रितिका ने 15 मार्च को हरियाणा के चरखी दादरी में आत्महत्या कर ली, जहां वो अंतरराष्ट्रीय रेसलर गीता फोगाट और बबीता फोगाट के पिता और कुश्ती के मशहूर कोच महावीर फोगाट की Academy में पिछले पांच साल से ट्रेनिंग ले रही थी. वो गीता और बबीता के मामा की बेटी थी और महावीर फोगाट रिश्ते में उसके फूफा लगते थे. आपको याद होगा इस परिवार पर दंगल नाम से एक फिल्म भी बन चुकी है. जो सुपरहिट हुई थी. लेकिन जिस Academy में कुश्ती सीखने के लिए वो राजस्थान के झूंझुनू से लगभग 100 किलोमीटर दूर हरियाणा के चरखी दादरी आईं, वहीं उसने आत्महत्या कर ली. और इस आत्महत्या की वजह बना कुश्ती का वो एक Point, जिसने रितिका को हमेशा के लिए उसके परिवार से दूर कर दिया. यहां हम कहना चाहते हैं कि खरा सोना तपके ही बनता है लेकिन आज कल की जो नई पीढ़ी है वो असफलता की तपिश में तपना नहीं चाहती है. रितिका ने इसी महीने की 14 तारीख को राजस्थान के भरतपुर में खेली गई एक राज्य स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था और 53 किलोग्राम भार वर्ग में उसका फाइनल मुकाबला भीलवाड़ा की एक खिलाड़ी से था, जिसका नाम मायामाली है. इस मुकाबले के कुछ महत्वपूर्ण Videos भी हैं, जिन्हें आपको बहुत ध्यान से देखना चाहिए. इसमें रितिका भी नजर आ रही हैं और इस मुकाबले को जीतने वाली भीलवाड़ा की रेसलर भी है. दोनों के बीच 6 मिनट में तीन राउंड खेले गए और ऐसा दावा है कि एक-एक राउंड बराबर होने के बाद तीसरे राउंड में रितिका एक Point से प्रतियोगिता हार गईं.
हालांकि कुश्ती के दांव पेंच की तरह इस कहानी में भी कुछ दांव पेंच हैं. एक पक्ष तो ये है कि रितिका ने इसलिए आत्महत्या की क्योंकि वो फाइनल मुकाबले में एक Point की हार की वजह से काफी निराश थी. लेकिन एक पहलू ये भी अब सामने आ रहा है कि रितिका ने असल में ये मुकाबला जीत लिया था और बाद में जब इस फैसले पर विवाद हुआ तो निर्णय बदल दिया गया और रितिका ये मुकाबला हार गईं. उस समय के वीडियो में कुछ लोग रितिका की हार को लेकर नाराजगी जाहिर कर रहे हैं और उन्होंने उस समय इस फैसले पर सवाल उठाए थे. आरोप तो यहां तक है कि रितिका से ये जीत सिर्फ इसलिए छीन ली गई क्योंकि जो खिलाड़ी पहले हार गई थी, उसकी आंखों में आंसू थे और उसे भावुक देख कर महावीर फोगाट ने ही नतीजे को बदल दिया. यानी आरोप है कि दूसरी रेसलर को जिताने के लिए रितिका को जानबूझ कर हरा दिया गया और वो ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाईं. अगर इस कहानी के सभी पन्नों को पलट कर देखें तो पांच बातें उभर कर सामने आती हैं पहली बात ये कि रितिका इस प्रतियोगिता में हार की वजह से निराश थी. दूसरी बात ये कि हो सकता है उसे इस बात से काफी धक्का लगा कि नतीजा उसके पक्ष में नहीं आया. तीसरी बात ये कि वो अपनी हार को लेकर अपने फूफा महावीर फोगाट से नाराज थी. चौथी बात ये कि अगर इस मुकाबले के नतीजे को लेकर विवाद नहीं था तो फिर वहां इस पर हंगामा क्यों हुआ? और पांचवीं बात ये कि 17 साल की जिस रेसलर ने अपनी जिंदगी का ज्यादातर समय कुश्ती के दांव पेंच सीखने में लगा दिया, वो इस हार की वजह से इतनी टूट गई थी कि उसने आत्महत्या कर ली.
