अमरोहा: शबनम ने एक बेटी होने का फर्ज नहीं निभाया और वो अपने पूरे परिवार की कातिल बन गई. लेकिन शबनम का बेटा अपना फर्ज निभा रहा है. शबनम का गुनाह माफी के काबिल नहीं है. लेकिन वो बच्चा पूछ रहा है कि उसका गुनाह क्या है जो उसे उसकी मां का हक ना मिले? शबनम का गुनाह क्या था? इसे समझने के लिए आपको 12 वर्ष पीछे लौटना होगा.
ये मामला उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले का है, जहां शबनम नाम की एक लड़की ने अपने परिवार के सभी 7 लोगों की हत्या कर दी थी. क्योंकि वो अपने प्रेमी से शादी करना चाहती थी और घर वाले शादी के खिलाफ थे. शबनम को लगा कि अगर वो अपने घर वालों को रास्ते से हटा दे तो शादी भी हो जाएगी और परिवार की संपत्ति पर भी उसका कब्जा हो जाएगा. और वो अपनी जिंदगी आराम से गुजार लेगी. लेकिन अपराध के बाद शबनम और उसके प्रेमी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. और उन दोनों को 2010 में अमरोहा की अदालत ने फांसी की सजा सुना दी. अदालत के इस मामले को अब लगभग 13 वर्ष बीत चुके हैं.
साल 2008 को अप्रैल के महीने में अमरोहा के एक ही परिवार के 7 लोग मारे गए थे. एक बेटी ने अपने माता-पिता, भाई-भाभी, बहन और एक 11 महीने के मासूम समेत 7 लोगों की हत्या कर दी थी. लड़की का नाम शबनम था. उसने ये काम अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर किया. शबनम पोस्ट ग्रेजुएट थी यानी एक पढ़ी लिखी लड़की थी. और सलीम 8वीं पास था. परिवार इस रिश्ते के लिए राजी नहीं था. शबनम शादी भी करना चाहती थी और अपने सुरक्षित भविष्य के लिए उसे प्रॉपर्टी भी चाहिए थी. इसलिए शबनम ने परिवार को चाय में नींद की गोलियां मिला कर पिला दी. जब सब बेहोश हो गए दो दोनों ने मिलकर सबको मार दिया. पहले शबनम ने पुलिस को बताया कि डकैतों ने उसके परिवार को मार दिया है और वो इसलिए बच गई क्योंकि वो छत पर सो रही थी जबकि बाकी परिवार नीचे कमरे में था. लेकिन सच कुछ और था.
असल में हत्या के 4 दिन बाद पुलिस को शबनम के घर से चायपत्ती के डिब्बे में एक सिम कार्ड मिला था. इस सिम कार्ड के रिकॉर्ड ने सारे राज खोल दिए. शबनम-सलीम से बात करने के लिए इसी सिम कार्ड कार्ड का इस्तेमाल करती थी. पुलिस ने जब दोनों से पूछताछ की तो दोनों ने अपना जुर्म कूबूल कर लिया. गिरफ्तार होते ही दोनों इस हत्याकांड का सारा आरोप एक दूसरे पर लगाने लगे. लेकिन सच सामने आ चुका था. वारदात के 8 महीने बाद शबनम ने दिसंबर 2008 में जेल में एक बेटे को जन्म दिया था. अब ये कहानी उस बच्चे की भी है. वो बच्चा चाहता है कि देश का कानून शबनम को जीवनदान दे, क्योंकि वो उसकी मां है. बच्चे ने राष्ट्रपति से एक मार्मिक अपील भी की है.
अब सवाल ये है कि शबनम को फांसी होगी या नहीं? क्या सात खून माफ किए जा सकते हैं? कानून की नजर में ये केस रेयरेस्ट ऑफ द रेयर है. 2008 में हुए इस हत्याकांड में दो साल बाद यानी 2010 में अमरोहा की जिला अदालत ने शबनम और सलीम को फांसी की सजा सुना दी थी. उसके बाद ये केस इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) और फिर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) तक गया. लेकिन फांसी की सजा बरकरार रही. इस मामले में 2016 में राष्ट्रपति के पास शबनम की दया याचिका खारिज हो चुकी है. शबनम इस वक्त रामपुर जेल में बंद है और रामपुर जेल ने अमरोहा की जिला अदालत से शबनम की फांसी के लिए डेथ वॉरेंट जारी करने के लिए याचिका लगाई है. इस मामले पर कल अमरोहा की जिला अदालत में सुनवाई होनी है. अब सवाल ये है कि क्या एक बेटे को उसकी मां मिलेगी या शबनम को फांसी होगी?
