यहां तिल-तिल कर मरने को मजबूर है लोग, खाने की जगह फांक रहे है धूल-मिट्टी
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यहां तिल-तिल कर मरने को मजबूर है लोग, खाने की जगह फांक रहे है धूल-मिट्टी

क्रेशर जॉन से उड़ती धूल मिट्टी से यहां के स्थानीय निवासी सिलोकोसिस टीबी, दमा और एलर्जी जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित हो रहे हैं. इन गंभीर बीमारियों की चपटे में आने से करीब दर्जन भर लोग अपनी जान गवा चुके हैं, जिन परिवारों के सर से साया उठा चुका है, उन परिवारों की बहुत ही दयनीय स्थिति है.

यहां तिल-तिल कर मरने को मजबूर है लोग

Kotputli: राजस्थान के कोटपूतली में दर्जनों गांवों के लोग क्रेशर जॉन के कारण आज बहुत बड़ी परेशानी में है. क्रेशर जॉन से उड़ती धूल मिट्टी से यहां के स्थानीय निवासी सिलोकोसिस टीबी, दमा और एलर्जी जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित हो रहे हैं. इन गंभीर बीमारियों की चपटे में आने से करीब दर्जन भर लोग अपनी जान गवा चुके हैं, जिन परिवारों के सर से साया उठा चुका है, उन परिवारों की बहुत ही दयनीय स्थिति है.

पिछले 10 साल से ये सिलसिला चला आ रहा है लेकिन जिम्मेवारों के कान में कोई जूं तक नही रेंग रही. किसी भी उद्योग धंधो को बढ़वा देने के लिये सरकार हमेशा बढ़ चढ़ कर सहयोग करती है ताकी उस क्षेत्र में उद्योग धंधो के कारण काम रोजगार की कमी को पूरा किया जा सके और स्थानीय लोगों के लिये रोजागार के दरवाजे खोले जा सके लेकिन वहीं रोजगार किसी की जान पर भारी पड़ने लगे तो फिर क्या किया जाये.

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कोटपूतली में दर्जनों गांवों में क्रेशर जॉन स्थापित किये गये जिसके बाद आसपास के लोगों का जीना दूभर हो गया. आज की स्थिति की बात करें तो करीब दर्जन भर गांव ऐसे हैं, जिनके ग्रामीण इन क्रेशरों से निकलती धूल मिट्टी से आसपास का वातावरण पूरा दूषित हो गया. जिस कारण खाने पीने की वस्तुओं के साथ धूल मिट्टी सीधे मुंह में जा रही है, यहां के सभी ग्रामीण गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. जिनमें महिला और बच्चे भी शामिल है. साथ ही फसलें भी चोपट हो रही है. फसलों को धूल मिट्टी के कारण पोषण नहीं मिल पाता है, धूल मिट्टी की मोटी-मोटी परतें जमीन और पौधों पर जम जाती है जिस कारण फसल पूरी तरह से पनप नहीं पाती.

ऐसी स्थिति में यहां के ग्रामीणों के लिए रोजगार की बात तो दूर, यहां के ग्रामीण बीमारियों से ग्रसित होकर काम करने लायक नहीं रहते हैं. साथ मे इन पीड़ित परिवारों को अभी तक किसी प्रकार की आर्थिक सहायता तक मुहिया नहीं करवाई गई, ज्यादा दिक्कत तो उन परिवारों की है. इन गंभीर बीमारियों के कारण घर के मुखिया चल बसे जिनकी मृत्यु हो चुकी है. उन परिवारों को आज तक सरकार प्रसाशन जनप्रिनिधियों और यहां तक कि क्रेशर मालिकों को किसी प्रकार की सहायता प्रदान नहीं की गई. बहुत से परिवार तो यहां से पलायन तक कर चुके हैं लेकिन वो परिवार कहां जाये, जिनके यहां रहने के अलावा कोई और व्यवस्था नहीं है.

अब बात ये सामने आती है कि ऐसे रोजगार किस काम के जो किसी की जान पर भारी पड़ जाये और केवल अमीरों की तिजोरियों को भरने का काम किया जाये या तो फिर यहां का पूरा सिस्टम फेल है या फिर सब काम मिलीभगत से चल रहा है.

