यूं तो भारत देश में देवी देवताओं के कई चमत्कारी मंदिर आपने देखे होंगे. मंदिरों के चमत्कारों के बारे में कई सारी कहानियां और कई सारी बातें भी सामने आती हैं.
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Jaipur : यूं तो भारत देश में देवी देवताओं के कई चमत्कारी मंदिर आपने देखे होंगे. मंदिरों के चमत्कारों के बारे में कई सारी कहानियां और कई सारी बातें भी सामने आती हैं. आज हम आपको एक ऐसी माता के मन्दिर के दर्शन करवाएंगे, जिसके जात लगाने के बाद तुतलाकर बोलने वाले नन्हे मुन्नों की बोली ठीक हो जाती है. अरावली पर्वत श्रंखला से घिरा हुआ महामाया माता के मंदिर से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. राजस्थान ही नहीं अपितु राजस्थान के अलावा दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, पंजाब के लोग भी इस मंदिर में शीश नवाने के लिए पहुंचते हैं.
जयपुर से 48 किलोमीटर दूर चौमू-अजीतगढ़ स्टेट हाईवे पर सामोद में अरावलियों पहाड़ियों के बीच स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ महामाया मन्दिर (Shaktipeeth Mahamaya Temple) श्रद्धा आस्था के साथ-साथ पर्यटन के लिहाज से भी मनोरम रमणीय स्थान है. जहां लाखों श्रद्धालु प्रतिवर्ष मन्दिर में माता के जात जडूले चढ़ाने आते हैं. सामोद के बंदौल से मन्दिर तक पहुचने के लिए श्रद्धालुओं को दो किमी का रेतीला और दो किमी पहाड़ी पथरीला रास्ता पार करना पड़ता है. शक्तिपीठ महामाया मन्दिर मे आस-पास ही नहीं अपितु दूर दराज से श्रद्धालु अपने छोटे बच्चों के जडूले करने के लिए आते हैं.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में सबसे बड़ा चमत्कार उन बच्चों के लिए देखा जाता है जो बच्चे बचपन से तुतला कर बोलते हैं. या फिर बोली नहीं आती है. इस तरह के बच्चों की 7 बार यहां जात लगाई जाती है. इसके साथ ही चांदी और तांबे की धातु की जीभ बनाकर इस मन्दिर में चढ़ाने से बच्चों की बोली सही हो जाती है. मंदिर के महंत मोहनदास बताते हैं कि करीब 700 साल पहले इस मंदिर की स्थापना हुई थी. तब यहां संत द्वारका दास महाराज तपस्या करते थे. संत की तपस्या के दौरान इन्द्रलोक से इंद्रदेव कि 7 परियां तपस्या स्थल के समीप स्थित बावडी में स्नान करने आती थी. स्नान करते समय इंद्र की 7 परियां बहुत शोरगुल एवं अठखेलियां करती रह रही थी. परियों की अठखेलियों और शोरगुल से संत द्वारका दास की तपस्या में व्यवधान पड़ता था. तपस्वी द्वारका दास ने कई बार परियों को शोर गुल करने से मना किया, लेकिन इंद्र की परियों ने चंचलतावश तपस्वी को परेशान करने की नियत से शोरगुल और अठखेलियां करना बन्द नहीं किया. जिससे एक दिन एक दिन द्वारका दास जी को क्रोध आ गया और उन्होंने परियों को सबक सिखाने की ठान ली.
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इंद्र की परिया रोजाना की तरह नहाने के लिए अपने वस्त्र उतार कर बावड़ी में उतर गई और तेज तेज शोरगुल करने लगी. तभी तपस्वी द्वारका दास महाराज बावड़ी के पास आए और परियों के वस्त्र छुपा दिये. परियां जब स्नान करके ऊपर आई तो उन्हें अपने वस्त्र नहीं मिले. परियों ने जब तपस्वी के पास अपने वस्त्र देखे तो अपने वस्त्र मांगने लगी, लेकिन तपस्वी ने परियों को वस्त्र वापस नहीं दिए और परियों को हमेशा के लिए यही आबाद रहने का श्राप दे दिया. तपस्वी ने कहा कि आज से तुम सातो यही बस जाओ और लोगो कि सेवा करो, सच्चे मन से जो भी यहां आये उनकी मुरादे पूरी करो. तब से ये सातों परियां यही निवास करती हैं. जो भी यहां आस्था श्रद्धा के साथ मनोकामना लेकर आता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है.
शक्तिपीठ महामाया मन्दिर पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को सामोद के बंदौल से चार किमी का कच्चा रास्ता तय करना पड़ता है. जिसमें दो किमी रेतीला रास्ता होने से श्रद्धालुओं के वाहन रेत में फस जाते हैं. वहीं, आगे दो किमी का पहाड़ी रास्ता भी उबड़ खाबड़ होने से श्रद्धालुओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है. पहाड़ी रास्ता वन क्षेत्र में होने के कारण सड़क निर्माण कार्य वन विभाग का रोड़ा बन जाता है. इस कारण से आज तक यहां सड़क नहीं बन पाई. पहाड़ी रास्ता संकरा होने के साथ पहाड़ी रास्ते के दूसरी ओर गहरा बरसाती नाला होने से हमेशा दुर्घटना का अंदेशा बना रहता है. यदि मन्दिर तक पहुंचने का पक्का रास्ता बने और साथ ही बरसाती नाले पर सुरक्षा दीवार बने को श्रद्धालुओं को सुविधा मिले, साथ ही संभावित दुर्घटनाओं से बचा जा सके.
मन्दिर महंत मोहन दास बताते हैं कि तपस्वी द्वारका दास महाराज नवरात्री, बैशाख ओर भाद्रपद माह मे विशेष तपस्या करते थे. अत: इन दिनों में (नवरात्री, बैशाख, भाद्र पद) यहां पर विशेष मेले का आयोजन होता है. नवरात्री के 9 दिनों तक महामाया मन्दिर में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. वहीं, दूसरी ओर बैशाख और भाद्रपद माह में विशेष मेले का आयोजन होता है. पंद्रह दिन चलने वाले बैशाखी और भाद्रपद मेंले में बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं. इस दौरान श्रद्धालु माता के दर्शन कर नया अनाज, वस्त्राभूषण, दूध, दही, पनवाड़े आदि चढ़ाते हैं.