Churu News: चूरू में सरदारशहर शिक्षक बनकर समाज में शिक्षा की अलख जगाने का सपना कमला ने देखा था.लेकिन एक हादसे के बाद कमला को यह अपना यह सपना असंभव सा लगने लगा.लेकिन शिक्षक बनने का कमला का वह जुनून नहीं था, जिसकी बदौलत आज कमला ने शिक्षक बनकर अपना सपना पूरा किया है.
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Churu News: चूरू के सरदारशहर से एक अच्छी खबर है, कमला ने देखा था शिक्षक बनने का सपनासमस्याए किसके सामने नहीं आती, लेकिन इन समस्याओं में कोई निखर जाता है, तो कोई बिखर जाता है. ऐसी ही आज हम आपको एक ऐसी संघर्ष की कहानी सुनाने जा रहे हैं जिसे सुनकर हर युवा प्रेरित हो सकता है.आज के समय में आए दिन खबरें आती है, छोटी-छोटी समस्याओं से परेशान होकर अवसाद में आकर युवा मौत को गले लगा रहे हैं.
आए दिन अखबारों टीवी चैनलों में देखने सुनने को मिलता है कि बड़े बड़े शिक्षण संस्थान, कोचिंग संस्थानों में पढ़ रहे छात्र जरा सी परेशानी में आते ही जिंदगी की जंग हार कर आत्महत्या जैसा पाप कर बैठते हैं,
ऐसे नौजवानों के लिए उम्मीद की किरण है छोटे से गांव की दिव्यांग कमला मेघवाल.कमला के सामने पहाड़ जैसी चुनौती थी लेकिन उसने अपने संघर्ष की डोरी को पकड़े रखा और कभी भी हिम्मत नहीं हारी और आज कमला शिक्षक बनकर हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई.
अब जान लेते हैं, साधारण सी कमला आखिर क्यों बन गई इतनी खास.दरअसल गांव अमरसर की रहने वाली 25 साल की दोनो हाथो से द्वियांग कमला मेघवाल की संघर्ष की एक लंबी कहानी है, जिसे सुनकर हर किसी को अपनी समस्याएं छोटी लगेगी. कमला जब आठवीं क्लास में पढ़ रही थी तब एक हादसे ने कमला की खुशियां ही छीन ली,
ऐसे में कोई और होता तो शायद वह बिखर जाता लेकिन कमला ने अपने आप को संभाले रखा, हादसे में अपने दोनों हाथ गवाने वाली कमला ने कभी भी अपने आप को टूटने नहीं दिया और संघर्ष के उस लंबे पड़ाव को पार करते हुए आज कमला ने जो अपने लिए सपना देखा उसे पूरा करते हुए सरकारी अध्यापिका बन गई, कमला का तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती में चयन हो गया है.
14 अप्रैल 2009 को हुए एक हादसे ने कमला की पूरी जिंदगी बदल दी. कमला बताती हैं कि उस समय मै आठवीं क्लास में पढ़ती थी, उस दिन जब में छुट्टी के बाद स्कूल से घर आ रही थी उस दौरान रास्ते में 11 हजार केवी की बिजली की लाईन के तार बहुत नीचे झूल रहे थे उस वक्त मेरे हाथ तारों के लगने से दोनो हाथ खत्म हो गए.
अपने दोनों हाथ हादसे में खोने वाली कमला को यूं तो कमल के माता पिता और भाई ने कदम कदम पर साथ दिया. विशेष रूप से कमला के भाई ने कमला का हर जगह हौसला बनाए रखा.कमला मेघवाल हादसे के दो वर्ष तक अपने घर पर ही रही.एक दिन जब कमला टीवी देख रही थी तो टीवी में दिखाया गया की उत्तरप्रदेश का एक युवक हाथों के बिना ही है कुछ कागज पर लिख रहा हैं.
इसके बाद कमला बताती है कि मेरे माता-पिता सहित बड़े भाई जगदीश ने कहा कि आप ही यू पढाई-लिखाई कर सकती हो अभ्यास करो बेटा हिम्मत नहीं हारनी चाहिए,तब से ही मैने हाथ में रस्सी से पैन बांधकर अभ्यास करना शुरू किया तो मेरा हौसला बुलंद होता गया.इसके बाद सन 2012 में कक्षा 10 वीं की मैने प्राइवेट परीक्षा दी,इस दौरान मेरे 60 प्रतिशत अंक हासिल करते हुए सफलता हासिल कर ली.
कमला ने जब संघर्ष का रास्ता चुना तो ऐसा नहीं है कमला को सफलता एकदम से मिल गई. कमला के सामने अनेकों चुनौतियां आई लेकिन कमला ने हर बाधा को पार किया. कमला ने बताया कि मैने पढाई शुरू की तो कुछ लोग मुझे ताने दे देते थे कि यह अब पढाई करके क्या करेगी, सही हाथ वालों को भी नौकरी नहीं मिलती है, इसको कैसे नौकरी मिलेगी.
मेरे पास में बैठने से भी मेरे साथी विद्यार्थी कतराते थे. उस समय बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा. कक्षा-11,12 मेंने हमारे पैतृक गांव गोगासर में पढाई की थी, इस गांव में अब मेरे दादा-दादी सहित कुछ परिवार के लोग रहते है.सरदारशहर मितल कॉलेज से बीए की उसके बाद बीकानेर जिले की नाल से बीएसटी की पढाई की, अभी वर्तमान में मितल कॉलेज से एमए प्रथम वर्ष की पढाई चल रही है.
Reporter-Navratan Prajapat