Who Is Devnarayan Bhagwan : कौन है गुर्जरों के देवता देवनारायण भगवान, जिनको पीएम मोदी ने धोक लगाने पहुंचे
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God Of Gujjars : राजस्थान में कई लोग देवता है जिनमें से एक हैं देवनारायण भगवान, जिन्हे विष्णु अवतार माना जाता है. जिनका जन्म राजस्थान के मालासेरी में हुआ था. भगवान देवनारायण के पिता सवाई भोज- वीर भोजा और माता का नाम साढू खटानी था. मान्यता है कि उन्होने ही बैसाला समुदाय की स्थापना की.
देवनारायण जी बगडावत वंश के माने जाते हैं. जिन्हे अजमेर में रहने वाले चौहान राजाओं ने बगडावतों को गोठा नाम का स्थान दे दिया था. ये स्थान वर्तमान में भीलवाड़ा और अजमेर के आसपास का इलाका है. बगडावत वंश में इतने वीर थे कि उनकी गौरव गाथा मेवाड़ के राजा के पास भी पहुंच गयी थी.
बगडावत वंश में सबसे वीर राजा हरिराव थे जिनके पुत्र का नाम था बाघराव और इनके 24 पुत्र थे जिनमें से एक देवनारायण जी के पिता यानि कि सवाई भोज (राजा भोज) भी थे.
जब देवनारायणजी अपनी मां की कोख में थे तो, उनके गुरु रूपनाथ ने बताया कि उनके गर्भ में जो पुत्र है वो महान व्यक्ति होगा और अत्याचार के विरुद्ध लड़ेगा. ये खबर जैसे ही अत्याचारी राणा दुर्जनसाल को पता चली तो उसने उन्हें मारने का फैसला कर लिया.
जैसे ही ये बात देवनारायण जी की मां को पता चली वो मायके चली गयी और वहीं देवास में देवनारायण जी का पालन पोषण हुआ. जहां उन्होने घुड़सवारी और युद्ध प्रशिक्षण हासिल किया. वही शिप्रा नदी के किनारे देवनारायण भगवान साधना करते थे जिसे सिद्धवट कहा जाता है.
देवनारायण जी और बगडावत वंश के वीरों की गाथाओं को 'देवनारायण की फड़' में दर्शाया गया है. यहीं नहीं भगवान देवनारायण की कहानी 'बगडावत महाभारत' में इतनी विस्तृत है कि इसे पूरा पढ़ने के लिए हर दिन 3 पहर में गाया जाता हैं तब जा कर ये 6 महीने में पूरी हो पाती है.
भगवान देवनारायण के चमत्कार
1-धार के राजा जयसिंह की बीमार बेटी को ठीक किया (बाद में उन्ही से विवाह हुआ)
2-सूखी नदी में पानी ले आए.
3-सारंग सेठ को जीवन दिया.
4- छोंछु भाट को जीवित कर दिया.
देवनारायण जी भगवान का सबसे सिद्ध पूजा स्थल है. भीलवाड़ा के पास आसींद में खीर एवं चूरमा का भोग लगाकर उनकी पूजा की जाती है. देवनारायण जी को जोधपुरिया में में भी पूजाधाम में पूजा जाता है.
देवनारायण जी जब सिर्फ 31 साल के थे तब उनका देहवसान हो गया था. इस दिन वैसाख के शुल्क पक्ष की तृतीय तिथि थी जिस तिथि को अक्षय तृतीय लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि वे भाद्रपद की शुल्क पक्ष की सप्तमी के दिन बैकुंठ वासी बने थे.