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DNA: अगर सरदार पटेल भी जरूरत से ज्यादा लोकतंत्र के पक्ष में होते, तो क्या होता भारत का भविष्य?

भारत के आज़ाद होने के बाद अंग्रेजों ने कहा था कि '15 वर्षों में भी कोई भारत की 565 रियासतों को जोड़ नहीं सकता'. लेकिन सरदार पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) ने लगभग 2 वर्षों में ही पूरे भारत को एक सूत्र में बांध दिया.

सरदार पटेल के सामने सबसे बड़ी चुनौती

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सरदार पटेल के सामने सबसे बड़ी चुनौती

अगर सरदार पटेल भी जरूरत से ज्यादा लोकतंत्र के पक्ष में होते तो शायद वो 500 से ज्यादा रियासतों का विलय नहीं कर पाते और शायद लोकतंत्र की अति का प्रयोग करके कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ जैसी रियासतें भारत में अपना विलय होने ही नहीं देती. इन रियासतों में कश्मीर और हैदराबाद का भारत में विलय सरदार पटेल के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी. भारत के आज़ाद होने के बाद अंग्रेजों ने कहा था कि '15 वर्षों में भी कोई भारत की 565 रियासतों को जोड़ नहीं सकता'. लेकिन सरदार पटेल ने लगभग 2 वर्षों में ही पूरे भारत को एक सूत्र में बांध दिया.

565 रियासतों का भारत में विलय

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565 रियासतों का भारत में विलय

ये बिल्कुल भी आसान नहीं था क्योंकि, आज़ादी से पहले भारत के एक बड़े हिस्से पर अंग्रेज़ सीधे हुकूमत कर रहे थे और दूसरा हिस्सा वो था, जिस पर राजाओं और रजवाड़ों की हुकूमत थी. ये ऐसी रियासतें थीं, जो ब्रिटेन की महारानी की गुलामी स्वीकार कर चुकी थीं. इनमें से कई राजाओं के पास अपनी सेनाएं थीं और कुछ राजाओं के पास लड़ाकू विमान भी थे. यानी इन 565 रियासतों का भारत में विलय करना आसान काम नहीं था.

कूटनीति से हैदराबाद के नवाब को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया

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कूटनीति से हैदराबाद के नवाब को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया

तब सरदार पटेल ने अपनी कूटनीति से हैदराबाद के नवाब को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था. इसी तरह उनकी कोशिशों की वजह से ही नवंबर 1948 में भारतीय सेना की मदद से जूनागढ़ रियासत को भी भारत में शामिल किया गया था. हालांकि, कश्मीर के मुद्दे से सरदार पटेल को जानबूझकर दूर रखा गया. देश का गृहमंत्री होने के नाते उन्हें वो ताकत नहीं दी गई जिसके वो हकदार थे.

अखंड भारत का निर्माण

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अखंड भारत का निर्माण

इन मुश्किलों के बावजूद सरदार पटेल ने कुछ ही वर्षों में इन रियासतों को एक सूत्र में बांधकर अखंड भारत का निर्माण किया था. इसके बाद वर्ष 1950 में संविधान लागू हुआ और भारत एक लोकतांत्रिक देश बन गया. महापुरुषों का सबसे बड़ा गुण होता है, दूरदर्शिता. दूरदर्शिता यानी भविष्य में क्या होने वाला है. ये बहुत पहले ही जान लेना. सरदार पटेल भी बहुत दूरदर्शी थे. आजादी के 73 वर्षों बाद आज भी सरदार पटेल प्रासंगिक हैं. 

दशहरे के मौके पर यादगार भाषण

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 दशहरे के मौके पर यादगार भाषण

आजादी के सिर्फ 56 दिनों के बाद ही दशहरे के मौके पर दिए गए अपने एक भाषण में उन्होंने साफ कर दिया था कि अगर देश में सब अपनी मांगे मनवाने के लिए एक दूसरे के खिलाफ ऐसे ही लड़ते रहे, तो ये देश कभी आगे नहीं बढ़ पाएगा. 

सरदार पटेल नहीं होते तो...

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सरदार पटेल नहीं होते तो...

उन्होंने जो बात 73 वर्ष पहले कही थी, वो आज भी प्रासंगिक है. सरदार वल्लभ भाई पटेल को लौह पुरुष भी कहा जाता है और इसकी एक वजह थी, उनके वो कड़े फैसले जो उन्होंने देश की भलाई को ध्यान में रखकर लिये थे. अगर उस समय सरदार पटेल नहीं होते तो आज जम्मू-कश्मीर जैसी हालत देश के कई और प्रांतों की होती. शायद जूनागढ़ और हैदराबाद का भी पाकिस्तान में विलय हो गया होता और ये इलाके हमेशा के लिए नासूर बन जाते.

 

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