सरदारपुरा में विकास के नाम पर सैकड़ों पेड़ों की कटाई
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सरदारपुरा में विकास के नाम पर सैकड़ों पेड़ों की कटाई

आधुनिकता की चकाचौंध में आज लोग पर्यावरण को जमकर नुकसान पहुंचा रहे हैं. हाल ही में कोरोना की दूसरी लहर में लोगों ने ऑक्सीजन के महत्व को काफी करीब से जाना था, लेकिन शायद एक बार फिर लोग पुराने ढर्रे पर लौट रहे हैं. 

विकास के नाम पर सैकड़ों पेड़ों की कटाई

Sardarpura: आधुनिकता की चकाचौंध में आज लोग पर्यावरण को जमकर नुकसान पहुंचा रहे हैं. हाल ही में कोरोना की दूसरी लहर में लोगों ने ऑक्सीजन के महत्व को काफी करीब से जाना था, लेकिन शायद एक बार फिर लोग पुराने ढर्रे पर लौट रहे हैं. इन सभी से दूर एक ऐसा पर्यावरण प्रेमी है, जिसने पत्थरों को उपजाऊ बनाते हुए पूरी पहाड़ी इलाके को हरा-भरा बना दिया है.  पर्यावरणविद की वेदना यह है कि शहरों का भले ही विकास हो लेकिन पर्यावरण का नुकसान नहीं होना चाहिए. इस शख्स ने पत्थरों पर ही पेड़ लगाकर दुनिया को बता दिया कि कोई भी चीज असंभव नहीं है. अगर आप ठान लेते हैं तो पत्थर पर भी पेड़ पौधे लगा सकते हैं. 

जोधपुर के मेहरानगढ़ किले की पास की पहाड़ी पर पिछले 30 साल से लगातार मेहनत कर पर्यावरणविद प्रसन्न पुरी गोस्वामी ने पेड़ पौधों को पनपाया. लेकिन अब यही पेड़ पौधे विकास की भेंट चढ़ने जा रहे हैं. जिसको लेकर पर्यावरणविद प्रसन्न पुरी गोस्वामी की आंखों की नींद उड़ गई है. पर्यावरणविद प्रसन्न पुरी की आंखों में आंसू आ गए और वह बार-बार एक ही मिन्नत करते आए कि किसी भी तरह विकास के नाम पर इन पेड़ों की बलि नहीं चढ़ाई जाए. ऐसा नहीं है कि वह इसे बचाने के लिए प्रयास नहीं कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने तमाम विभागों को पत्र लिखे हैं, लेकिन अभी तक उनके किसी भी पत्र का जवाब नहीं मिल पाया है. प्रसन्न पुरी गोस्वामी बताते हैं कि उन्होंने पर्यावरण को बचाने के चक्कर में अपने पुत्र को भी खो दिया था, लेकिन वह आज भी पर्यावरण को जिंदा रखने के लिए कार्य कर रहे हैं. 

दरअसल पेशे से शिक्षक पर्यावरणविद प्रसन्न पुरी गोस्वामी का पुत्र 30 साल पहले पेड़-पौधों को दवाई देते वक्त रिएक्शन होने से उसकी मृत्यु हो गई थी. लेकिन अपने पुत्र का पर्यावरण के प्रति मोह को देखते हुए प्रसन्न पुरी ने भी पेड़ों को अपना पुत्र समझ कर लगातार मेहरानगढ़ की तलहटी में सघन वृक्षारोपण कर एक अलग ही वातावरण बना दिया. जहां सैकड़ों की संख्या में अलग-अलग प्रजाति के पशु-पक्षी आते हैं, वही हरियाली से पूरी पहाड़ी अलग ही नजर आती है. उनके इस भागीरथ प्रयास से इस पूरे इलाके में एक ऑक्सीजन जोन बना है और यहां रोज सुबह करीब 500 से 700 लोग मॉर्निंग वॉक करने और योगा करने आते हैं, लेकिन अब जोधपुर विकास प्राधिकरण ने मेहरानगढ़ दुर्ग पर आने वाले सैलानियों के लिए एक नया मार्ग बालसमंद से मेहरानगढ़ तक का चुना है. जिसके रास्ते में पर्यावरणविद प्रसन्न पूरी के लगाए गए करीब डेढ़ सौ से ज्यादा पेड़ पौधे समाप्त हो रहे हैं. 

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वही इस नई सड़क बनने से एक्सीडेंट जोन भी बनता जा रहा है. उन्होंने प्रशासन और प्रभारी मंत्री को सुझाव भी दिया है कि करीब डेढ़ सौ फीट दूरी से अगर वैकल्पिक मार्ग निकलता है तो पर्यावरण तो बचेगा ही वही संभावित दुर्घटनाओं में भी कमी आएगी, नहीं तो इस नए मार्ग पर बहुत ज्यादा दुर्घटनाएं होगी. अपनी इस चिंता को लेकर उन्होंने प्रशासन और प्रभारी मंत्री तक को पत्र लिखा, लेकिन कोई भी आश्वासन उन्हें नहीं मिला. प्रसन्न पुरी गोस्वामी ने बताया कि अगर सरकार उनकी बात पर ध्यान नहीं देती है तो,  आने वाले दिनों में उन्हें जो राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय स्तर के जो पुरस्कार मिले हैं वह सरकार को लौटा देंगे. इसके अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है. 

पर्यावरणविद प्रसन्न पुरी गोस्वामी बताते हैं कि सघन वृक्षारोपण में 10 आईएएस और कई संभागीय आयुक्तों ने इस पहाड़ी पर वृक्षारोपण किया था. जो मेहरानगढ़ के आसपास के इलाके में ऑक्सीजन जोन बने हुए हैं और ऐसे में प्रशासन की हठधर्मिता के चलते यहां पर सड़क निकालने के नाम पर पौधों और पेड़ों की बलि चढ़ाई जा रही है. वहीं इस पूरे मामले पर जोधपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी के अधिकारियों से संपर्क करने का प्रयास किया तो वे मीडिया से बचते नजर आए. दरअसल मुख्यमंत्री की बजट घोषणाओं के अनुरूप कार्य नहीं होने की वजह से पूर्व में जिला कलेक्टर को हटाया गया था. उसके बाद नए कलेक्टर ने अपनी तरफ से प्रयास तो किया लेकिन अभी भी मातहत है. जो उस गति से शहर का विकास नहीं कर रहे जिस गति की अपेक्षा मुख्यमंत्री करते हैं. 

मुख्यमंत्री के गृह नगर में प्रशासन की उदासीनता के चलते विकास के नाम पर फिर एक बार ऐसी इंजीनियरिंग होने जा रही है. जिससे विकास के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा. वही दुर्घटनाओं में भी बढ़ोतरी होगी. ऐसे में प्रशासन को चाहिए कि वह एक बार दोबारा इस्तेमाल कर सर्वे कर नया नक्शा बनाकर सड़क निकालें ताकि लोगों को भी राहत मिले और पर्यावरण की भी रक्षा हो सके. 

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