Sawan 2023: पिछले दो दशकों से कांवड़ यात्रा की लोकप्रियता बढ़ी है और अब समाज का उच्च एवं शिक्षित वर्ग भी कांवड यात्रा में शामिल होने लगे हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका इतिहास क्या है, इसको लेकर कई मान्यताएं है.पुराणों के अनुसार कावंड यात्रा की परंपरा, समुद्र मंथन से जुड़ी है.
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Sawan 2023: सावन की शुरुवात होते ही शिव भक्त भगवान शिव को जल अर्पण करने के लिए पवित्र गंगा नदी का जल को कावड़ में भर कर शिवालयों तक पैदल जाते है. पर क्या आप जानते है की ये कावड़ क्यों लाय जाते हैं क्या आपको यह पता है की पहला कावड़िया कौन था.पिछले दो दशकों से कांवड़ यात्रा की लोकप्रियता बढ़ी है और अब समाज का उच्च एवं शिक्षित वर्ग भी कांवड यात्रा में शामिल होने लगे हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका इतिहास क्या है, इसको लेकर कई मान्यताएं है.
देवताओ ने की शुरूवात
कुछ मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकले हलाहल के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए शिवजी ने शीतल चंद्रमा को अपने माथे पर धारण कर लिया था. इसके बाद सभी देवता शिवजी पर गंगाजी से जल लाकर अर्पित करने लगे. सावन मास में कांवड़ यात्रा का प्रारंभ यहीं से हुआ.
सर्वप्रथम रावण लाया था कावड़
शिव जी के भक्तो में रावण सबसे बड़ा और अनन्य भक्त था .पुराणों के अनुसार कावंड यात्रा की परंपरा, समुद्र मंथन से जुड़ी है. समुद्र मंथन से निकले कालकूट विष को जब शिव जी ने पी लिया तो विष पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए. शिव को विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए उनके अनन्य भक्त रावण ने कांवड़ में जल भरकर ‘पुरा महादेव’ स्थित शिवमंदिर में शिवजी का जल अभिषेक किया. इससे शिवजी विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए और यहीं से कांवड़ यात्रा की परंपरा की शुरुवात हुईं
परशुराम ने की थी कावड़ यात्रा प्रारंभ
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले भगवान परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर से जल भरकर पुरा महादेव का जल अभिषेक किया था. पुरा महादेव वर्तमान में बागपत के पास स स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है. और मानते हैं कि तभी से कावड़ यात्रा प्रारंभ हुई जब परशुराम ने शिवजी का अभिषेक किया उस समय श्रावण मास चल रहा था तब से आज तक श्रावण मास में हजारों कावड़िया कावड़ में जल भरकर पुरा महादेव का अभिषेक करते है
श्रवण कुमार ने भी किया था जल अभिषेक
कुछ मान्यताएं के अनुसार श्रवण कुमार पहले कावड़िए थे. श्रवण कुमार के माता-पिता ने इच्छा जाहिर की वह मायापुरी यानी हरिद्वार में गंगा स्नान करना चाहते हैं फिर श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता पिता को कावड़ में बैठाया और हरिद्वार ले गए और फिर उन्होंने हरिद्वार में उन्हें गंगा स्नान कराया और वहां से पवित्र गंगा का जल भर कर भी लाय और शिवजी का जल अभिषेक किया तभी से कावड़ यात्रा का चलन प्रारंभ हुआ.
भगवान राम ने भी उठाई थी कवाड़
कुछ मान्यताएं भगवान राम को भी पहला कावड़िया सिद्ध करती हैं. भगवान राम ने झारखंड के सुल्तानगंज से कांवड़ में जल भरकर बाबाधाम स्थित शिवलिंग का जल अभिषेक किया था इस कथा के अनुसार भगवान राम पहले कावड़िया है.