आज हम आपसे यहां ये कहना चाहते हैं कि आत्महत्या करना कभी भी किसी समस्या का समाधान नहीं होता. अगर आप अपनी नौकरी से खुश नहीं हैं. तो आप इसे छोड़ सकते हैं. अगर आप किसी रिश्ते से खुश नहीं हैं तो आप उससे भी अलग हो सकते हैं. लेकिन जीवन के साथ आप ऐसा नहीं कर सकते. क्योंकि जीवन का निर्माण आपने नहीं किया है और जिसका निर्माण आप नहीं करते उसे नष्ट करने का अधिकार भी आपके पास नहीं है. ये खबर आपको दिखाई जाए या नहीं, इसके बारे में हमने आज बहुत सोचा. क्योंकि आत्महत्या की खबर और उसके तरीके के बारे में बताना आत्महत्या को महिमा मंडित करने जैसा होता है. और इसे लेकर हमें कई गाइडलाइंस का पालन करना होता है. आज रितिका हमारे बीच नहीं हैं. लेकिन हम चाहते हैं कि इस आत्महत्या का सच आप तक पहुंचे. जिसके लिए हमने एक रिपोर्ट तैयार की है और ये रिपोर्ट देख कर आपको पता चलेगा कि आखिर 14 मार्च को खेले गए इस मुकाबले के बाद ऐसा क्या हुआ कि 17 साल की जो रेसलर देश के लिए ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल लाना चाहती थी, उसे एक हार ने एक झटके में हरा दिया.
रितिका सिर्फ 17 साल की थी. लेकिन उनके सपने काफी बड़े थे. वो देश के लिए ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल जीतना चाहती थी. लेकिन उनके इस सपने को सिर्फ Point ने तोड़ दिया. रेसलर रितिका जो पिछले 5 वर्षों से कुश्ती के दांव पेंच सीख रही थी वो जिंदगी के दांव पेंच से हार गई. और राजस्थान के भरतपुर में खेली गई कुश्ती प्रतियोगिता उसके जीवन की आखिरी प्रतियोगिता बन गई. और इस प्रतियोगिता ने कई सवाल खड़े कर दिए. राजस्थान के भरतपुर में 14 मार्च को एक कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन हुआ था. और रितिका भी इसका हिस्सा थी. वो 53 किलोग्राम भार वर्ग के फाइनल मुकाबले में पहुंच गई थी. लेकिन इस मुकाबले का नतीजा उसके पक्ष में नहीं आया. और वो एक Point से हार गई. पुलिस का कहना है कि इसी हार ने उसे अंदर तक तोड़ दिया और उसने आत्महत्या जैसा बड़ा कदम उठा लिया.
Zee News ने जब इस कहानी के सभी पन्नों को पलटना शुरू किया तो हमें पता चला कि उस मुकाबले के दौरान जो लोग वहां मौजूद थे उनका आरोप है कि रितिका के साथ बेईमानी हुई और उसे जानबूझ कर हराया गया. हमारी टीम इसके लिए राजस्थान के भरपुतर तक पहुंची और हमने इस दौरान कुछ खिलाड़ियों से भी बात की. जिनका कहना है कि इस प्रतियोगिता में कई तरह की गड़बड़ियां हुईं. इन बातों से इस प्रतियोगिता के दौरान जो कुछ घटा और बताया गया, उस पर संदेह होता है और इससे ये भी मालूम चलता है कि हो सकता है रितिका इसी वजह से निराश थी क्योंकि उसे मुकाबले में जानबूझ कर हराया गया. रितिका का परिवार राजस्थान के झुंझुनू में रहता है और रितिका 5 साल पहले ही झुंझुनू से हरियाणा के चरखी दादरी में कुश्ती सीखने के लिए अपने फूफा महावीर फोगाट की Academy में पहुंची थी. परिवार के लोगों का कहना है कि महावीर फोगाट ने उन्हें भरोसा दिया था कि रितिका देश के लिए खेलेगी. आज जब हमारी टीम रितिका के घर पहुंची तो उन्होंने हमें बताया कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि रितिका के मन में उस मुकाबले के बाद क्या चल रहा था. परिवार के बड़े बुजुर्ग रितिका की मौत से सदमे में भी दिखे.
