Lord Shiva : चातुर्मास जारी है और भगवान विष्णु योग निद्रा में हैं. चातुर्मास के समय पूरी दुनिया को भोलेनाथ संभाल रहे हैं. हिंदू धर्म में इस समय को भगवान शिव शंकर की पूजा के लिए सबसे ज्यादा शुभ कहा गया है. मान्यता है इस समय की गयी प्रार्थना प्रभु पूरी करते हैं. माना जाता है कि सावन में भोलेनाथ अफने ससुराल हरिद्वार के कनखल जाते हैं और दक्षेश्वर महादेव कहलाते हैं. फिर यहीं से शिव शंकर पूरी दुनिया का संचालन करते हैं.
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Lord Shiva : चातुर्मास जारी है और भगवान विष्णु योग निद्रा में हैं. चातुर्मास के समय पूरी दुनिया को भोलेनाथ संभाल रहे हैं. हिंदू धर्म में इस समय को भगवान शिव शंकर की पूजा के लिए सबसे ज्यादा शुभ कहा गया है. मान्यता है इस समय की गयी प्रार्थना प्रभु पूरी करते हैं. माना जाता है कि सावन में भोलेनाथ अफने ससुराल हरिद्वार के कनखल जाते हैं और दक्षेश्वर महादेव कहलाते हैं. फिर यहीं से शिव शंकर पूरी दुनिया का संचालन करते हैं.
पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता सती ने शिवजी को पाने के लिए कठोर तपस्या की. आखिरकार उनकी मनोकामना पूरी हुई . ब्रह्माजी के मानस पुत्र राजा दक्ष प्रजापति ने बेटी सती के कहने पर उनका विवाह शिवजी के साथ कर तो दिया लेकिन वो भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे.
कहते हैं कि शिव - सती के विवाह के बाद राजा दक्ष एक सभा में गए थे. उनके पहुंचते ही सभी देव सम्मान में खड़े हो गए. हालांकि भोलेनाथ अपने आसन पर भी बैठे रहे. इसी बात से राजा दक्ष और भी ज्यादा नाराज हो चुके थे.
एक बार दक्ष ने कनखल में महायज्ञ करवाया और शिवजी के अलावा सभी देवताओं को न्योता दिया. जब सभी देवता यज्ञ में जा रहे थे तो माता सती ने शिव जी से पूछा, शिवजी ने बताया की महाराज दक्ष के निमंत्रण पर सभी जा रहे हैं लेकिन न्योता हमें नहीं मिला है.
भगवान शिव के मना करने के बाद भी माता सती यज्ञ में पहुंच गयी और सोचा ही महाराजा दक्ष अब भोलेनाथ को भी आमंत्रित करेंगे. लेकिन हुआ इसका उलट.
महाराजा दक्ष ने माता सती के सामने बार बार भगवान शंकर का अपमान किया जिसे बेहद क्रोधित माता सती यज्ञ की अग्नि में कूद गयीं, जैसे ही इसकी जानकारी शिवजी को हुई तो हाहाकार मच गया.
भगवान शिव के गण वीरभद्र ने यज्ञ को समाप्त करा दिया और शिवगणों ने दक्ष का सिर काट दिया. इधर भगवान शिव माता सती की देह को लेकर पूरे ब्रह्मांड में तांडव करने लगे.
भगवना विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती जी की देह के टुकड़े कर दिया जहां ये अंग गिरे वहां शक्तिपीठ स्थापित हैं. जब शिव जी का गुस्सा शांत हुआ तब यज्ञ को पूरा करने का उपाय तलाशा गया.
भोलेनाथ ने एक बकरे का सिर राजा दक्ष को देकर उन्हे पुर्नजीवित कर दिया. राजा दक्ष को अपनी गलती का भान हुआ और उन्होनें भोलेनाथ से क्षमा मांगी.
जिसपर भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर महाराजा दक्ष को वरदान दिया कि श्रावण मास में वो कनखल के दक्षेश्वर नाम से विराजमान होंगे और भक्तों की कामना को पूरा करेंगे. तभी से कनखल के दक्षघाट पर दक्षेश्वर महादेव का जलाभिषेक करने की परंपरा हैं.