंद्र सरकार का ये फैसला लंबे समय तक अपना प्रभाव रखेगा. हालांकि इसके भी कुछ साइड इफेक्ट्स दिख सकते हैं.
इंजीनियरिंग के कोर्स का 11 भारतीय भाषाओं में ट्रांसलेशन के लिए एक टूल भी डेवलप किया जा चुका है. इसके अलावा साइन लैंग्वेज को पहली बार एक भाषा विषय यानी एक सब्जेक्ट का दर्जा प्रदान किया गया है. अब छात्र इसे एक भाषा के तौर पर भी पढ़ पाएंगे. इससे भारतीय साइन लैंग्वेज को बहुत बढ़ावा मिलेगा और दिव्यांगों को भी मदद मिलेगी.
ट्रेन्डिंग फोटोज़