Navratri 2022 Kota: कोटा शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर उम्मेदगंज के जंगल में स्थित दाढ़देवी का यह मंदिर कोटा के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है और इनकी गाथा,आस्था और मान्यताएं के चर्चे दूर-दूर व सुदूर अंचल तक है.
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Navratri 2022 Kota: नवरात्रा के पवित्र दिनो में कोटा ही नहीं बल्कि हाड़ौती के लोगों की आस्था और मन हृदय में बसने वाली दाढ़ देवी माता के मंदिर में इन दिनों आस्था का ज्वार उमड़ने लगा है. नवरात्रि के एकम से नवमी तक यहां न केवल मेला लगता है बल्कि पूजा,अर्चना, जागरण और भंडारे का विशेष आयोजन होता है. सैकड़ों साल पुराने इस प्राचीन और रियासतकालीन मंदिर की आस्था हमेशा से ही लोगों के दिलों में गहरी होती रही है.
जानिए क्यों माता का नाम डाढ़ देवी पड़ा
डाढ़ देवी वास्तव में रक्त दंतिका देवी है, क्योंकि देवी की डाढ़ बाहर निकली हुई है. इस कारण लोगों ने देवी का नाम डाढ़ देवी कर दिया और मंदिर इसी नाम से विख्यात हो गया. मंदिर उत्तरामुखी है और इसके सामने कुण्ड है. मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रमुख केन्द्र है.
नवरात्र में यहां मेला लगता है. रसोई और गोठ बाटियों के आयोजन होते रहते हैं. डाढ़ देवी कैथून के तंवर क्षत्रियों की इष्ठ थी. रियासतकाल में नवरात्र दशहरा के समय कोटा के महाराव देवी के पूजन के लिए लवाजमें के साथ जाते थे. पूजन के समय तोप दागी जाती थी. कुछ बदलाव के साथ कुछ परम्पराएं अब भी निभाई जाती है. आज भी पूर्व राजपरिवार के सदस्य नवरात्र में दाढ़ देवी के दर्शन और पूजन को जाते हैं. वर्तमान में मंदिर की व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी देवस्थान विभाग के पास है.
कोटा शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर उम्मेदगंज के जंगल में स्थित दाढ़देवी का यह मंदिर कोटा के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है और इनकी गाथा,आस्था और मान्यताएं के चर्चे दूर-दूर व सुदूर अंचल तक है.
डाढ़ देवी मंदिर का निर्माण 10 वीं शताब्दी में किया गया
इस डाढ़ देवी मंदिर का निर्माण 10 वीं शताब्दी में किया गया था. बताया जाता है कि कैथून के तंवर राजपूतों ने अपनी कुल देवी के रूप में स्थापित किया था, लेकिन बूंदी दरबार ने बाद में इस मंदिर को कोटा महाराजा को सौंप दिया था. डाढ़ देवी का मंदिर कोटा में न केवल आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है, बल्कि पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों के घूमने लिए कोटा का एक लोकप्रिय स्थल भी माना जाता है. यहां कोटा- बूंदी ही नहीं बल्कि हाडौती और राजस्थान सहित एमपी तक की लोग देखने और दर्शन करने के लिए आते है.
फसलों को नष्ट होने से बचाता है कुंड का पानी
प्रकृति की गोद में स्थित खूबसूरत डाढ़ देवी का मंदिर एक वर्गाकार मंच पर आधारित है,जिसमें छत को सहारा देने वाले एक दर्जन खंभे लगे हुए हैं. प्रत्येक स्तंभ शेर और फूलों के पैटर्न की नक्काशी से सुशोभित है. मंदिर का गुंबद गोल आकार का है जिसके शीर्ष पर कमल का फूल है और मंदिर के सामने एक पवित्र जल कुंड जो आंतरिक मंदिर के नीचे से आने वाले पानी से भरा है.
चौकोर आकार के अभयारण्य सनातनम में शेर पर बैठा दस-सशस्त्र और तीन आंखों वाली देवी की पत्थर की मूर्ति है. प्रत्येक हाथ में एक हथियार है. मंदिर परिसर में शिव मंदिर, काल भैरव मंदिर, एक हवन कुंड और एक बगीचा भी है. वैसे तो मंदिर की कई विशेषताएं और मान्यताएं हैं लेकिन मान्यता है कि मंदिर के बीचो बीच स्थित प्राचीन रियासतकालीन कुंड का पानी भूमिपुत्रों के लिए वरदान साबित हो रहा है. कहा जाता है कि खेतों में फसलों को बचाने के लिए भूमिपुत्र इस कुंड का पानी ले जाते हैं और चारों कौनो में छिड़काव कर देते है जिसके बाद फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े मकोड़े और जीव जंतुओ के मुंह में दाढ़ बंध जाती है और फसलें तबाह होने से बच जाती है.
बहुत ही प्राचीन और रियासतकालीन है मन्दिर
डाढ़ देवी मंदिर का इतिहास लगभग 10 वीं शताब्दी पुराना माना जाता है. कहा जाता है कि किसी जमाने में यहां शेर और चीते विचरण करते थे और माता की मूर्ति में दाढ़ निकली हुई थी. माना जाता है की एक समय कोटा के महाराजा ने मुख्य मंदिर के पास एक और मंदिर का निर्माण किया और वह माता की इस मूर्ति को नए मंदिर में शिफ्ट करना चाहते थे लेकिन माता महाराजा के सपने में आई और कहा कि मेरी मूर्ति को इधर उधर नहीं करना मैं यही रहना चाहती हूं. तब से यह मंदिर रियासत कालीन के साथ साथ इसी जगह स्थित है. उसके बाद नये मन्दिर में दरारे पड़ने लगी थी और तमाम प्रयासों के बावजूद मूर्ति को अपनी जगह से हिलाया नहीं जा सका.
नवरात्र के मेले में होता है विशेष आयोजन
नवरात्रा के पवित्र दिनों में यहां न केवल मेले का आयोजन होता है बल्कि 9 दिनों तक विशेष पूजा-अर्चना के साथ जागरण और भंडारा होता है और प्रसादी का वितरण किया जाता है इस मंदिर में मंदिर में मंत्री, विधायक और पूर्व मंत्री ही नहीं बल्कि कई पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की बड़ी आस्था है. आस्था इस कदर है कि सुदूर अंचल के लोग दुर्गम और क्षतिग्रस्त रास्तों के बावजूद सुनसान इलाके में स्थित इस मंदिर में अपनी पीड़ा लेकर पहुंचते है और मं के दरबार मे माथा टेकते है. मां दाढ़देवी भी आने वाले हर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर उनके कष्ट हरण करती है.