मेयर डॉ. सौम्या गुर्जर पर बर्खास्ती की तलवार, राज्य सरकार के फैसले पर निगाहें
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मेयर डॉ. सौम्या गुर्जर पर बर्खास्ती की तलवार, राज्य सरकार के फैसले पर निगाहें

मेयर डॉक्टर सौम्या गुर्जर के खिलाफ न्यायिक जांच में आरोप सिद्ध होने के बाद निगाहें राज्य सरकार के फैसले पर टिकी हुई हैं.

मेयर डॉ. सौम्या गुर्जर पर बर्खास्ती की तलवार, राज्य सरकार के फैसले पर निगाहें

Jaipur: नगर निगम ग्रेटर मेयर डॉक्टर सौम्या गुर्जर के खिलाफ न्यायिक जांच में आरोप सिद्ध होने के बाद निगाहें राज्य सरकार के फैसले पर टिकी हुई हैं. न्यायिक जांच होने के बाद अब गेंद राज्य सरकार के पाले में है. सरकार के निर्णय के बाद ही सौम्या गुर्जर का भविष्य तय होगा. 

नगर निगम ग्रेटर में अब शहरी सरकार मुखिया की कुर्सी बचाने का संघर्ष चल रहा है. नगर निगम ग्रेटर मेयर डॉक्टर सौम्या गुर्जर पर न्यायिक जांच में आरोप प्रूव होने के बाद अब पद से बर्खास्त होने की तलवार भी लटक गई है, क्योंकि सरकार उनको किसी भी समय पद से बर्खास्त करने के आदेश जारी कर सकती है. 

वहीं, इस मामले पर अब भाजपा पार्टी भी कानूनी राय लेने पर विचार कर रही है. भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि जो कुछ सरकार कर रही है वह जनता देख रही है. स्वायत्त शासन निदेशालय एवं जयपुर नगर निगम के पूर्व निदेशक विधि और विधि विशेषज्ञ अशोक सिंह ने बताया कि न्यायिक जांच अधिकारी से जो रिपोर्ट सरकार को मिली है. उस पर अब अंतिम निर्णय यूडीएच मंत्री करेंगे. मंत्री के पास भी राजस्थान नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 में दो विकल्प है, एक ये कि वे चाहे तो इस मामले में दोबारा जांच करवा सकते हैं और दूसरा वे मेयर को दोषी मानते हुए पद से हटाए जाने का निर्णय भी ले सकते हैं. 

यदि पद से हटाए जाने का निर्णय लिया जाता है, तो निश्चित रूप से मेयर को अगले 6 साल के लिए नगर पालिका चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित भी किया जा सकेगा. उधर अगर डॉ. सौम्या गुर्जर को पद से हटाया जाता है, तो मेयर के दोबारा चुनाव होना तय है. मेयर के चुनाव के लिए सरकार राज्य निर्वाचन आयोग को लिखेगी. निर्वाचन आयोग ही मेयर पद के लिए दोबारा चुनाव करवाएगा. यदि ऐसा होता है तो नगर निगम में मौजूदा समय में बनी कमेटियां भी नए सिरे से बनाई जा सकती है. 

इधर यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि राज्य सरकार मामले में कानूनी अध्ययन के बाद फैसला करेगी. न्यायिक जांच मामले में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि ये कोई निर्णय अस्वभाविक निर्णय नहीं है, क्योंकि जो प्रकरण उस समय नगर निगम में हुआ वह पूरी जनता ने देखा. इस मामले की न्यायिक जांच भी सरकार ने ही शुरू करवाई, जिससे कोई उम्मीद नहीं थी. ऐसे में ये निर्णय कोई अस्वभाविक नहीं है, क्योंकि जो सब कुछ हुआ है दबाव में हुआ है, लेकिन हमे जो भी इसके कानूनी विचार या सलाह लेनी होगी आगे के लिए वो करेंगे.

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इधर न्यायिक जांच की पत्रावली की प्रतिलिपि लेने जब निलंबित पार्षद पारस जैन और अजय सिंह शासन सचिवालय में स्वायत्त शासन विभाग पहुंचे, तो वहां अधिकारियों ने पत्रावली नहीं आने की बात कही. इसके बाद दोनों ही निलंबित पार्षद जब न्यायिक जांच करने वाली अधिकारी के दफ्तर पहुंचे तो वहां से जांच की प्रतिलिपि 3 दिन बाद उपलब्ध करवाने की बात कही. निलंबित पार्षदों ने आरोप लगाया कि सरकार को डर है कि कहीं इस मामले में हम हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाकर इस मामले में स्टे न ले आए इसलिए हमे आशंका है कि इन छुटि्टयों के दौरान ही हमें पद से बर्खास्त करने के आदेश जारी कर देंगे. 

बहरहाल, देश में राज्यों की सरकारें गिरने की खबरें आ रही हों, लेकिन प्रदेश में शहरी सरकार ही सुरक्षित नहीं हैं. योजनाओं को धरातल पर उतारने के बजाय यहां कुर्सी बचाने के लिए संघर्ष चल रहा है. एक साल में ही 16 शहरी निकायों के प्रमुख भ्रष्टाचार, भीतरघात या फर्जी दस्तावेज पेश करने के कारण हटाए जा चुके हैं. 

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