न्यूज एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, नीलकुरिंजी फूल (Neelakurinji Flowers) बेहद ही दुर्लभ हैं और ये 12 सालों में सिर्फ एक बार खिलते हैं. नीलकुरिंजी एक मोनोकार्पिक पौधा होता है, जो खिलने के बाद जल्दी ही मुरझा भी जाता है और फिर इसे दोबारा खिलने में 12 साल का लंबा समय लग जाता है. (फोटो सोर्स- एएनआई)
नीलकुरिंजी फूल (Neelakurinji Flowers) की खास बात है कि ये सिर्फ भारत में ही खिलते हैं. नीलकुरिंजी फूल आमतौर पर केरल के अलावा तमिलनाडु में भी अगस्त से लेकर अक्टूबर तक खिलते हैं. (फोटो सोर्स- केरल टूरिज्म)
नीलकुरिंजी फूल (Neelakurinji Flowers) का भारत में एक सांस्कृतिक महत्व भी है. हिंदू अखबार के पूर्व संपादक रॉय मैथ्यू ने अपनी किताब में बताया है कि केरल की मुथुवन जनजाति के लोग इस फूल को रोमांस और प्रेम का प्रतीक मानते हैं. कथाओं के मुताबिक इस जनजाति के भगवान मुरुगा ने इनकी जनजाति की शिकारी लड़की वेली से नीलकुरिंजी फूलों की माला पहनाकर शादी की थी. इसी तरह पश्चिमी घाट की पलियान जनजाति के लोग उम्र का हिसाब इस फूल के खिलने से लगाते हैं. (फोटो सोर्स- केरल टूरिज्म)
नीलकुरिंजी फूल (Neelakurinji Flowers) के लिए कुरिंजीमाला नाम का संरक्षित क्षेत्र यानी सैंक्चुअरी भी है, जो मुन्नार से 45 किलोमीटर दूर है. 2006 में केरल के जंगलों का 32 वर्ग किलोमीटर इलाका इस फूल के संरक्षण के लिए सुरक्षित रखा गया था. इसे कुरिंजीमाला सैंक्चुअरी का नाम दिया गया. (फोटो सोर्स- केरल टूरिज्म)
नीलकुरिंजी फूल (Neelakurinji Flowers) फूल को केरल की खुशहाली का भी प्रतीक माना जाता है, क्योंकि इसके खिलने से राज्य के टूरिज्म को जबरदस्त फायदा होता है और इन्हें देखने के लिए लोग लाखों रुपये खर्च कर पहुंचते हैं. हालांकि कोरोना वायरस महामारी की वजह से केरल (Coronavirus in Kerala) में सैलानियों के आने पर रोक लगी हुई है. (फोटो सोर्स- केरल टूरिज्म)
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