नागौर के एक लड़के ने बदल दी किसानों की किस्मत, राष्ट्रपति ने भी किया सम्मान, अब सेना कर ही उपयोग
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नागौर के एक लड़के ने बदल दी किसानों की किस्मत, राष्ट्रपति ने भी किया सम्मान, अब सेना कर ही उपयोग

नागौर जिले के मकराना उपखण्ड का एक छोटा सा गांव नुन्दड़ा, जहां आमजन खेती बाड़ी से ही अपनी आजीविका चलाते हैं.

नागौर के एक लड़के ने बदल दी किसानों की किस्मत, राष्ट्रपति ने भी किया सम्मान, अब सेना कर ही उपयोग

नागौर जिले के मकराना उपखण्ड का एक छोटा सा गांव नुन्दड़ा, जहां आमजन खेती बाड़ी से ही अपनी आजीविका चलाते हैं. यहां के एक सामान्य किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले गणेश बचपन में कभी कभार स्कुल के बाद अपने परिजनों का हाथ बटाने के लिए खेत भी जाते थे, लेकिन खेत में काम करने के दौरान झुककर काम करने की वजह से शाम के वक्त कमर दर्द से परेशान हो जाते थे. यह समस्या खेतो में काम करने वाले हर आम किसान की रहती है लेकिन यह कमर दर्द जैसे एक आम किसान के जीवन का हिस्सा बन गया है वैसे ही गणेश के साथ भी था.

बचपन में ही कर दिया था इनोवेशन 

गणेश बचपन से ही काफ़ी मेहनती और नये-नये प्रयोग करने में माहिर थे जब वो 12 वीं छात्र थे तो उनके दिमाग में इस कमर दर्द से बचाव के लिए एक आईडिया आया और उन्होंने घर में ही पड़े कबाड़ और लकड़ियों से एक ऐसा इंस्ट्रूमेंट बनाया जिसको पहन कर काम करने से काम करते वक्त कमर दर्द की शिकायत कम हो गई. उस वक्त उन्होंने नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन को एक पत्र लिखा और अपने अविष्कार के बारे में जानकारी दी और आर्थिक सहायता के लिए इच्छा जाहिर की, तो फाउंडेशन की तरफ से उनको इस अविष्कार पर आने वाले खर्च के बारे में जानकारी मांगी तो उन्होंने 3000 रुपये खर्चा बताया. जिसपर फाउंडेशन की तरफ से उनको इस राशि का मनी आर्डर उनको भेज दिया गया.

इसके बाद उन्होंने इस राशि से इस यन्त्र का एक प्रोटोटाइप बनाया और यही से शुरुआत हुई, उनके जयपुर बेल्ट के इनोवेशन की. लेकिन बाद में कम उम्र में वो ज्यादा कुछ नहीं कर पाए और परिजनों ने उनकी लग्न को देखते हुए उनका दाखिला इंजीनियर कॉलेज में करवा दिया. जहां से उन्होंने आईटी में इंजिनियरिंग की. जिसके बाद उन्होंने TCS पूना में 3 साल काम भी किया, लेकिन गणेश का लक्ष्य कुछ और ही था. जिसकी वजह से उन्होंने 3 साल बाद अपनी जॉब से रिजाइन कर दिया और फिर से अपने पुराने INNOVATION में लग गए.

IIT DELHI से की फेलोशिप

अपने प्रोजेक्ट को लेकर इन्होने IIT DELHI, IIT मुंबई और IISE बैंगलोर से KVPY फेलोशिप की जिसके बाद उनको सरकार की तरफ से 8000 प्रतिमाह अपने इन्नोवाशन के लिए मिलने शुरू हो गए. इनके इनोवेशन के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलम ने उनको सम्मानित भी किया. अपने इनोवेशन को आम जन तक पहुंचाने के लिए इन्होंने INDO US साइंस टेक्नोलॉजी फोरम के जरिए अमरीका बेस्ड कम्पनी से कलोबोरेशन किया और टॉप 10 इन्नोवाशन में सेलेक्ट हुए जिसके बाद US कम्पनी की सहायता से इन्होने अपनी कम्पनी बनाई जिसका नाम भी अपने गांव के नाम से NEWENDRA इन्नोवाशन रखा और अपने काम की शुरुआत की. आज जयपुर बेल्ट के विभिन्न देशों में 11 से ज्यादा पेटेंट हैं.

क्या है जयपुर बेल्ट

जयपुर बेल्ट एक ऐसा बैक सपोर्टिंव बेल्ट है जिसको पहन कर काम करने पर झुककर काम करने वाले लोगों की कमर पर दबाव नहीं पड़ता. जिससे झुककर काम करने की वजह से होने वाले कमर दर्द से छुटकारा मिल जाता है. यह सबसे ज्यादा किसानों के लिए मददगार साबित हो रहा हैं लेकिन इस के महत्व को देखते हुए अब इस भारतीय डाक विभाग के साथ-साथ हैवी इंडस्ट्रीज में भी काम में लिया जा रहा है. गौरव की बात यह है कि भारतीय सेना में भी इसके उपयोग कि स्वीकृति दी गई है. जिससे सेनिकों को युद्ध क्षेत्र सहित अन्य स्थानों पर भारी भरकम गोला बारूद की हेंडलिंग में यह सहायक सिद्ध हो रहा है.

कमर दर्द की वजह से होने वाली स्लिप डिस्क जैसी घातक बीमारियों से बचाव में जयपुर बेल्ट काफी कारगर सिद्ध हो रहा है जिसकी वजह से कमगरों को ऑपरेशन में लगने वाले लाखों रुपये के खर्चे से भी बचाव हो रहा है. हालांकि वेश्विक बाजार में इस जैसे कुछ अन्य उपकरण उपलब्ध हैं लेकिन उनकी कीमत के सामने जयपुर बेल्ट की कीमत बहुत कम है. जिसकी वजह से इसकी लोकप्रियता भी बढ़ रही है. खासकर स्थानीय किसान इसे सबसे ज्यादा पसंद कर रहे हैँ जिनको बहुत ही कम कीमत में कमर दर्द से निजात मिल रही है.

4 राष्ट्रीय पुरस्कार
इस इनोवेशन को अब तक चार राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चूका है जिनमे राष्ट्रीय तकनिकी पुरस्कार, आईटी एंड टेक्नोलॉजी द्वारा पेटेंट के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार और CII द्वारा टॉप TEN इनोवेशन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा चूका है.

Reporter- Hanuman Tanwar

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