कानून के मुताबिक, 6 वर्ष तक बच्चे को मां के साथ ही रखा जाना चाहिए. दिसंबर 2008 में शबनम ने जिस बच्चे को जन्म दिया उसने 6 वर्ष मां के साथ जेल में ही बिताए. उसके सुख-दुख देखे. जेल का जीवन देखा और बचपन भी वहीं बिताया. ये बच्चा अब 13 साल का हो चुका है. इसकी एक हंसती खेलती जिंदगी है. और मां-बाप से बढ़कर चाहने वाले गार्जियन हैं. 6 साल और 7 महीने का वक्त बिताने के बाद इस बच्चे की जिंदगी का दूसरा अध्याय शुरू हुआ. 6 वर्ष के बाद बच्चा जेल में नहीं रह सकता था. लेकिन उसे अपनाने के लिए ना शबनम के परिवार में बचे उसके चाचा चाची तैयार थे और ना ही सलीम के घरवाले. बच्चे की कस्टडी के लिए पति-पत्नी उस्मान और वंदना आगे आए. उस्मान शबनम के कॉलेज में उससे दो साल जूनियर थे. यहां से इस मासूम की नई जिंदगी शुरू हुई.
आज ये बच्चा एक अच्छे स्कूल में पढ़ रहा है. अच्छी परवरिश में पल रहा है. लेकिन इसकी बड़ी मां यानी वंदना का कहना है कि ये बच्चा आज भी दोहरी जिंदगी जी रहा है. जेल से पहले और जेल के बाद की. बच्चे के गार्जियन चाहते हैं कि इस केस को जल्द से जल्द खत्म किया जाए. शबनम को फांसी हो ताकि बच्चे को बार-बार मिलने के लिए जेल ना जाना पड़े और कानूनी तौर पर वो इस बच्चे को गोद ले सकें. उसके माता पिता बन सके. इस वक्त बच्चा दोहरी जिंदगी जी रहा है. लेकिन जब उस्मान और वंदना बच्चे को देखते हैं तो वो भी तय नहीं कर पाते कि क्या सही है.
अमरोहा के बावनखेड़ी गांव लोग और शबनम के चाचा-चाची रह रहे हैं. 13 साल बीतने के बाद ये सब मांग कर रहे हैं कि उसे फांसी ना दी जाए. हालांकि अदालत अपना फैसला तय कर चुकी है. कानून भावनाओं से नहीं, सबूतों से चलते हैं. इसलिए मथुरा जेल के बाहर हलचल है. मथुरा में ही उत्तर प्रदेश की एकमात्र जेल है, जहां महिला फांसीघर है. मथुरा जेल में 1870 में इस फांसी घर को बनाया गया था. लेकिन आजाद भारत में यानी 1947 से लेकर अब तक किसी भी महिला को फांसी नही दी गई है. दूसरी शबनम के वकील बचाव के कानूनी विकल्प तलाश रहे हैं.
जिस प्रॉपर्टी को पाने के लिए ये कत्ल किए गए उसे अब शबनम दान करने का मन बना चुकी है. शबनम और सलीम का जुनूनी प्यार कब का हवा हो चुका है. मामले को अब 13 साल बीच चुके हैं. क्या शबनम के 7 खून माफ होंगे या शबनम की फांसी होगी और ये फैसला एक नई मिसाल बनेगा. ये जल्द ही साफ हो जाएगा. लेकिन इस फैसले में हो रही देरी ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है कि कि क्या देरी से मिले न्याय को सच में न्याय माना जा सकता है. इस केस में अभी भी कई कानूनी विकल्प बाकी बचे हैं.
एक एनजीओ ने शबनम के लिए एक बार फिर रामपुर जेल के माध्यम से उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के पास दया याचिका भेजी है. इस मामले में एक और विकल्प शबनम के पास होगा. सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले में पुनर्विचार याचिका यानी रिव्यू पिटीशन भी दाखिल की जा सकती है. लेकिन आज का सच ये है कि स्वतंत्र भारत में यानी वर्ष 1947 के बाद पहली बार किसी महिला को फांसी होने वाली है.
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