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नई दिल्ली: देश पर चीन और पाकिस्तान की तरफ से हमला हो जाए और सीमा पर युद्ध के लिए पहुंचने से पहले सेना को उस राज्य की सरकार से इजाजत लेनी पड़े जिस राज्य से होकर उसे गुजरना है और वो राज्य सरकार ये इजाजत देने से इनकार कर दे, तो क्या होगा? आज भारत में वैसी ही स्थिति पैदा करने की कोशिश की जा रही है. केंद्र सरकार ने ऐसे राज्यों में, जिनकी सीमाएं दूसरे देशों से मिलती हैं, BSF की शक्तियां बढ़ा दी हैं. अब पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में BSF सीमा से 50 किलोमीटर के इलाके में सर्च, रेड और गिरफ्तारी कर पाएगी. लेकिन हैरानी इस बात की है कि पंजाब और पश्चिम बंगाल की राज्य सरकारों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है और अब देश में विपक्षी नेताओं ने बीएसएफ के ऊपर राजनीति शुरू कर दी है. दुनियाभर के बड़े देशों में चाहे कितनी भी राजीनीति हो लेकिन सुरक्षा के मामलों को राजनीति से ऊपर रखा जाता है. हमारे देश में इसका ठीक उलटा हो रहा है.
केन्द्र सरकार ने 11 अक्टूबर को एक नया नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसके तहत कुल 12 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स यानी BSF के अधिकार क्षेत्र को नए रूप से तय किया गया है. ये वो राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश हैं, जिनकी सीमा पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे देशों से लगती है, जहां आए दिन आतंकवादियों द्वारा घुसपैठ, ड्रग्स की तस्करी और हथियारों की स्मगलिंग की खबरें आती रहती हैं. सरल भाषा में कहें तो ये मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है लेकिन आतंकवादियों के प्रति हमदर्दी रखने वाला हमारे देश का एक खास वर्ग और पार्टियां इस मुद्दे पर भी राजनीति कर रही हैं. इसलिए इनका असली चरित्र और इरादे समझना जरूरी है.
केन्द्र सरकार समय-समय पर ये तय करती है कि बॉर्डर स्टेट में बीएसएफ सीमा से कितने किलोमीटर के दायरे में बिना पुलिस की इजाजत के तलाशी अभियान और गिरफ्तारी जैसी कार्रवाई कर सकती है. इस बार तीन राज्यों में ये दायरा बढ़ाया गया है. ये राज्य पंजाब, असम और पश्चिम बंगाल हैं. पंजाब में पहले बीएसएफ को सीमा से 15 किलोमीटर के दायरे में कार्रवाई के अधिकार थे, लेकिन अब इस दायरे को बढ़ा कर 50 किलोमीटर कर दिया गया है. इसी तरह असम और पश्चिम बंगाल में भी ये दायरा 15 किलोमीटर से अब 50 किलोमीटर हो गया है. इन तीन राज्यों में से सिर्फ असम में बीजेपी की सरकार है. जबकि पंजाब में कांग्रेस और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार है और शायद यही वजह है कि सबसे ज्यादा विरोध इन्हीं दोनों राज्यों में हो रहा है.
बीएसएफ एक्ट, 1968 के सेक्शन 139 (1) के तहत सीमा सुरक्षा बल को अपने अधिकार क्षेत्र में ऐसे किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार है, जो किसी अपराध में शामिल है या जिसके खिलाफ शिकायत की गई है, या जिसके बारे में कोई खुफिया जानकारी है. सबसे बड़ी बात, इतने दायरे में सुरक्षा बल का सबसे निचले रैंक का अधिकारी भी मजिस्ट्रेट के आदेश और वारंट के बिना CrPC के तहत कार्रवाई कर सकता है.