रितिका 5 साल से अपने परिवार से दूर थी. यानी वो 12 साल की थी जब वो कुश्ती सीखने के लिए हरियाणा आई. और कुश्ती के साथ जिंदगी के दांव पेंच भी वो यहीं सीख रही थी. लेकिन अचानक से उसने आत्महत्या कर ली. जिसने सभी लोगों को सन्न कर दिया. हालांकि इस घटना के बाद जब हमारी टीम महावीर फोगाट की Academy पहुंची तो हमें वहां कोई नहीं मिला. इस पूरे मामले में जो बात सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है वो ये कि जिस मुकाबले में अपनी हार को लेकर रितिका निराश थी. उसे नतीजे को लेकर तब वहां काफी हंगामा हुआ था. और ऐसे में ये जांच का विषय है कि क्या इस मुकाबले में नतीजों को प्रभावित किया गया था या बदला गया था. जिसकी वजह से रितिका को सदमा लगा.
आज ये समझना भी जरूरी है कि जब एक खिलाड़ी या कोई बड़ा Celebrity डिप्रेशन में होता है तो इसकी क्या वजह होती है. किसी भी बड़े Celebrity को देख कर हमें लगता है कि उनके जीवन में क्या कमी है. उनके पास दौलत है, शोहरत है और हर सुविधा मौजूद है. और इसी तरह एक खिलाड़ी को देख कर भी हमें यही लगता है कि उसके जीवन में संघर्ष नहीं है जबकि ऐसा नहीं होता. एक खिलाड़ी पर हर मैच से पहले दबाव होता है और जब जब वो मैदान पर उतरता है तो उससे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जाती है. इसी तरह से Celebrity होते हैं, जिन पर हर Show से पहले और हर फिल्म से पहले दबाव होता है. और जब वो फेल होते हैं तो इसका उन पर प्रभाव भी कहीं ज्यादा होता है.
यानी आप जब किसी Champion को देखते हैं, किसी बहुत बड़े Super Star को देखते हैं तो आपको उसका जीवन बहुत अच्छा लगता है और आप सोचते हैं कि उसके जीवन में सिर्फ चकाचौंध है. लेकिन हकीकत सिक्के के दो पहलू की तरह होती है. और आपको वही पहलू दिखता है जो सबके सामने है लेकिन दूसरा पहलू कभी सामने नहीं आता और मानसिक स्वास्थ्य का यही विज्ञान है.
पिछले वर्ष जब सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या की तब इस घटना ने करोड़ों लोगों की संवेदनाओं को छुआ और लोगों को यही लगा जो अभिनेता उन्हें पर्दे पर इतना खुश दिखता है जिसके पास सारी सुविधाए हैं, पैसा है और प्रतिभाशाली है. वो अभिनेता कैसे इतना बड़ा कदम उठा सकता है. बहुत से लोगों के लिए आज भी यकीन करना मुश्किल है कि सुशांत सिंह राजपूत अब हमारे बीच नहीं हैं. और आज भी सोशल मीडिया पर उन्हें इंसाफ दिलाने के लिए लगातार आवाज उठाई जाती है और हम इस आवाज का सम्मान करते हैं और हम भी ये चाहते हैं कि उनकी मौत का सच देश के सामने आना चाहिए.
