शहर के श्माशान घाट धर्माणा धाम में शव लेकर लोग आ रहे हैं. पर ये क्या? चिता पर लकड़ियां सजाने में एक बुजुर्ग उनकी मदद कर रही है.
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Sikar: शहर के श्माशान घाट धर्माणा धाम में शव लेकर लोग आ रहे हैं. पर ये क्या? चिता पर लकड़ियां सजाने में एक बुजुर्ग उनकी मदद कर रही है. पूछने पर पता चला कि उस बुजुर्ग महिला का मृत व्यक्ति और उसके परिवार से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है.
महिला शवों के जलने के बाद साफ-सफाई से लेकर अपने परिजन की मृत्यु के दर्द में बैठे लोगों को पानी पिला रही है. श्मशान में वो कुछ खोज रही है जैसे कुछ भूल गई हो. कुछ छूट गया हो जिसकी तलाश में वो यहां है. वहां से उठकर तुरंत फूल चुनने लग जाती है और अंतिम संस्कार के लिए काम में आने वाला माला बनाने लगती है. पूछने पर पता चला कि वो यहीं रहती है. घर नहीं जाती है. उसे शिवधाम धर्माना चैरिटेबल ट्रस्ट की तरफ दो हजार रुपए मेहनताना भी दिया जाता है जिससे खाने-पीने का प्रबंध हो जाता है. जब बुजुर्ग के बारे में और पता किया गया तो सच्चाई न सिर्फ रूह कपां देने वाली बल्कि आंखें भिगो देने वाली थी.
पूछने पर पता चला कि महिला का नाम राज कंवर है. 15 साल पहले तक श्मशान क्या होता है? श्माशान में कैसा माहौल होता है इन बातों से राज कंवर दूर-दूर तक अंजान थी. राज कंवर की शादी झुंझुनूं जिले के मंडावा में हुई थी. एक बेटे के जन्म के बाद राज पति का इंतजार कर रही थी. पर होनी को कुछ और ही मंजूर था. मुंबई से पति के आने की नहीं बल्कि पति के हमेशा-हमेशा के लिए दुनिया छोड़कर चले जाने की खबर ने राज कंवर को झकझोर दिया. वो भीतर ही भीतर टूट गई. ससुराल छोड़ दिया और कलेजे के टुकड़े को लेकर पीहर (सीकर में राजश्री सिनेमा के पास) आ गई. यहां कुछ वर्षों बाद मां भी चल बसी. अब राज अपने बेटे के सहारे दुनिया देख रही थी. बेटा बड़ा हुआ और इलेक्ट्रॉनिक की दुकान पर काम करने लगा.
जिंदगी पटरी पर आते ही बेटरी हो गई
इधर राज कंवर की जिंदगी पटरी पर आई ही थी कि 3 दिसंबर 2008 का दिन दर्द के काले घने बादल लेकर आ गया. ये बादल आज भी छंटे नहीं हैं. दरअसल राजकंवर का इकलौते बेटे इंदर की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई. राज कंवर अस्पताल पहुंची और कुछ समझ पाती तब तक बेटे का शव पोस्टमार्टम के बाद पैक करके दे दिया गया. वो कलेजे के टुकड़े को आखिरी बार निहार न सकी. इसी श्मशान में कैलाश तिवाड़ी की मदद से राज कंवर ने बेटे को मुखाग्नि दी.
पेड़ की ओट में बैठ पुकरती है बेटे को
राज कंवर पिछले 15 सालों से अपने दिल को ये समझाने में लगी है कि बेटा इस दुनिया से हमेशा-हमेशा के लिए चला गया है पर दिल मानने को तैयार नहीं होता है. वो पेड़ की ओट में बैठकर बेटे इंदर को आवाज लगाती है. कहती है... बेटा सोया है. उसके जगने का इंतजार कर रही हूं. वो मरा नहीं है बल्कि किसी ने उसे मार दिया है. उसे इंसाफ दिलाउंगी. वो नाराज है... बोलता भी नहीं है. ये कहकर राज कंवर अपनी सूखी और झुर्री पड़ गई आंखों में छलकते आंसुओं को रोकने की कोशिश करने लग जाती है.
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ये सवाल सबको निशब्द कर देता है
राज कंवर को श्मशान में देख लोग ये पूछते हैं कि वो यहां क्यों है? श्मशान में महिला का क्या काम. राज कंवर जवाब देती है... मेरा लाल सोया है यहां. उसे छोड़कर भला कैसे चली जाऊं? वो उठता नहीं बाबू... नाराज है न. उसे मार दिया गया पर इंसाफ नहीं मिला. सब कहते हैं बाइक से गिर गया. मैं कहती हूं नहीं बेटे की हत्या हुई है. पर सुनता कोई नहीं है. अब तो बेटा भी लग रहा है रूठ गया है.
8 घंटे तक जिंदा रहा बेटा
राज कंवर कहती है कि अस्पताल में डॉक्टरों ने कहा कि बेटा 8 घंटे तक जिंदा रहा. उसके शरीर में साढ़े चार इंच का गहरा घाव था. ये कैसे हुआ कुछ समझ नहीं आया. बेटा जिंदा था और मैं उससे मिलकर उसका दर्द नहीं जान पाई. शायद अब बता दे पर बताता नहीं है. इन तमाम सच्चाई के बीच दिल जैसे ही बेटे के कहीं से आकर मां कहने की उम्मीदें जगाता है तो राज कंवर इधर-उधर देखने लगती है. उसकी आंखें बेटे को खोजने लगती हैं.
लोगों की सेवा में ही बेटे की तलाश
राज कंवर श्मशान में आए लोगों की सेवा कर शायद इंदर की आत्मा को शांति देना चाहती है... या ये भी हो सकता है कि खुद के दिल को तसल्ली देने के लिए राज कंवर ऐसा करती हो. पर इस सवाल का जवाब वो नहीं देती है. 15 साल बीत चुके हैं. न कभी श्मशान छोड़कर गई न ही कोई लेने आया. शायद अपनी कोख में 9 महीने तक बेटे को पालने और पति की मौत के बाद बेटे को ही संसार मामने वाली राज कंवर की जिंदगी के लिए मौत ही अंतिम सत्य बन चुका है. वो इस श्मशान की खौफनाक और दर्दनाक सच्चाई से इतनी रूबरू हो चुकी है कि यहीं बेटे की यादों के सहारे जी रही है.
Content: Ashok shekhawat
Script : Brijesh Upadhyay