वो मास्टर जी, जो नेहरू से भिड़ गए, पटेल से था करीबी रिश्ता, फिर बने Rajasthan के पहले CM
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वो मास्टर जी, जो नेहरू से भिड़ गए, पटेल से था करीबी रिश्ता, फिर बने Rajasthan के पहले CM

Hiralal Shastri : जोबनेर राजस्थान के सबसे ठंडे शहरों में से एक है लेकिन यहां का सियासी पारा बेहद गरम है. आखिर कौन थे मास्टर जी, जो राजस्थान के पहले CM बनें और जोशी से शास्त्री बनने की पूरी कहानी. राजस्थान की स्पेशल चुनावी सीरीज में जानते हैं.

वो मास्टर जी, जो नेहरू से भिड़ गए, पटेल से था करीबी रिश्ता, फिर बने Rajasthan के पहले CM

Hiralal Shastri, Rajasthan Election 2023 : राजस्थान चुनाव को लेकर इन दिनों अहम जंग का मैदान बना हुआ है. यहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच लड़ाई आर-पार की है. राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 का चुनाव 25 नवंबर को है लेकिन 3 दिसंबर के दिन का लोगों को अभी से इंतजार है. जोबनेर राजस्थान के सबसे ठंडे शहरों में से एक है लेकिन यहां का सियासी पारा बेहद गरम है. आखिर कौन थे मास्टर जी, जो राजस्थान के पहले CM बनें और जोशी से शास्त्री बनने की पूरी कहानी. राजस्थान की स्पेशल चुनावी सीरीज में जानते हैं.

मास्टर जी ने संभाली राजस्थान के पहले सीएम की कुर्सी

इस बीच गली-चौराह, मोहल्ले और थड़ी यानी चाय की दुकानों पर राजस्थान के वर्तमान सीएम से लेकर पुराने सीएम के किस्से और उनके कार्यकाल को लेकर की भी चर्चा खुब सुनी जा रही है. एक साधाराण मास्टर जी जो राजस्थान के पहले CM बनें. आइये जानते हैं हीरालाल शास्त्री से जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में.

हीरालाल जोशी आखिरकार हीरालाल शास्त्री कैसे बने

राजस्थान की राजधानी जयपुर के जोबनेर में हीरालाल जोशी का जन्म 24 नबंबर 1899 को किसान परिवार में हुआ था. हीरालाल जोशी  21 साल की उम्र में संस्कृत में शास्त्री की डिग्री हासिल कर हीरालाल जोशी से हीरालाल शास्त्री बन गए.  संस्कृत भाषा को इन्होंने अपना करियर चुना. इसके बाद यहां इन्होंने छात्रों को पढ़ाने का मन बनाया, लेकिन गांव में उनका सपना अधूरा रह गया. जयपुर राजघराने की जिद पर उनहें शहर का रूख करना पड़ा. यहां आकर वो मेयो कॉलेज में संस्कृत पढ़ाना शुरू किया. 

मास्टर जी से राजनीति में किया पर्दापण

हीरालाल शास्त्री कॉलेज के साथ धीरे-धीरे सियासत में भी रूचि दिखाने लगे. इनका कद भी बढ़ता चला गया.  जिसके चलते रिसायतकाल जयपुर प्रजामंडल को उन दिनों महात्मा गंधी के करीबी जमनालाल बजाज संभाला करते थे. तब हीरालाल शास्त्री को यहां का मंडल का सचिव बना दिया गया. साल 1942 में जमनालाल बजाज का निधन हो गया. इसके बाद शास्त्री ही यहां का जिम्मा सौंप दिया गया. इसी दौरान हीरालाल शास्त्री, जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल के करीब आ गए. 

राजस्थान के पहले सीएम बने हीरालाल शास्त्री

तारीख  25 मार्च,1948 को जिसमें कोटा, बूंदी, झालावाड़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, किशनगढ़, टोंक, कुशलगढ़ (चीफशिप्स) और शाहपुरा रियासतों को मिलाकर राजस्थान संघ का निर्माण किया गया. इसके बाद मेवाड़, मारवाड समेत कई प्रजामंडलों में चल रही सरकारें खत्म हो गईं.

इसके बाद राजस्थान के पहले सीएम के लिए कई नामों की सुगबुगाहट चल रही थी. लेकिन सरदार पटेल के करीबी माने जाने वाले हीरालाल शास्त्री के नाम पर सहमति बनी और  वो तारीख भी आ गई जब 7 अप्रैल 1949 को राजस्थान का पहला सीएम मिला.  हीरालाल शास्त्री राजस्थान के पहले सीएम के पद पर शपथ ली.

3 जनवरी, 1951 को शास्त्री ने इस्तीफा सौंप दिया

साल 1950 में कांग्रेस के संगठन चुनाव हुआ. भारतीय राजनीति में कांग्रेस के लिए परिवर्तनकारी काल था. राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए जेबी कृपलानी और पुरुषोत्तम दास टंडन नाम थे. कृपलानी पंडित नेहरू के खेमे के और बेहद करीब माने जाते थे और टंडन सरदार पटेल के खेमे के. हीरालाल शास्त्री खेमे ने टंडन का साथ दिया. व्यास-वर्मा खेमे ने कृपलानी को वोट किया और टंडन आकिरकार चुनाव जीत गए. चुनाव के तुरंत बाद सरदार पटेल का निधन हो गया. अब वो समय था जहां कांग्रेस के सिर्फ पंडित नेहरू ही ऑल इन वन थे. शास्त्री का पक्ष रखने वाला दिल्ली में कोई नहीं. 3 जनवरी, 1951 को लिहाजा शास्त्री ने अपने सीएम पद से अचानक इस्तीफा दे दिया.

बेटी की याद में बनाई वनस्थली विद्यापीठ 

राजस्थान का वनस्थली विद्यापीठ महिला शिक्षा की राष्ट्रीय संस्थाजो राजस्थान के टोंक जिले की निवाई में स्थित है. यहां से हीरालाल शास्त्री उनकी पत्नी और बेटी की भी कई रोचक किस्से जुड़े है जो उनकी विरासत और यादों को संजोए हुए हैं. जब हीरालाल शास्त्री अपनी पत्नी और बेटी के साथ  टोंक जिले में स्थित वनस्थली गांव में जीवन बीताते थे. तब उस गांव में कोई स्कूल नहीं हुआ करता था.

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तब हीरालाल शास्त्री अपने देख रेख में बेटी शांता को पढ़ाया करते थे. एक दिन 12 साल की उम्र में इनकी बेटी शांता की तबियत बिगड़ गई और उनका निधन हो गया. अपनी बेटी की मौत के बाद शास्त्री के उपर गमों का पहाड़ टूट गया. शास्त्री  अपनी बेटी की याद में यहां साल 1935 में एक स्कूल खुलवाया. इस स्कूल का नाम भी अपनी बेटी के साथ के जोड़ा और इसका नाम शांताबाई शिक्षा कुटीर रखा.

उस वक्त इस स्कूल में 6 लड़कियों ने दाखिला लेकर पढ़ाई शुरू की. धीरे-धीरे इस स्कूल में लड़कियों की संख्या बढ़ती गई. हीरालाल शास्त्री का सपना था कि यहां लड़कियों को बेहतर-से-बेहतर शिक्षा मिल सके.  आज ये देश की सबसे बड़ी गर्ल्स यूनिवर्सिटी के तौर पर जाना जाता है. इसका नाम वनस्थली विद्यापीठ है. हीरालाल शास्त्री का सपना सही मायने में साकार हुआ.

 

 

 

 

 

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