Janmashtami 2024: करौली नगरी मदन मोहन जी के नाम से प्रसिद्ध है. मंदिर में प्रतिदिन सैकड़ो श्रद्धालु दर्शन करते हैं और भगवान से खुशहाली और समृद्धि की कामना करते हैं.
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Janmashtami 2024: करौली नगरी मदन मोहनजी मंदिर स्थल के नाम से प्रसिद्ध है. मदन मोहनजी मंदिर में प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और अपने आराध्य के दर्शन कर खुशहाली और समृद्धि की मनौती मांगते हैं. मदन मोहन जी में तीज त्योहार पर और जन्माष्मी पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. मदन मोहनजी वर्ष में दो बार सामनी तीज और धूलंडी के मौके पर चांदी के झूले में विराजित होते हैं. झूले के दर्शनों के लिए करौली सहित दूर दराज के क्षेत्रों से श्रद्धालु मदन मोहनजी मंदिर पहुंचते हैं और अपने आराध्य के दर्शन करते हैं.
ये मंदिर भी हैं खास
मदन मोहन जी के साथ ही जयपुर के गोविंद देव जी और गोपीनाथ जी की भी महिमा अपार है. कहते हैं कि एक ही दिन में तीनों विग्रहों के दर्शन करने से संपूर्ण दर्शन प्राप्त होते हैं. मदन मोहन जी के चरणों , गोविंद देव जी के मुख और गोपीनाथ जी के वक्ष के दर्शन करने से संपूर्ण कृष्ण भगवान के दर्शन होते हैं. करौली के मदन मोहन जी की भी महिमा अपरंपार है और इनका यहां पर आने का इतिहास लंबा है.
मुगल बादशाह औरंगजेब से जुड़ा है इतिहास
मान्यता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब की धार्मिक असहिष्णुता तथा हिंदू विरोधी कट्टर नीति के कारण 1669 ई में एक सर्वव्यापी आज्ञा द्वारा अधिकतर मंदिर ध्वस्त करने एवं धार्मिक मेलों को बंद करने का आदेश दिया गया था. इस दौरान कृष्ण भक्त आचार्यो ने मूर्तियों को बचाने का आयोजन किया गया था. 1718 ईस्वी में जयपुर नरेश सवाई जय सिंह द्वितीय ने गोस्वामी सुबल दास से मिलकर गोविंद देव जी गोपीनाथ जी एवं मदन मोहनजी को जयपुर ले जाने की इच्छा व्यक्त की.
ऐसी है कहानी...
तीनों विग्रहों को वृंदावन से जयपुर ले जाने के लिए मुगल सम्राट के फरमान आगरा एवं अजमेर सूबों को भिजवाए गए इसके बाद राजसी ठाठ बाठ के साथ 1723 ईस्वी में जयपुर तीनों ग्रहों को लाया गया तथा मूर्तियों को जयपुर के रूप बाग में स्थापित किया गया. नरेश सवाई जयसिंह ने जयपुर की सीमा पर तीनों ग्रहों का स्वागत किया. करौली नरेश गोपाल सिंह की बहन राज कंबर जयपुर नरेश सवाई जय सिंह को ब्याही थी. कृष्ण भक्त गोपाल सिंह जी ने जयपुर नरेश को मदन मोहन जी करौली भिजवाने का आग्रह किया. इसके बाद फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी विक्रम संवत 1799 तदनुसार 1742 ई को मदन मोहनजी की पालकी को सवाई जयसिंह ने पूजा अर्चना की बाद करौली के लिए रवाना किया.
इसके बाद करौली एवं जयपुर रियासत की सीमा पर स्थित श्यारोली गांव ठाकुर जी की सेवा के लिए भेंट किया. करौली पहुंचने से पहले मदन मोहन जी के विग्रह को अंजनी माता के पास दो दिन एवं दीवान के बाग के बंगले में भी दो दिन रखकर वैशाख शुक्ल 13 विक्रम संवत 1800 तद्नुसार 1743 ई को रावल के अमानिया भंडार में गोपाल जी के मंदिर में विराजित किया गया. 5 वर्ष में नवीन मंदिर स्थापित होने पर मदन मोहन जी की प्रतिष्ठा इस मंदिर में कराई गई.
ये भगवान है विराजित
मदन मोहनजी मंदिर के तीन गर्भ ग्रहण में से प्रथम में गोपाल जी , द्वितीय में मदन मोहनजी एवं तृतीय में राधा रानी ललिता सखी विराजी है. मदन मोहन जी , गोविंद देव जी और गोपीनाथ जी के विग्रहों का एक दिन में दर्शन करने से संपूर्ण कृष्ण के दर्शन होते हैं. ऐसी मान्यता है, जिसके चलते करौली के लोग मदन मोहन जी के दर्शन कर गोविंद देव जी और गोपीनाथ जी के दर्शन के लिए जयपुर जाते हैं. साथ ही जयपुर के लोग गोविंद देव जी और गोपीनाथ जी के दर्शन करने के बाद करौली में मदन मोहन जी दर्शनों के लिए पहुंचते हैं.
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