राजधानी के दूदू कस्बे का सरकारी विधालय का भवन जर्जर व खस्ताहाल है. ऐसे में शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़े होते हैं और राज्य सरकार के आदेश सिर्फ फाइलों में ही सिमटकर रह जाते हैं.
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Dudu: एक तरफ जहां सरकार शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने का प्रयास कर रही है और लाखों रुपये शिक्षा के नाम पर खर्च कर रही है. वहीं दूसरी तरफ राजधानी के दूदू कस्बे में सरकारी अनदेखी के चलते विद्यालय भवन की हकीकत बद से बदतर नजर आ रही है.
राजधानी के दूदू कस्बे का सरकारी विद्यालय का भवन जर्जर व खस्ताहाल है. ऐसे में शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़े होते हैं और राज्य सरकार के आदेश सिर्फ फाइलों में ही सिमटकर रह जाते हैं. दूदू के विद्यालय में बच्चों को बैठने के लिए जमीन तो है पर सिर छिपाने के लिए मजबूत छत नहीं है. बच्चों के सिर पर हमेशा काल ही मंडराता है. ऐसा ही मामला देखने को मिलता है, राजधानी के दूदू कस्बे की राजकीय सीनियर सैकंडरी विद्यालय में.
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राजकीय सीनियर सैकंडरी विद्यालय का वर्षो से मेंटिनेंस नहीं होने के कारण विद्यालय के सात प्रतिशत कक्षा कक्ष जर्जर हो गए हैं. स्थिति ऐसी हो गई कि जर्जर भवन की दीवारें जगह-जगह से दरक गई है, साथ ही छतों पट्टियां व आरसीसी टूटकर फर्श पर बिखर रही है. कोरोना के कारण विद्यालय सालभर बंद के कगार पर रहे पर अब सुचारू होने पर अभिभावक और शिक्षकों में अनहोनी का डर हमेशा बना रहता. जिससे बच्चों को नीम के पेड़ के नीचे खुले में शिक्षक पढ़ाने को मजबूर है.
ग्रामीणों का कहना है कि कमरों के खस्ताहाल ,जर्जर हो चुकी छते और दीवारे से मन में बच्चों के प्रति मन मे हमेशा अनहोनी की आशंका बनी रहती है. विद्यालय प्रशासन का कहना है कि विद्यालय भवन की मरम्मत के लिए विभाग जनप्रतिनिधियों को कई बार सूचित कर दिया है पर अभी तक व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ है.
राजकीय विद्यालय का भवन स्वंतंत्रता से पूर्व का बना हुआ है. इसका निर्माण 1932 में हुआ और 1984 में उच्च माध्यमिक विद्यालय में क्रमोन्नत हुआ. जहां विज्ञान वाणिज्य कला संकाय की कक्षाएं संचालित है. विद्यालय में कुल विद्यार्थियों का नामांकन संख्या 898 है, जिनमें 793 छात्र व 145 संख्या छात्राओं की है. विद्यालय में स्वीकृत पद 39 है जिनमें से 28 पद वर्तमान में कार्यरत हैं. इस वर्ष विद्यालय के शैक्षणिक माहौल को देखते हुए नामांकन की संख्या में भी भारी इजाफा देखने को मिला और विद्यालय ने नामांकन के मामले में 15 वर्ष पुराना रिकॉर्ड तोड़ कीर्तिमान स्थापित किया है.
ब्लाक स्तरीय विद्यालय सह शैक्षणिक गतिविधियों के प्रभार के साथ-साथ राजस्थान स्टेट ओपन भी यहां संचालित होता है. साथ ही नवोदय व आरएससीआईटी के परीक्षा केंद्र भी यहां ही आयोजित होते हैं पर जर्जर कक्षों की वजह से विद्यालय प्रशासन को भारी परेशानियों से गुजरना पड़ता है. इस विद्यालय में नगर के नहीं बल्कि सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे की पढ़ने आते थे पर धीरे-धीरे भौतिक संसाधनों बढ़े और गांव-गांव स्कूलों का निर्माण हुआ, जिससे छात्रों की संख्या घटी. वहीं देखरेख के अभाव में विद्यालय भवन भी पूरी तरह से खस्ता हालत में तब्दील होता गया और विद्यालय प्रशासन को नहीं चाहते हुए भी छात्र-छात्राओं को खुले में बिठाकर शिक्षा मुहैया करवाना पड़ रहा है.
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ग्रामीणों ने बताया कि राज्य सरकार के नुमाइंदों व राज्य सरकार के मंत्रियों के अधिकतर कार्यक्रम विद्यालय प्रांगण में आयोजित किए जाते हैं और विद्यालय प्रशासन द्वारा इन नुमाइंदों को जर्जर भवन के बारे में बताया भी जाता रहा है. अब तक इस मामले कुछ भी सुनवाई नहीं हुई है और विद्यालय के विद्याथिर्यों को मौत के साए में शिक्षा लेना एक मजबूरी कहे या आदत सी हो गई है.
विद्यालय के जर्जर भवन में शिक्षा ग्रहण करने को छात्र मजबूर है. सरकार की तमाम योजनाएं अभिलेखों तक ही सीमित रह जाती है. आलीशान कार्यालय में एसी मशीन लगाकर ठंडी हवा खाने वाले जनप्रतिनिधि और सरकारी अधिकारियों को बच्चों के भविष्य की चिंता नहीं है. यदि जर्जर भवन धराशायी हुआ और छात्र -छात्राएं हादसे का शिकार हुई तो जावबदेह किसकी होगी यह आने वाला समय ही तय करेगा.
Reporter- Amit Yadav