Ajmer: होली रंगों का त्योहार है. इस त्योहार की भी कई धार्मिक मान्यताएं. ऐसे में उपलों का भी एक अलग ही महत्व है. आखिर क्यों इनकी मांग अचानक से बढ़ गई है. उपले बनाने वालों के चेहरे में मांग बढ़ने से एक अलग ही मुस्कुराहट है. ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों मोड पर खूब ऑर्डर आ रहे हैं.
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Ajmer: होली रंगों के त्योहार के साथ ही अलग-अलग धार्मिक पौराणिक मान्यताओं का भी वास है, भाईचारे और एकता की मिसाल देने वाला यह त्योहार देशभर में हर्षोल्लास से मनाया जाता है. होलिका दहन की जानकारी तो आप सभी को होगी. बुराई पर अच्छाई की जीत के चलते इस त्योहार को मनाया जाता है, लेकिन इसमें गोबर से बने बड़बुले या कंडे क्यों जलाए जाते हैं. इसकी जानकारी शायद आपको नहीं होगी इस खबर में हम यही बताएंगे.
हिंदू धर्म में गाय और गाय के गोबर को पवित्र माना गया है, गाय का गोबर यानी कंडे और उपले सभी मांगलिक कार्य के दौरान जोत और धूप व हवन करने में महत्वपूर्ण है और इसी के चलते अब यह बाजारों में भी मिलने लगे हैं. गांव से दूर होती जिंदगी अब शहरों में दौड़-धूप और नौकरी की तलाश में जुटी है,
जहां लोगों के पास समय ही नहीं बचा है कि वह गायों को पाल सके और उन्हें दुलार सके ऐसे में शहरों में अब कंडे और उपले की बिक्री भी होने लगी है. ऑफलाइन के साथ-साथ यह ऑनलाइन भी एमपी के जा रहे हैं शहर के मुख्य बाजारों में होली के इस त्योहार को ध्यान में रखते हुए ₹20 किलो तक गोबर के उपले बेचे जा रहे हैं, जो कि गांव में व्यर्थ ही सब पड़े रहते हैं.
शहर के पड़ाव बाजार हो या फिर अन्य अलग-अलग भाषाओं के बाहर महिलाएं और दुकानदार इन्हें वर्षों से बेचने का काम कर रहे हैं उनका कहना है कि होली के इस पर्व पर इन्हें खरीदने हैं और होली में जलाया जाता है जिससे घर में सुख शांति और इसकी पूजा की जा सके इस मौके पर गोबर से बनी बड़बुले की माला भी तैयार होती है जिसकी कीमत 50 से लेकर ₹100 तक बताई जा रही है.
विगत 20 से 25 सालों से गोबर की बड़बुले बेच रही मनी देवी ने बताया कि इस काम में मेहनत लगती है गोबर को चुप कर लाना पड़ता है और फिर उसे 15 दिन तक सुखा कर रखना पड़ता है यह बेकार शहर के लोग नहीं कर सकते इसीलिए इन्हें ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोग ही ज्यादा करते हैं लोग तो गोबर के हाथ भी नहीं लगा रहे तो वह इसका महत्व कैसे समझेंगे.
साथ ही बाजार ने कोयले का व्यापार करने वाले कमलेश ने बताया कि वह होली के साथ ही अन्य धार्मिक पर्वों पर गोबर के कंडे बेचते हैं उन्होंने बताया कि धार्मिक मान्यताओं का ध्यान रखते हुए सभी इसे होली के पर्व पर जलाते हैं.
गाय की इस गोबर का धार्मिक ओर वैज्ञानिक पहलू भी है इसे होली के पर्व के साथ ही अन्य अनुष्ठान में क्यों कामयाना जाता है इसके पीछे भी खास वजह है. पौराणिक कथाओं के अनुसार होलिका दहन फाल्गुन महीने की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है.
मान्यता है कि गाय के पृष्ठ भाग यानि कि पीछे के हिस्से को यम का स्थान माना जाता है और गाय का गोबर इसी स्थान से मिलता है. होलिका दहन में इसके इस्तेमाल से कुंडली में अकाल मृत्यु जैसे या कोई भी बीमारी से जुड़े दोष दूर हो जाते हैं. इसी वजह से पूजा-पाठ में भी गोबर के उपलों का इस्तेमाल होता है। किसी भी स्थान पर गोबर के उपले जलाने से घर में माता लक्ष्मी का वास होता है और होलिका की अग्नि में भी जब इन्हें जलाते हैं तो रोग -दोष मुक्त होते हैं और आर्थिक स्थिति ठीक हो सकती है और मान्यतानुसार होली के दिन सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश अग्नि में होता है.
गोबर के उपले शुभता का प्रतीक माने जाते हैं और इन्हें जलाने से आस-पास की नकारात्मक शक्तियां भी दूर होती हैं. होली पर कंडे और उपले जलाने से परिवार में सुख शांति और स्वच्छता का वातावरण रहता है, ऐसे में होली पर कंडे जलाने के साथ उसकी जलती हुई राख को भी घर पर लाकर पूछते हैं जिससे कि वातावरण शुद्ध हो सके और सभी नकारात्मक पूजा घर के बाहर निकल जाए.
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