प्रदेशभर में आज कृष्णजन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. ऐसे में बात करे जालोर जिले के भीनमाल की तो यहां पर एक ऐसा मंदिर है जिसकी मान्यता है कि मंदिर में स्थित वराह श्याम भगवान की प्रतिमा विश्व में और कहीं भी नहीं है.
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Jalore: प्रदेशभर में आज कृष्णजन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. ऐसे में बात करे जालोर जिले के भीनमाल की तो यहां पर एक ऐसा मंदिर है जिसकी मान्यता है कि मंदिर में स्थित वराह श्याम भगवान की प्रतिमा विश्व में और कहीं भी नहीं है. इस प्रतिमा के मंदिर की पास वाली गली में बाहर एक छोटी खिड़की से सीधे दर्शन किये जाते है. कस्बे के किसी भी धार्मिक पर्व या त्यौहार पर 36 कौम के शहरवासी वराहश्याम भगवान के दर्शन करके ही शुभ कार्य की शुरूआत करते हैं.
600 वर्ष पुराना है इतिहास
भीनमाल का वराहश्याम मंदिर देश के अति प्राचीन मंदिरों में से एक है. यह मंदिर करीब 600 वर्ष पुराना है. वराह श्याम मंदिर की जन्माष्टमी के दिन विशेष पूजा अर्चना की जाती है. इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस मंदिर में एसा कोई स्थान नहीं है, जहां देव विराजीत नहीं हो, परिक्रमा पथ से लेकर मंदिर की हर दिवार पर किसी न किसी देवी-देवता की प्रतिमा मौजूद हैं. मंदिर में स्थापित वराहश्याम भगवान की मूर्ति जैसलमेर के पीले प्रस्तर से निर्मित है. जो आठ फीट लंबी व तीन फीट चौड़ी है. मूर्ति की दायीं भुजा में भगवान मेदिनी को धारण किए हुए है और उनके चरणों के पास नाग-नागिन का युगल है, जिनका ऊपरी हिस्सा मानव आकृतियों जैसा है. इनके पास ही इंद्राणी तथा नारद की प्रतिमाएं भी उत्कीर्ण है. मूर्ति इतनी भव्य एंव कलात्मक है कि मेदिनी उद्धार की घटना प्रत्यक्ष घटित होते हुए दिखाई पड़ती है. इस मंदिर में स्थित मूर्तियां, खंभे व अवशेष सतयुग काल की खुदाई के दौरान निकले हुए हैं, जिन्हें इस मंदिर में स्थापित किया गया है. वही मंदिर के मुख्य कक्ष के बाहर भगवान वराहश्याम के ठीक सामने वाली दीवार में सांतवी से दसवीं शताब्दी के बीच बनी अनेक दुर्लभ मूर्तियां लगी हुई है. जिनमें गणेश भगवान, शिव भगवान, राधाकृष्ण व वराह भगवान की शामिल है. मंदिर की अन्य दीवारों में भीनमाल क्षेत्र के आस-पास से प्राप्त अत्यंत प्राचीन मूर्तियां स्थापित की गई है. जिनमें शेषशायी विष्णु, चक्रधारी विष्णु, यक्ष व देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गई है.
पौराणिक कथाओं में है वर्णन
मंदिर में लंबे समय से शाकद्वीपीय ब्रह्माण समाज के लोग पूजा करते आये है. भगवान वराह के चरण पाताल लोक अथवा नाग लोक में तथा सिर अंतरिक्ष में है, जिनके बीच पृथ्वी स्थित है. इसी कक्ष में वराह की अन्य लघु मूर्तियां भी रखी हुई है. पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण्यक नामक राक्षश पृथ्वी को समुंद्र तल में ले गया तो, भगवान विष्णु ने वराहश्याम के रुप में तीसरा अवतार लेकर पाताल लोक में राक्षश का वध करके पृथ्वी को मुक्त करवाया. इस कक्ष के बहार की दीवार में भगवान सूर्य की पारसी पूजा पद्धति की मूर्ति लगी हुई है, जो जूते पहने हुए है. यह एक अत्यंत दुर्लभ मूर्ति है जो ईसा की पहली-दूसरी शताब्दों के आस-पास इस क्षेत्र के पश्चिम एशिया के घनिष्ठ संपर्कों की कहानी कहती है.
दाल, बाटी और चुरमा का लगता है भोग
मंदिर में चार समय पूजा-अर्चना होती है, मौसम के अनुसार चादर, कंबल व सर्दियों में रजाई ओडाई जाती है. भगवान को प्रतिदिन दाल बाटी, चुरमा का भोग लगता है जो पुजारी स्वयं बनाता है. भगवान वराहश्याम को चढऩे वाले मावे के प्रसाद का अलग ही आनंदित स्वाद है, जिसे भक्तों द्वारा ग्रहण किया जाता है.
खिड़की से होते है दर्शन
आठ फीट बड़ी मूर्ति के मंदिर के बाहर की खिड़की से पूरे दर्शन होते है. वराहश्याम मंदिर के बाहर मुख्य सड़क पर मूर्ति के सीध में एक खिड़की लगी हुई है. खिड़की से देखने पर आठ फीट लंबी व तीन फीट चौड़ी मूर्ति के पूरे दर्शन होते है. शहरवासी आते-जाते मंदिर के बाहर से भी दर्शन कर के जाते हैं. वहीं हर वर्ष मेलों का आयोजन होता है. ट्रस्ट की ओर से देवझूलनी एकादशी, गणेश चतुर्थी, कृष्ण जन्माष्टमी व अन्य विशेष दिन पर विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा को भगवान वराहश्याम को अन्नकूट का भोग लगाया जाता है. अन्नकूट भोग में 32 भोजन व 33 साग के व्यंजन का भोग लगाया जाता है.
Reporter - Dungar Singh
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