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New Delhi/ Jaipur- सुप्रीम कोर्ट ने आवेदन फार्म में दी गयी गलत जानकारी के आधार पर पुलिस डिपार्टमेंट में कांस्टेबल के पद पर चयनित हुए अभ्यर्थि को हटाने के मामले को उचित मानते हुए राजस्थान सरकार की एक अपील को मंजूर कर दिया हैं. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले को भी रद्द कर दिया है, जिसके तहत हाईकोर्ट ने सरकार की अपील को खारिज करते हुए अभ्यर्थी को कास्टेबल पद पर बनाए रखने पर विचार करने को कहा था.जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस बी वी नागारत्ना की बैंच ने राजस्थान सरकार की अपील को स्वीकार करते हुए ये आदेश दिये हैं.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान राजस्थान सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता मनीष सिंघवी पेश हुए. सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखना कांस्टेबल का मुख्य दायित्व होता है ऐसे में सबसे पहले उसे ईमानदार होना जरूरी हैं. सिंघवी ने कहा कि एक अभ्यर्थी जो कांस्टेबल भर्ती के प्रथम स्टेज पर होने के बावजूद अपने एप्लीकेशन फार्म में अपराधिक रिकार्ड की जानकारियां छुपा रहा है, गलत जानकारी भर रहा हैं, उसे कास्टेबल पद पर भर्ती के लिए कैसे भरोसा किया जा सकता हैं. सरकार की दलीलों को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूर किया है.
क्या है मामला
पुलिस कांस्टेबल के 4684 पदों के लिए 7 अप्रैल 2008 को राजस्थान के डीजीपी कार्यालय की ओर से विज्ञप्ति जारी कि गयी. जारी कि गयी विज्ञप्ति में अभ्यर्थियो से आवेदन फार्म की सभी प्रवष्ठिया पूर्ण करने के निर्देश थे. विज्ञप्ति में कहा गया कि अगर कोई सूचना गलत पायी जाती है तो किसी भी स्तर पर अभ्यर्थी के आवेदन को निरस्त कर दिया जायेगा. याचिकाकर्ता ने अपने आवदेन फार्म में अपराधिक रिकार्ड के कॉलम में किसी प्रकार के अपराधिक रिकार्ड नही होने की जानकारी दी.
याचिकाकर्ता ने कांस्टेबल भर्ती के लिए आयोजित लिखित परीक्षा के साथ ही शारीरिक दक्षता परीक्षा को भी पास कर लिया. इसी दौरान सीकर जिला पुलिस द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ वर्ष 2007 में दर्ज एक एफआईआर होने की जानकारी दी गयी. अपराधिक रिकार्ड की जानकारी छुपाने और आवेदन फार्म में गलत जानकारी देने के आधार पर विभाग ने कास्टेबल पद पर याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी को खारिज कर दिया.
पुलिस विभाग द्वारा उम्मीदवारी को खारिज करने के आदेश को याचिकाकर्ता की ओर से राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौति दी गयी. इसी बीच याचिकाकर्ता के खिलाफ नीम का थाना पुलिस थाने में एक ओर एफआईआर भी दर्ज कि गयी. 21 जनवरी 2016 को सीकर की एक एसीजेएम अदालत ने याचिकाकर्ता को कई धाराओं से दोषमुक्त कर दिया. लेकिन आईपीसी की धारा 341 और 323 के तहत दोषी माना.
हाईकोर्ट में अपील के पेडिंग रहते हुए एसीजेएम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को आईपीसी 341 और 323 में भी इस आधार पर आरोपमुक्त कर दिया कि दोनो पक्षकारों के बीच में समझौता हो गया था. वही याचिकाकर्ता के खिलाफ इस दौरान एक ओर एफआईआर नीम का थाना पुलिस थाने में ही 505/2018 दर्ज हुई जिसमें आईपीसी की धारा 341, 323, 282 और 427 में आरोप तय किये.
राजस्थान हाईकोर्ट की एकलपीठ ने 12 मार्च 2018 को अपने फैसले में याचिकाकर्ता की याचिका स्वीकार करते हुए सरकार को आदेश दिये कि कांस्टेबल पद पर उसकी उम्मीदवारी को कंसीडर किया जाये. एकलपीठ के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने खण्डपीठ के समक्ष अपील दायर कर चुनौति दी. हाईकोर्ट की खण्डपीठ ने भी 4 मार्च 2020 को राज्य सरकार की अपील को खारिज करते हुए एकलपीठ के आदेश को बरकरार रखा ओर सरकार को आदेश दिये कि वो याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी को कंसीडर करे.
हाईकोर्ट के फैसले के दौरान ही याचिकाकर्ता चैतन जैफ के खिलाफ पुलिस द्वारा आईपीसी की धारा 341, 323, 282 और 427 के लिए चार्जशीट दायर कि गयी. जिसकी अदालत में ट्रायल पेडिंग रही. दूसरी तरफ राजस्थान हाईकोर्ट के खण्डपीठ के फैसले से असंतुष्टि जताते हुए राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की.
सुप्रीम कोर्ट में अपील पर सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से कहा गया कि स्पष्ट दिशानिर्देशों के बावजूद याचिकाकर्ता अभ्यर्थी द्वारा अपने अपराधिक रिकार्ड को ना केवल छुपाया गया है बल्कि गलत जानकारी भी दी गयी है.याचिकाकर्ता द्वारा लगातार अपने खिलाफ दायर एफआईआर की भी जानकारी छुपायी गयी. यहां तक कि उसके खिलाफ 3—4 एफआईआर दर्ज कि गयी, जिनमें से दो में समझौता के आधार पर उसे बरी कर दिया गया है वही एक मामले में दोषी ठहराया गया है. हालाकी अपराधियों की परिवीक्षा अधिनियम के तहत उसे लाभ भी दिया गया हैं इसके बावजूद अभी भी अभ्यर्थी के खिलाफ एक मामला अभी भी लंबित है. सरकार ऐसे व्यक्ति को कांस्टेबल के रूप में नियुक्त कर सकती हैं.सरकार ने कहा एक कांस्टेबल पर राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने का महत्वपूर्ण दायित्व होता है, ऐसे में सबसे पहले उसे ईमानदार होना चाहिए.