लेकिन हमें यहां ये भी याद रखना चाहिए सुशांत सिंह राजपूत एक Super Star होने के साथ एक इंसान भी थे. और उनकी भी कुछ चुनौतियां थी और उनका जीवन आसान नहीं था. इसे आप इस चित्र से भी समझ सकते हैं जो हमने सोशल मीडिया से लिया है. इसमें एक व्यक्ति है जो जिंदगी की पिच पर बैटिंग कर रहा है और दूसरी तरफ वो चुनौतियां और मुश्किलें हैं जो आपके आउट होने का इंतजार कर रही हैं. यानी जिंदगी की पिच पर बैटिंग करना कभी भी आसान नहीं होता. हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि आत्महत्या करना सही है. आत्महत्या करना पाप है. और ये खुद पर की गई एक ऐसी हिंसा है, जिसके लिए भगवान भी कभी माफ नहीं करता.
हिंदू धर्म में आत्महत्या को पाप माना गया है. कहा जाता है कि आत्महत्या करने वाले को कभी मोक्ष नहीं मिलता और उसकी आत्मा यहीं पर भटकती रहती है. यानी आत्महत्या करने से भी जीवन के कष्टों से छुटकारा नहीं मिलता. इसके बावजूद ये सिलसिला हजारों वर्षों से चला आ रहा है. यानी जीवन की शुरुआत के साथ ही मनुष्य ने इसे खत्म करने के तरीके और बहाने भी तलाश लिए. आज जब आप किसी व्यक्ति से ये पूछते हैं कि वो कैसा है तो जवाब एक ही मिलता है कि मैं ठीक हूं. आप कैसे हैं और जब ये सवाल आपसे होता है तो आप भी मुस्कुरा कर कह देते हैं कि मैं भी ठीक हूं. लेकिन हम मानसिक रूप से कितने स्वस्थ हैं और कितने ठीक हैं आज इसका विश्लेषण करना भी बहुत जरूरी है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, भारत में 6 करोड़ लोग डिप्रेशन के शिकार हैं और 4 करोड़ लोगों को Anxiety Disorder है. भारत में 37 प्रतिशत आत्महत्याएं रिश्तों की वजह से होती हैं. यानी लोग जिन रिश्तों के लिए जीवन जीते हैं वही रिश्ते अब लोगों की जान ले रहे हैं. ये एक नष्ट होते समाज की निशानी है और हमें इसे बदलना ही होगा. हमारे देश में हर साल औसतन 1 लाख 35 हजार से ज्यादा लोग आत्महत्या कर लेते हैं. जबकि सड़क हादसों में मरने वाले भारतीयों की संख्या 1 लाख 50 हजार है. आतंकवादी और नक्सली हमलों में पिछले वर्ष 400 लोग मारे गए थे. भारत में सबसे दुखी करने वाली बात युवाओं की आत्महत्या के आंकड़े हैं. भारत में आत्महत्या करने वालों में 33 प्रतिशत लोगों की उम्र 30 से 45 साल के बीच होती है. जबकि करीब 32 प्रतिशत लोगों की उम्र 18 से 30 साल के बीच होती है.
मतलब ये कि युवाओं में जिंदा रहने या फिर जिंदादिली के साथ जीने की चाहत कम हुई है. आत्महत्या के मामले में दक्षिण एशियाई देशों के बीच भारत का पहला नंबर है. आत्महत्या से होने वाली मौतों के मामले में भारत पूरी दुनिया में TOP 25 देशों में शामिल है. भारत इस लिस्ट में 19वें नंबर पर है. जबकि भारत के पड़ोसी देशों की Ranking हमसे बहुत बेहतर है. भारत के बाद इस लिस्ट में पहला स्थान श्रीलंका का है जो 31वें नंबर पर है. चीन 103वें स्थान पर है. यानी वहां पर आत्महत्या की घटनाएं भारत के मुकाबले बहुत कम होती हैं.
