परंपरागत अनाज बाजरे पर वैज्ञानिकों का जोर, क्यूंकी तंदरुस्ती की रक्षा करता है बाजरा
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परंपरागत अनाज बाजरे पर वैज्ञानिकों का जोर, क्यूंकी तंदरुस्ती की रक्षा करता है बाजरा

आमतौर पर लोग मानते हैं कि बाजरे की तासीर गर्म होती है और यह गर्मी में नहीं खाया जा सकता. ऐसे में बाजरे से तैयार होने वाले बिस्किट, नमकीन, खिचड़ी, दलिया, लड्डू जैसे उत्पादों की प्रदर्शनी भी किसानों को दिखाई गई.

बाजरे के लड्डू, नमकीन और बिस्किट

Jaipur: देश में बाजरा उत्पादन के मामले में भले ही राजस्थान सबसे आगे खड़ा हो, लेकिन हकीकत ये भी है कि खाने की थाली से बाजरे के दाने लगातार फिसलते जा रहे हैं और यही कारण है कि अब लोगों को बाजरे और उससे जुड़े खाद्य पदार्थों के बारे में जागरूक करने के लिए सम्मेलन करने की जरूरत पड़ रही है.

इसी जरूरत को समझते हुए यूएनओ ने साल 2023 को मिलेट ईयर घोषित किया है. कृषि वैज्ञानिक भी बाजरे की गुणवत्ता सुधारने और इसकी पौष्टिकता के दम पर कुपोषण को दूर करने के लिए जुटे हुए हैं. इसी कड़ी में बाजरे पर काम कर रहे देश के प्रमुख कृषि वैज्ञानिक जयपुर में जुटे.

विशेषज्ञों का मानना है कि सही तरीके से ध्यान दिया जाए तो बाजरा भविष्य का खाद्यान्न हो सकता है. लेकिन इसके लिए किसान को भी मजबूत करना जरूरी है. कृषि विशेषज्ञ कहते हैं कि किसान को जब तक डायरेक्ट मार्केटिंग चैन नहीं मिलेगी तब तक ना तो किसान की स्थिति में सुधार हो सकता है और न ही उसे बाजरे का ज्यादा उत्पादन करने के लिए तैयार किया जा सकता है.

देश के कुल बाजरे का 52 फीसदी बाजरा राजस्थान में होता है. लेकिन इसमें से बड़ा हिस्सा पशुओं के चारे के रूप में चला जाता है या फिर कम दाम पर बिकने के कारण किसान को नुकसान देकर जाता है. ऐसे में बाजरे के इस्तेमाल, इसके उत्पादन और बाजरे के जरिये किसान की स्थिति सुधारने का बहुउद्देश्यीय काम अब रफ्तार पकड़ता दिख रहा है.

खास बात यह है कि किसान और उत्पादन की स्थिति में सुधार के साथ ही बाजरा देश में कुपोषण दूर करके लोगों की सेहत सुधारने में भी मददगार हो सकता है. अब सवाल यह उठता है कि आखिर बाजरा कुपोषण दूर करने में मददगार कैसे होगा? इसका जवाब कृषि वैज्ञानिकों के पास है.

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि बाजरे की अलग-अलग तरह की किस्म विकसित की जा रही हैं. हाल ही दुर्गापुरा कृषि अनुसंधान केंद्र में विकसित की गई किस्मों में जिंक और आयरन की मात्रा पहले के मुकाबले दोगुनी पाई गई है. बायो फोर्टिफाइड वैरायटी में जिंक और आयरन की मात्रा में सुधार हुआ है.

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर काश्तकार तक बायोफोर्टीफाइड प्रोडक्ट्स का मैसेज सही तरीके से पहुंचे और सारे कृषि विज्ञान केंद्र के जरिये प्रगतिशील किसानों को ये बीज मुहैया कराया जाए तो इसकी बेहतर शुरुआत की जा सकती है.

कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक अर्जुन सिंह बलौदा कहते हैं कि साल 2021 में इजाद हुई यह किस्म गर्मी में भी लगाई जा सकती है. पिछले साल दुर्गापुरा कृषि अनुसंधान केन्द्र में बाजरे की 11 किस्में विकसित की गई. इनमें से आठ हाईब्रिड है तो दो बायो फोर्टिफाइड और दो कम्पोज़िट किस्में हैं.

हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि केवल अकेले बाजरे के दम पर कुपोषण की समस्या को खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन फिर भी कुपोषण से लड़ने के लिए महिलाओं और बच्चों की थाली तक जिंक-आयरन जैसे तत्व पहुंचाने में बाज़रा बड़ा जरिया हो सकता है.

कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक अर्जुन सिंह बलौदा कहते हैं कि किसानों के सामने अभी भी बाजरे के उपयुक्त दाम नहीं मिलने की समस्या है. लेकिन बाजरे की गुणवत्ता में सुधार और बायोफोर्टीफाइड वैरायटी के उत्पादन से किसानों की स्थिति को सुधारा जा सकता है. इसके लिए किसानों को बाजरे से जुड़े अलग-अलग उत्पाद तैयार करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए.

देश में बाजरे के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने का काम संभाल रहे, इण्डिया मिलेट इनिशिएटिव के संस्थापक डॉक्टर सत्येन यादव कहते हैं कि सरकार चाहती है कि मिड डे मिल के जरिये बाजरे को बच्चों की थाली तक पहुंचाया जाए, जिससे बच्चों में सही मात्रा में पोषण पहुंच सके.

लेकिन साथ ही वे देश में बाजरे के नियोजित उत्पादन नहीं होने की समस्या भी बताते हैं. डॉ यादव का कहना है कि राजस्थान में तकरीबन 1600 क्विंटल बाजरे का उत्पादन होता है. लेकिन सही दाम नहीं मिलने के कारण किसान या तो चारे में पशुओं को खिला देते हैं और कुछ खुद के लिए रखे लेते हैं.

 लेकिन अब किसानों को बायो फोर्टिफाइड बीज देकर उनसे बाजरा बाय-बैक करने की योजना पर काम हो रहा है. यानि बीज धरती में डालने से पहले ही फसल का दाम एमएसपी से ज्यादा दर पर तय कर लिया जाएगा. किसानों से बाजरा खरीदकर उसे मार्केट चैन भी देंगे और बाजरे से तैयार होने वाले प्रोडक्ट्स बनाना भी किसानों को सिखाएंगे

इण्डिया मिलेट इनिशिएटिव की योजना के मुताबिक काम हुआ तो किसान को परेशान करने वाले बाजरा उसके लिए वरदान भी बन सकता है. लेकिन इसके लिए सबसे ज्यादा दरकार इस बात की है कि आम आदमी की थाली और उसकी रसोई में बाजरे का बारहमासी इस्तेमाल बताया जाए.

क्योंकि आमतौर पर लोग मानते हैं कि बाजरे की तासीर गर्म होती है और यह गर्मी में नहीं खाया जा सकता. ऐसे में बाजरे से तैयार होने वाले बिस्किट, नमकीन, खिचड़ी, दलिया, लड्डू जैसे उत्पादों की प्रदर्शनी भी किसानों को दिखाई गई.

 खास बात यह कि इस प्रदर्शनी का उद्घाटन भी सुरेन्द्र अवाना के साथ दूसरे प्रगतिशील किसानों ने ही किया. इस प्रदर्शनी के जरिये बाजरे के गट्टे, केक, चूरमा और लड्डू जैसे प्रोडक्ट कैसे मिड डे मिल की सूरत सुधार सकते हैं, यह भी बताया गया. कृषि विज्ञान केन्द्र की डॉ बबीता ने अपने नवाचारों के जरिये आम आदमी की रसोई तक इन उत्पादों को पहुंचाने की कोशिश इस प्रदर्शनी में दिखाई तो साथ ही इनकी रेसिपि भी लोगों को बताई.

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