यह देश की सबसे प्रसिद्ध एतिहासिक इमारतों में से एक है. इस इमामबाड़े का निर्माण आसफ़उद्दौला ने 1784 में करवाया था. माना जाता है कि इसे बनाने में उस ज़माने में पांच से दस लाख रुपए की लागत आई थी. इस इमारत के पूरा होने के बाद भी नवाब इसकी साज सज्जा पर ही चार से पांच लाख रुपए सालाना खर्च करते थे. इसका निर्माण अकाल राहत परियोजना के तहत करवाया गया था.
लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा अगर घूम लें तो छोटा इमामबाड़ा भी देखना न भूलें. यह है तो छोटा खूबसूरती में बड़े से कम नहीं है.
नवाब आसफउद्दौला ने यह दरवाजा 1783 ई. में अकाल के दौरान बनवाया था ताकि लोगों को रोजगार मिल सके. अवध वास्तुकला के प्रतीक इस दरवाजे को तुर्किश गेटवे कहा जाता है. रूमी दरवाजा इमारत 60 फीट ऊंचा है.
चिकन लखनऊ की कढाई और कशीदा कारी की मशहूर शैली है. यहां के बाज़ार चिकन कशीदाकारी के दुकानों से भरे हुए हैं। मुर्रे, जाली, बखिया, टेप्ची, टप्पा आदि 36 प्रकार के चिकन की शैलियां होती हैं.लखनऊ जाएं तो चिकनकारी वर्क के कपड़े जरुर खरीदें.
लखनऊ अपने स्वादिष्ट खाने के लिए जाना जाता है. टुंडे कबाब से लेकर चाट तक यहां खाने की वैरायटी ही वैरायटी है. यहां आएं तो स्थानीय फूड का मजा जरूर लें.
लखनऊ चिड़ियाघर काफी प्रसिद्ध है और करीब 71 एकड़ के विशाल भू-भाग में फैला हुआ है। यहां पर आपको रॉयल बंगाल टाइगर, शेर, व्हाइट टाइगर के साथ-साथ कई वन्य जीव और पक्षी देखने को मिल जाएंगे। अगर आप बच्चों के साथ लखनऊ घूमने आए हैं तो यहां जरूरी जाएं.
शॉपिंग शौकिनों के लिए हजरतगंज की मार्केट किसी जन्नत से कम नहीं है. यहां कपड़ों से लेकर गहनें, हैंडक्राफ्ट तक सबकुछ मिलता है. यहां समय निकाल कर आएं सामान के साथ-साथ स्थानीय संस्कृति से भी रूबरू होने का मौका मिलेगा.
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