जयपुर पर होली की एक अनोखी परंपरा, 189 सालों से चला आ रहा है ये रिवाज, निकाली जाती है शव यात्रा
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जयपुर पर होली की एक अनोखी परंपरा, 189 सालों से चला आ रहा है ये रिवाज, निकाली जाती है शव यात्रा

Jaipur: होली के अपने-अपने रंग हैं, लेकिन जयपुर के चौमूं शहर की होली भी काफी खास होती है, इसे खास बनाती है 189 सालों से चल रही एक अनोखी परंपरा. आपको बता दें कि घास-फूस से बने पुतले को अर्थी पर सुलाकर शव यात्रा निकाली जाती है.मोरीजा रोड चौराहे पर घांस फूस से बने पुतले का अंतिम संस्कार किया जाता है. 

 

जयपुर पर होली की एक अनोखी परंपरा, 189 सालों से चला आ रहा है ये रिवाज, निकाली जाती है शव यात्रा

Jaipur: राजधानी जयपुर के चौमूं शहर में होली के त्योहार पर करीब 189 साल पुरानी परंपरा पर आज भी जश्न का माहौल देखने को मिलता है, और इस होली के त्यौहार को खास अंदाज में भी मनाया जाता है. होली के दिन देर रात को मस्ती और हुड़दंग के साथ बोराजी की शव यात्रा निकाली जाती है.

बोराजी की शव यात्रा में शहर के हजारों लोग जिनमें युवा,बच्चे,बुजुर्ग शामिल होते हैं.इस अनोखी और अनूठी परंपरा की शुरुआत साल 1834 में चौमूं के ठाकुर लक्ष्मण सिंह ने होली और धुलंडी के त्योहार को अनोखा मनाने के लिए इसकी शुरुआत की.उस समय किसी व्यक्ति को अर्थी पर सुलाकर उसकी शवयात्रा चौमूं शहर के प्रमुख मार्गों से निकाली जाती थी.

उस समय शव यात्रा के दौरान चंग की थाप पर खूब मस्ती और हुड़दंग की जाती थी, हालांकि कई वर्षों से चली आ रही इस परंपरा में अब सिर्फ फर्क इतना है कि अब शव यात्रा में अर्थी पर घास फूस का पुतला बनाकर शव यात्रा निकाली जाती है.जिसमें गाजे-बाजे और चंग की थाप पर बड़े धूमधाम से शहर के मुख्य मार्ग होते हुए बस स्टैंड पर यह शव यात्रा पहुंचती है. जहां पर मोरीजा रोड चौराहे पर शव यात्रा के पुतले को जलाया जाता है.इस मौके पर पटाखों के साथ भव्य आतिशबाजी की जाती हैं.

इसी दौरान हंसी मजाक और ठिठोली के चलते लोग एक दूसरे पर टूटे-फूटे जूते चप्पल फटे पुराने कपड़े, पानी फेंककर एक दूसरे को बोराजी कहते हैं.

बींद-भाडू की बारात भी अपने आप में खास
 भाडू की भी बारात निकाली जाती है जो भी अपने आप में खास प्रचलन है, चौमूं निवासी पंडित गोपाल लाल शर्मा ने बताया यह बारात धनजी की गली स्थित ब्रह्मपुरी जागेश्वर मंदिर से रवाना होती है. इस बारात में भी शहर के हजारों लोग शामिल होते हैं. जिसमें दूल्हा घोड़ी पर सवार होकर अपनी बारात के साथ निकलता है और इस मौके पर भगवान शंकर,भगवान विष्णु और भक्त प्रहलाद की अनेक झांकियां रहती है.

 इस बींद-भाडू बारात की खास बात यह है कि जिस व्यक्ति की काफी दिनों से शादी नहीं हो रही है, उसी को इस बारात में दूल्हा बनाया जाता है और जो इस बारात का दूल्हा बनता है अगले 1 साल तक उसकी शादी होने का संयोग बन जाता है. यह बारात शहर के रावण गेट के पास स्थित हाड़ौता वालों के मकान में पहुंचती है, जहां पर दूल्हा तोरण मारता है. इसके बाद बारात वापस जागेश्वर मंदिर में पहुंचती है.सभी बारातियों को ठंडाई पिलाई जाती है.

सभी बाराती एक दूसरे के रंग गुलाल लगाकर होली के त्योहार का जश्न मनाते हैं, और इसी के साथ दो दिवसीय होली व धुंलडी के रंगोत्सव त्योहार का समापन होता है.चौमूं एसीपी राजेंद्र सिंह निर्वाण के सुपरविजन में थाना प्रभारी विक्रांत शर्मा के नेतृत्व में शांति एवं सुरक्षा व्यवस्था के लिए पुलिस का अतिरिक्त जाब्ता बोराजी की शव यात्रा व बींद-भाडू की बारात के दौरान जाब्ता तैनात रहा.

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