जहां बीएसफ का अधिकार क्षेत्र खत्म होता है, वहां से सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य की पुलिस के पास होती है. अब मान लीजिए, पाकिस्तान से कोई आतंकवादी घुसपैठ करके भारत में घुस रहा है लेकिन बीएसएफ के पास केवल 15 किलोमीटर तक ही कार्रवाई करने का अधिकार है और ये आतंकवादी एक ही रात में इतने इलाके को पार करके भारत में दाखिल हो जाता है तो ऐसी स्थिति में बीएसएफ उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाएगी. सारा मामला राज्य सरकार और उसकी पुलिस के पास चला जाएगा, जहां ऐसे मुद्दों पर फिर राजनीति होगी और अगर उस राज्य में ऐसी किसी पार्टी की सरकार है, जो आतंकवादियों के प्रति हमदर्दी रखती है तो उस आतंकवादी का भी कुछ नहीं होगा.
नए आदेश के तहत पंजाब के 7 जिलों में बीएसएफ बिना रोक टोक कार्रवाई कर सकती है, जिनमें पंजाब का अमृतसर जिला भी है. पंजाब का कुल क्षेत्रफल लगभग 50 हजार किलोमीटर है और इस फैसले के बाद राज्य का लगभग साढ़े 21 हजार वर्ग किलोमीटर इलाका बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में चल जाएगा. यानी लगभग आधे पंजाब में बीएसएफ के पास कार्रवाई के लिए पहले से ज्यादा शक्तियां होंगी. इसी तरह पश्चिम बंगाल में भी 9 जिले बीएसएफ के दायरे में आएंगे, जिनमें सिलिगुड़ी मालदा, मुर्शिदाबाद और जलपाईगुड़ी जैसे जिले भी हैं, जहां से पाकिस्तानी आतंकवादी भारत में घुसने की कोशिश करते हैं.
पिछले दिनों दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने मोहम्मद अशरफ नाम के जिस पाकिस्तानी आतंकवादी को गिरफ्तार किया था, वो इन्हीं जिलों के रास्ते बांग्लादेश से भारत में घुसा हुआ था लेकिन अब बीएसएफ ऐसे आतंकवादियों की घुसपैठ को रोकने के लिए ज्यादा क्षेत्र में कार्रवाई कर सकेगी. पश्चिम बंगाल और पंजाब की परेशानी की वजह भी यही है. इन राज्यों में राष्ट्रीय सुरक्षा से ज्यादा चिंता अल्पसंख्यकों के वोट बैंक की है और चिंता इस बात की भी है कि वो ऐसे मामलों में अपनी शक्तियां खो देंगे, जिनसे हमारे देश के एक खास वर्ग की हमदर्दी बंटोरी जा सकती है.
कल्पना कीजिए भविष्य में देश के किसी बॉर्डर स्टेट में ऐसी पार्टी की सरकार बन जाती है, जो आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति रखती है, जो पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति रखती है और जो आतंकवादियों और पाकिस्तान से मित्रता बढ़ा कर ये समझती है कि उसे उस राज्य में एक खास धर्म के वोट मिल जाएंगे तो फिर देश की रक्षा का क्या होगा? ऐसे हालात में वो राज्य अस्थिर हो जाएगा और देश विरोधी ताकतें मजबूत हो जाएंगी. लेकिन केन्द्र सरकार का नया आदेश यही सुनिश्चित करता है कि सीमाई राज्यों में ऐसा कुछ भी ना हो. हालांकि पंजाब और पश्चिम बंगाल की सरकार ने इस फैसले को अंसवैधानिक बताया है. पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का कहना है कि भारतीय संविधान के तहत कानून व्यवस्था केन्द्र का नहीं, राज्य सरकार का विषय है. BSF का अधिकार क्षेत्र बढ़ने से संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचेगा. जबकि ये सच नहीं है. देश में कई ऐसे सीमाई राज्य हैं, जहां बीएसएफ सीमा से 50 किलोमीटर के दायरे में काम करती है.