हमने आपसे कहा था कि जब हड्डी टूट जाती है तब आप डॉक्टर के पास जाते हैं लेकिन जब मन टूट जाता है तब आप किसके पास जाते हैं. हड्डी टूटने पर तो Plaster लगा लेते हैं, परहेज करते हैं और आराम भी कर लेते हैं. लेकिन मन टूटने पर Plaster कहां लगता है, परहेज कहां करते हैं, आराम कैसे करते हैं और मरहम पट्टी कहां कराते हैं. आज हम आपसे कहना चाहते हैं कि जैसे टूटी हुई हड्डी को इलाज की जरूरत होती है. ठीक उसी तरह टूट हुए मन को भी इलाज की जरूरत होती है. इसलिए मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज ना करें. क्योंकि मनोस्थिति ही वो अकेली शक्ति है जो आपकी पारिवारिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति को ऊर्जा देती है और आपके मन को स्वस्थ रखती है. हालांकि आज की एक कड़वी सच्चाई ये भी है कि आज दुनिया Space तक तो पहुंच गई है लेकिन इंसान अपने मन के अंदर के Space तक नहीं पहुंच पाया है. और इसकी सबसे बड़ी बड़ी वजह है मानसिक स्वास्थ्य सही नहीं होना.
मानसिक बीमारियों की वजह से हर साल दुनियाभर में 8 लाख लोग अपनी जान गंवा देते हैं. और इसे Silent Pandemic भी कहा जाता है. लोगों को ज्यादातर मानसिक बीमारियां 14 साल की उम्र से ही शुरू हो जाती हैं. हालांकि इसका इलाज कराना लोगों के लिए आसान नहीं है.
इसके लिए पहली लड़ाई तो घर से ही शुरू होती है. क्योंकि परिवार के लोग इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं होते कि उनका कोई सदस्य मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है. और अगर कोई व्यक्ति इसके बारे में हिम्मत करके बता भी देता है तो इस मानसिक बीमारी से लड़ने के लिए हम छुट्टियों पर जाना ज्यादा बेहतर समझते हैं. हमें लगता है कि कहीं बाहर घूमने जाने से ये समस्या हल हो जाएगी.
दूसरी चुनौती है कि दुनिया में मानसिक बीमारियों और डिप्रेशन के शिकार लोगों की मदद के लिए ज्यादा डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं. WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लगभग तीन लाख लोगों पर सिर्फ एक Psychiatrist मौजूद है. जबकि एक लाख लोगों पर एक Psychologist उपलब्ध है.
तीसरी चुनौती है कि भारत में इस बीमारी का इलाज काफी महंगा है. हमारे देश में अगर कोई व्यक्ति डिप्रेशन से पीड़ित है तो उसे एक घंटे के Counseling Session के लिए लगभग तीन हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं. सोचिए महीने में अगर इस तरह के 10 सेशन भी हों तो सीधे-सीधे 30 हजार रुपये का खर्च है. और भारत में ऐसे करोड़ों लोग हैं जो महीने के 15 हजार रुपये भी नहीं कमा पाते.
बड़ी बात ये है कि दुनिया में भले ज्यादा Psychiatrist और Psychologist ना हों लेकिन इसका व्यापार 9 लाख करोड़ रुपये का है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लगभग 27 करोड़ लोग डिप्रेशन के शिकार हैं और समझने वाली बात ये है कि हमारे देश में 10 जरूरतमंद लोगों में से केवल एक ही व्यक्ति को इलाज मिल पाता है. और ऐसा इसलिए है क्योंकि हम डिप्रेशन को मानसिक बीमारी मानते ही नहीं है. लोगों को लगता है कि अगर वो ये कहेंगे कि उन्हें कोई मानसिक बीमारी है तो उन्हें पागल कहा जाएगा और बोला जाएगा कि वो एक दिन दिन की छुट्टी ले लें. सब सही हो जाएगा.
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