जीते-जी मासूम को नहीं मिले इलाज के 300 रुपये, मरने के बाद लोगों ने जुटाए 3 हजार
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जीते-जी मासूम को नहीं मिले इलाज के 300 रुपये, मरने के बाद लोगों ने जुटाए 3 हजार

बच्चे का इलाज कराने के लिए ठेकेदार से मजदूरी के पैसे लेने आशा आई थी. ठेकेदार ने उसे रुकने को कहा था कि इसी बीच ठेकेदार ने अपना फोन स्विच ऑफ कर दिया. 

प्रतीकात्मक तस्वीर

Bhilwara: जिले के आसींद के बदनौर कस्बे में दोपहर को मानवता को शर्मसार करने वाला एक मामला सामने आया है. इलाज के अभाव में एक 3 साल के बच्चे ने अपनी मां की गोद में ही दम तोड़ दिया. महिला अपने बेटे के शव को लेकर 2 घंटे तक बिलखती रही. स्थानीय लोगों ने जब रोने का कारण पूछा तो पूरा माजरा समझ में आया. 

वहीं, ग्रामीणों ने इस संबंध में बदनौर पुलिस को सूचना दी और सूचना पर पुलिस भी संवेदनहीन बनी रही. ग्रामीणों ने अपने स्तर पर पैसे इकट्ठे कर महिला को उसके गांव जोजावर (पाली) पहुंचाया. पाली जिले के जोजावर निवासी आशा पत्नी गोम सिंह रावत 3 साल के बेटे को लेकर बदनौर आई थी. आशा का बेटा बीमार था. आशा और गोम सिंह मोगरा निवासी ठेकेदार भंवर सिंह के लिए कुआं खोदने का काम करते हैं.

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बच्चे का इलाज कराने के लिए ठेकेदार से मजदूरी के पैसे लेने आशा आई थी. ठेकेदार ने उसे रुकने को कहा था कि इसी बीच ठेकेदार ने अपना फोन स्विच ऑफ कर दिया. अधिक समय बीत जाने पर बच्चे की तबीयत बिगड़ने लगी और कुछ ही देर बाद बच्चे ने मां की गोद में ही दम तोड़ दिया. 

पीड़ित आशा रावत ने बताया कि उसने ठेकेदार को बताया था कि उसका बच्चा बीमार है और उसके पास पैसे नहीं हैं. गांव से 300 रुपये उधार मिले थे. उसका पति भी उसके साथ आना चाहता था लेकिन 300 रुपये में दोनों का किराया पूरा नहीं हो पा रहा था. इसके चलते महिला अकेले ही मजदूरी के पैसे लेने दोपहर करीब 12 बजे बदनौर आ गई. महिला को उम्मीद थी कि ठेकेदार उसे मजदूरी के पैसे दे देगा. फिर अपने बच्चे का इलाज करवाकर गांव लौट जाएगी. 

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वहीं, ठेकेदार ने फोन बंद कर लिया. इस दौरान बच्चे को उल्टी हुई और दस्त भी होने लगे. इससे बच्चे का शरीर सुन्न हो गया और कुछ देर बाद मां ने देखा तो उसकी सांसें नहीं चल रही थीं. आशा को रोता देख आसपास के लोगों ने उससे कारण पूछा और इसके बाद घटना का पता चला लेकिन महिला को अपने गांव जाने के लिए भी कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. मौके पर जमा भीड़ का पुलिस के खिलाफ भी आक्रोश देखने को मिला. ग्रामीणों ने जब आशा की हकीकत जानी तो अपने स्तर पर पैसे एकत्रित करके कि आशा को उसके गांव तक पहुंचाने के लिए करीब 3 हजार रुपये इकट्ठे किए. आशा के बच्चे का शव लेकर उसके साथ गांव कौन जाएगा और इसके लिए पुलिस की मदद मांगी गई थी. पुलिस ने इस पूरे मामले से अपने हाथ खड़े कर दिए. इससे ग्रामीणों में पुलिस के खिलाफ आक्रोश भर गया और काफी देर थाने के आगे ग्रामीण खड़े रहे. इसके बाद ग्रामीणों ने एक निजी कार से महिला और उसके बच्चे के शव को गांव के लिए रवाना किया. 

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