जानिए दिवाली मनाने जैसलमेर क्यों पहुंचे पीएम मोदी, क्या है लोंगेवाला का इतिहास
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जानिए दिवाली मनाने जैसलमेर क्यों पहुंचे पीएम मोदी, क्या है लोंगेवाला का इतिहास

लोंगेवाला पोस्ट (Longewala Post) से पीएम मोदी (PM Narendra Modi) की दहाड़ के विशेष मायने हैं. पाकिस्तान की सेना ने 1971 की लड़ाई में लोंगेवाला पोस्ट पर भारतीय सैनिकों का दम बहुत करीब से और बहुत ठीक से देखा था.

लोंगेवाला पोस्ट से चीन-पाकिस्तान को ललकार.

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 2020 की दिवाली (Diwali 2020) भी सैनिकों के साथ मनाई. इस बार प्रधानमंत्री जैसलमेर (Jaislamer) के लोंगेवाला पोस्ट पर भारतीय सैनिकों के साथ दीवाली का पर्व मनाने पहुंचे. यहां वो भारतीय सेना (Indian Army) के टैंक पर सवार हुए. जवानों में मिठाइयां बांटीं.

  1. लोंगेवाला में टैंक पर सवार हुए प्रधानमंत्री

    लोंगेवाला पोस्ट से पाकिस्तान को ललकार

    1971 में ऐतिहासिक लड़ाई लोंगेवाला पोस्ट की

चीन पाकिस्तान को सख्त संदेश
पहले लोंगेवाला पोस्ट और फिर जैसलमेर एयरबेस पर मोदी ने देश के बहादुर जवानों को संबोधित किया. जैसलमेर के ऐतिहासिक लोंगेवाला पोस्ट से पीएम मोदी ने चीन और पाकिस्तान दोनों को ललकारा. बॉर्डर से आतंकवाद और विस्तारवाद दोनों पर प्रचंड प्रहार किया.

'राष्ट्रदीप बन गए मेजर कुलदीप'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने लोंगेवाला पोस्ट की लड़ाई (Longewala War) को याद करते हुए मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के अमिट योगदान को नमन किया. उन्होंने कहा, कभी कभी मुझे लगता है कि कुलदीप के माता-पिता ने उनका नाम कुल का दीपक समझकर रखा था, लेकिन वो अपने पराक्रम से राष्ट्रदीप बन गए. लोंगेवाला का युद्ध हमारे शौर्य का प्रतीक तो है ही, यह वायु, थल और नौसेना के बेहतरीन समन्वय का भी प्रतीक है. इसने दुनिया के सामने मिसाल पेश की. लोंगेवाला की लड़ाई के 50 वर्ष होने जा रहे हैं. इस इतिहास को हम मनाने जा रहे हैं. आने वाली पीढ़ियां इससे प्रेरणा लेंगी

टैंक पर सवार हुए पीएम मोदी
लोंगेवाला की लड़ाई में पाकिस्तान के कुल 12 टैंक बर्बाद हुए थे, उनमें से कुछ के अवशेष लोंगेवाला म्यूिजियम में रखे हैं. एक पूरा टैंक बाहर रखा है जो गवाह है कि सेना के शौर्य का और आज इसी टैंक को प्रधानमंत्री ने भी लोंगेवाला पोस्ट पहुंचकर करीब से देखा.

पाकिस्तान को जिंदगी भर याद रहेगा सबक
लोंगेवाला पोस्ट से मोदी की दहाड़ के विशेष मायने हैं. पाकिस्तान की सेना ने 1971 की लड़ाई में लोंगेवाला पोस्ट पर भारतीय सैनिकों का दम बहुत करीब से और बहुत ठीक से देखा था. उस समय मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी की छोटी सी टुकड़ी ने टैंकों से लैस पाकिस्तान के 2000 सैनिकों के पसीने छुड़ा दिये थे. ये लड़ाई इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है.

बैटल ऑफ लोंगेवाला का इतिहास
जब भी सैन्य इतिहास लिखा जाएगा तो बैटल ऑफ लोंगेवाला का नाम जरूर लिखा जाएगा. जब पाकिस्तान की सेना बांग्लादेशी (तब पूर्वी पाकिस्तान) लोगों को खत्म कर रही थी. वहां से ध्यान हटाने के लिए पाकिस्तान ने हमारी पश्चिमी सीमा पर मोर्चा खोल दिया, लेकिन उनको लेने के देने पड़ गए. यहां के पराक्रम की गूंज ने पाकिस्तान के हौसले तोड़ दिए. उनको क्या पता था कि उनका सामना मां भारती के बेटों से होने वाला है. मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने दुश्मनों को धूल चटा दी.

लोंगेवाला की पोस्ट बॉर्डर के बहुत करीब है. 1971 में पाकिस्तान की योजना थी कि लोंगेवाला पर हमला करके उसे बेस बना लिए जाए. भारत को अंदाजा तो था कि हमला हो सकता है. ऐसे में पोस्ट को तीन तरफ बाड़ से घेर दिया गया. 4 दिसंबर 1971 की रात सेकेंड लेफ्टिनेंट धरम वीर भान की प्ला टून पैट्रोलिंग पर निकली थी. उन्हें पाकिस्तानी सेना टैंकों के साथ भारत की तरफ बढ़ती हुई दिखी.

धरम वीर ने मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी को खबर की. बटालियन मुख्यालय से रात के समय अधिक मदद न मिलने के बावजूद मेजर चांदपुरी ने पोस्ट पर बने रहने का फैसला किया. सामने दुश्मन का 45 टैंकों का एक पूरा कॉलम भारत की तरफ बढ़ रहा था. करीब दो हजार पाकिस्तानी सैनिक लोंगेवाला पोस्ट पर कब्जे के लिए आगे बढ़ रहे थे. मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी की टुकड़ी ने सावधानी से एंटी-टैंक माइंस बिछा दिए.

एंटी टैंक माइन से ही सबसे पहले पाकिस्तान का एक टैंक उड़ाया गया. इसके बाद भारतीय सेना की तरफ से जीप पर लगी 106 mm की M40 रिक्वॉरइललेस गन से पाकिस्तान की सेना पर प्रचंड प्रहार हुआ. भारत की पैदल सेना पाकिस्तान के टैंकों पर भारी पड़ी. सुबह होते ही भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने दुश्मनों पर स्ट्राइक की. पाकिस्तानी फौज में हड़कंप मच गया. पाकिस्तानी सैनिक टैंक और वाहन छोड़कर भागे.

दिवाली पर भारत का सख्त संदेश
2014 में जबसे नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने हैं, तब से हर वर्ष वो दिवाली के मौके पर भारतीय सैनिकों के बीच पहुंचते रहे हैं. अक्टूबर 2014 में सियाचिन से ये स्वर्णिम यात्रा शुरू हुई है जो जैसलमेर से होते हुए आगे भी जारी रहेगी. दुश्मनों को हर दिवाली पर भारत का सख्त संदेश मिलता रहेगा.

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