जानिए ग्रामीणों का क्या कहना है 
चोटिया मोड़ पर मोबाइल की दुकान पर बैठे राजेन्द्र मीणा ने बताया कि यहां आसपास के गांवों के ग्रामीण जानवरों से भी बुरा खाना खाने को मजबूर है. यहां के छोटे-छोटे बच्चे भी गंभीर बीमारियों से ग्रसित है लेकिन इनकी सुनने वाला कोई नहीं है. वही पूर्व में रहे डेली गेट सुभाष मीणा ने बताया कि हम लोगों ने यहां की व्यवस्थाओं को ठीक करने के लिये जयपुर जिला कलेक्टर राज्य सरकार स्थानीय जनप्रतिनिधियों तक गुहार लगा चुके हैं लेकिन किसी भी प्रकार क्रेशरों और इनके मालिकों पर नियम कायदे लागू नहीं किये गये. जिसके कारण आसपास के ग्रामीणों और क्रेशरों पर मजूदरी करने वाले मजूदरों के सहित करीब 8 से 10 लोगों की मौत हो चुकी है लेकिन किसी को कोई फर्क नही पड़ रहा.

आज भी गंभीर बीमारी से पीड़ित है यहां के निवासी
चोटिया मोड़ के पास मीणों की ढाणी में आज भी ऐसे घर है, जिनमें तीन चार मरीज आज भी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं. आज उनके पास इलाज करवाने तक के पैसे नहीं है, वो लोग तिल-तिल कर मरने को मजबूर हैं. यहां कोटपूतली नीमकाथाना स्टेट हाइवे पर एक विकलांग ने चाय पानी की दुकान कर रखी है जो आज टीबी से ग्रसित है. जिसकी सुनवाई आज तक किसी ने नहीं की, विकलांगता के चलते भी अपनी रोजी रोटी कमा कर अपना जीवन बसर कर रहा है लेकिन जिस बीमारी से जूझ रहा है वो बीमारी कब क्या स्थिति बदल दे ये तो भगवान ही जानता है.

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जिनके सर से अपनों का साया उठ चुका है
इस समस्या का सबसे बड़ा दंस अगर झेला है तो उन परिवारों ने जिनके सर से उनके अपनों का साया उठ चुका है, जो मजदूरी करके परिवार का लालन पालन करते थे. आज उन परिवारों की स्थिति बहुत दयनीय है. इनके परिवार में केवल महिलाएं और छोटे बच्चे बचे हैं, जिनको दो वक्त की भी रोटी सही से नसीब नहीं हो पा रही है. जैसे-तैसे मजूदरी करके अपना पेट पालने का काम कर रहे है. पप्पू राम मीणा की सिलोकोसिस बीमारी से 8 साल पहले मौत हो गई थी. मौत के बाद पप्पू राम पीछे तीन बेटियां और दो बेटों को छोड़ चले गये. उन सब की जिम्मेदारी पप्पू राम मीणा की पत्नी पर आ गई. पप्पू राम मीणा की पत्नी आज भी 5 बच्चों का मजदूरी करके लालन पोषण कर रही हैं. वहीं कमला मीणा भी आज इसी स्थिति से गुजर रही है. इन गंभीर बीमारियों से पति की मौत हो गई साथ मे एक बेटे की मौत भी हो गई. घर मे केवल एक बेटा ही बचा है, जो पूरे परिवार का कमा कर लालन पोषण कर रहा है.

जानिए नारहेड़ा सीएचसी के चिकत्सकों का क्या कहना है 
नारहेड़ा सीएचसी में पदस्थापित डॉ राहुल शर्मा का कहना है आसपास के क्षेत्र के दर्जनों गांव के 35 लोग आज टीबी दमा एलर्जी व सिलोकोसिस जैसी बीमारी से पीड़ित है. जिनका बराबर इलाज भी चल रहा है, साथ में समय-समय पर कैम्प लगा कर सभी को इलाज भी मुहिया करवाया जाता है. सिलोकोसिस जैसी गंभीर बीमारी का इलाज जयपुर SMS अस्पताल में ही सम्भव ऐसे मरीजों को यहां से रैफर किया जाता है.

आप देख सकते हैं कि देश आज 21वीं सदी में जी रहा है, उसके बावजूद आज ऐसी स्थिति का मंजर देखा जा सकता है और वो भी देश-प्रदेश की दो राजधानियों के बीच की स्थिति का मंजर है. तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कहीं बेकवर्ड क्षेत्र में क्या स्थिति होगी. एक छोटे से लालच के चलते किसी को जान की कीमत देकर चुकानी पड़े तो इससे बड़ी शर्म की बात क्या हो सकती है. समय रहते अगर इस स्थिति पर काबू नहीं पाया गया तो हालत क्या होंगे, आप हम समझ सकते हैं.

Reporter- Amit Yadav

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