राजस्थान की सीमाएं पाकिस्तान से लगती हैं और वहां सुरक्षा बल को 50 किलोमीटर तक के इलाके में कार्रवाई करने का अधिकार है. गुजरात में भी बीएसएफ 50 किलोमीटर तक के इलाके में पुलिस की इजाजत के बिना ऑपरेशन चला सकती है. हालांकि नए नोटिफिकेशन से पहले गुजरात में ये दायरा 80 किलोमीटर था. इसके अलावा जम्मू कश्मीर, लद्दाख और नॉर्थ ईस्ट के पांच राज्य मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में बीएसएफ किसी भी इलाके में कार्रवाई के लिए स्वतंत्र है. यानी यहां पूरे राज्य में वो ऐक्शन ले सकती है. ये भी पता चला है कि पंजाब सरकार ने खुद बीएसएफ का दायरा बढ़ाने के लिए केन्द्र सरकार को चिट्ठी लिखी थी. ये चिट्ठियां अकाली दल सरकार के दौरान भी लिखी गईं और कांग्रेस सरकार के दौरान भी लिखी गई लेकिन आज जब ये मांग पूरी हो गई है तो पंजाब सरकार ही इसका विरोध कर रही है.
वर्ष 1962 में जब भारत और चीन के बीच युद्ध लड़ा गया था, तब देश में सीमाओं की सुरक्षा राज्यों की पुलिस करती थी. 1962 के युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को ये सुझाव दिया गया कि सीमा सुरक्षा का काम पुलिस से लेकर किसी विशेष फोर्स को देना चाहिए. इसके बाद ही Indo-Tibetan Border Police का गठन किया गया, जो अरुणाचल प्रदेश समेत कई राज्यों में सीमा की रखवाली करती है. 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के बाद बीएसएफ का गठन किया गया, जिसे पाकिस्तान और बांग्लादेश सीमा पर सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई. वर्ष 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान, बांग्लादेश बना तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खुद पंजाब में बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाया. वर्ष 1972 में पंजाब में बीएसएफ 16 किलोमीटर के दायरे में कार्रवाई कर सकती थी और बाद में इस इलाके को जरूरत के हिसाब से कम और ज्यादा किया जाता रहा. कई मौकों पर ऐसा भी हुआ, जब कुछ सरकारों और नेताओं ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को घटाया और इन राज्यों में आतंकवादी गतिविधियां और ड्रग्स की तस्करी बढ़ती चली गई.
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1990 के दशक में पंजाब में ड्रग्स की तस्करी चरम पर थी. उस समय अफगानिस्तान से पंजाब में ड्रग्स आता था और पाकिस्तान से आतंकवादियों को एक्सपोर्ट किया जाता था. ये बात उसी दौर की है जब अफगानिस्तान में तालिबान की पहली सरकार थी और अब वहां फिर से तालिबान की सरकार आ गई है, जिसे देखते हुए बीएसएफ की शक्तियां बढ़ाई गईं. इसके अलावा पिछले कुछ समय में ड्रोन से हथियारों की तस्करी और निगरानी का भी खतरा बढ़ा है, जिसकी वजह से ये फैसला और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. हालांकि ये मामला लोकतंत्र की समस्याओं से भी जुड़ा है. हमारे देश में ऐसी कई पार्टियां हैं, जो विचारधारा के नाम पर दुश्मन देश से दोस्ती करती हैं. आतंकवादियों को चरमपंथी और क्रान्तिकारी कहा जाता है और लोकतंत्र इसे अभिव्यक्ति की आजादी में लपेट कर Legalize कर दिया जाता है. इसलिए आज आपको इस खतरे से सावधान होने का भी जरूरत है.
इस मुद्दे पर रक्षा विशेषज्ञ और बीएसएफ के पूर्व एडीजी पीके मिश्रा ने केन्द्र सरकार के इस फैसले को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी बताया है. बीएसएफ भारत के पांच सशस्त्र पुलिस बलों में से एक है, जो केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत आता है और इसमें ढाई लाख से भी ज्यादा सैनिक और अधिकारी हैं. इसे दुनिया का सबसे बड़ा सीमा सुरक्षा बल माना जाता है. पिछले 10 साल में इस बीएसएफ के 144 जवानों ने देश के लिए शहादत दी है, लेकिन फिर भी हमारे देश में बीएसएफ पर राजनीति हो रही है.