नागौर जिले के लाडनूं नगर में दर्जन भर संख्या से अधिक ऐतिहासिक महत्व व प्राचीन परम्पराओं से जुड़े विभिन्न जल स्रोत स्थापित है जो न केवल पर्यावरण संरक्षण बल्कि जीवो के जीवन रक्षक अमृत रूपी वर्षा जल के संग्रहण हेतु भी वर्षो तक काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे है
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Ladnun: नागौर जिले के लाडनूं नगर में दर्जन भर संख्या से अधिक ऐतिहासिक महत्व व प्राचीन परम्पराओं से जुड़े विभिन्न जल स्रोत स्थापित है जो न केवल पर्यावरण संरक्षण बल्कि जीवो के जीवन रक्षक अमृत रूपी वर्षा जल के संग्रहण हेतु भी वर्षो तक काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे है, किन्तु अफसोस इस बात का है कि आधुनिक जीवनशैली में नगर में ट्यूबवेलों की संख्या तो भूजल स्तर गिरने के बावजूद भी दिनों दिन बढ़ती रही किन्तु इन अमृत पात्रों की किसी ने सुध नहीं ली और यह मात्र कचरा पात्र बनकर रह गए.
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जल संकट के इस भयावह दौर में नागौर व लाडनूं भी गम्भीर स्थिति से अछूते नहीं रहे है सरकार द्वारा जल स्वालंबन के नाम पर रुपये पानी की तरह बहाए जा रहे है. पानी संग्रहण को लेकर प्रशासन से लेकर आमजन तक की यहां अनदेखी नजर आती है, इसी कारण इतने मजबूत व उपयोगी कलात्मक कुओं, पारम्परिक तालाबों व ऐतिहासिक बावड़ी को उपयोगहीन बना दिया है. स्थानीय क्षेत्रों के लोगों को तृप्त करने वाले यह जल स्रोत आज पानी संग्रहण करने योग्य नहीं रहे है.यहां चांद सागर, इंद्र सागर, केसरीसागर, ओसवाल सागर जैसे प्रसिद्ध कुवे थे और लाडनूँ की गंगवाल परिवार की जलदाय योजना छापर बीदासर तक जलापूर्ति करती थी.
ओसवाल सागर
यह निम्बी चौराहे के पास स्थित है लाल पत्थर से कलात्मक रूप से निर्मित इस कुवे के लिए ओसवाल कुवा कमेटी भी बनी हुई है. इसके पानी का उपयोग आस पास के लोग लम्बे समय तक करते रहे, इसमें बड़े कुवे के साथ छोटे-छोटे कुंडिया भी बनी हुई है. किंतु वर्तमान में अनुपयोगी होने से काफी मात्रा में कचरा भरा पड़ा है. पालिका प्रशासन की पूरी टीम इच्छा शक्ति के साथ यदि इसकी साफ सफाई कर सार संभाल करने का प्रयत्न करें तो इनमें आज भी जल को सुरक्षित रूप से संग्रह कर किसी भी उद्देश्य से उपयोग में लाया जा सकता है.
राहुकुवा
यह नगर के बस स्टैंड पर स्थित प्रमुख कुवा है जिस पर भव्य गणगौर की सवारी भी आती है यह ऐतिहासिक महत्व का कुवा है साथ ही नगर के मुख्य स्थान पर स्थित है. जल संग्रहण के अभाव में अनुपयोगी होने के चलते अब सुरक्षा की दृष्टि से इसे बड़ा ढक्कन लगाकर ढक दिया गया है.
प्राचीन बावड़ी
नगर में एक बड़ी बावड़ी भी कब्रिस्तान परिसर के अंदर स्थित है जिसको लेकर जनमानस में काफी कहानियां भी प्रचलित है किंतु अब यह लगभग मिट्टी व झाड़ियों से बुरी जा चुकी है इसके निकट ही एक कुआ भी स्थित था जिसमे बावड़ी की खिड़की से पानी एकत्रित होता था। लेकिन समय के साथ यह काल मे समा गई व अब तो इसका उद्धार असंभव तो नही लेकिन बेहद मुश्किल कार्य प्रतीत होता है।
इन्द्रसागर कुआ
स्टेशन रोड स्थित संगमरमर से निर्मित इन्द्रसागर कुआ जिसे इन्द्रचंद बेंगाणी ने बनवाया था इसकी सुंदरता आज भी नगर के वैभव में चार चांद लगाती है किंतु रखरखाव के अभाव में यह अनुपयोगी साबित हो रहे इसके बारे में एक कहावत जन मानस में काफी प्रचलित थी "इन्द्रसागर का एक घड़ा झक मरावे सोने का कड़ा" यह वर्तमान में भी बिल्कुल साफ सुथरा है. जरूरत है तो बस इतनी की प्रशासन या कोई भी समाजसेवी संस्था आगे आकर पुनः बरसात में इन्हें जीवित करने का प्रयास करें.
राव सागर
ग्राम मंगलपुरा स्थित कच्ची बस्ती के समीप यह तालाब अतिक्रमण का शिकार हो चुका है किसी समय यहा नगर की रेवाडियां निकाली जाती थी किन्तु बढ़ती आबादी ने इसकी पाल तक तोड़ दी और किसी सक्षम ने इस पर कार्रवाई की हिम्मत नहीं दिखाई. इस प्रकार जल के यह पारंपरिक संग्रह स्थल अपना अस्तित्व खो चुके है.
माजीसा का तालाब
हरिराम बाबा के मंदिर के पास स्थित इस तालाब को आवासीय कॉलोनी के गन्दे पानी ने नाले में तब्दील कर दिया, इसे जल स्वालंबन योजना में भी शामिल करने की चर्चा जोरों पे रही पर हालात जस के तस बने रहे. बार-बार नगरपालिका ने इसके सौन्दर्यकरण को लेकर भी प्रयास करने की बात कही लेकिन वर्तमान में धरातल पर किए गए प्रयास शून्य नजर आ रहे है.
जल संकट के इस भयानक दौर में भी आमजन की जल संरक्षण को लेकर अनदेखी एक बड़ी लापरवाही है, जिसका अंजाम कल्पनातीत हो सकता है. पानी संग्रहण हर घर हेतु आवश्यक है किंतु यहा हल्की बारिश में ही सड़कों को नदिया बनते देखा जा सकता है. वहीं बाद में जरूरत के समय बिना पानी के लंबी कतारें लगाते हुए देख सकते है.
विधायक मुकेश भाकर ने बताया राज्य सरकार ने अपने बजट में लाडनूं क्षेत्र की ढाणियों व गांवों तक जल व्यवस्था सुदृढ करने हेतु 16 करोड़ रुपये स्वीकृत किये है. गौरतलब है कि पूर्व विधायक मनोहर सिंह के कार्यकाल में नहर का मीठा पानी आने से भी आमजन को काफी राहत मिली है किंतु सार्थकता तभी है जब जल के संरक्षण हेतु योजनाबद्ध रूप से प्रयास किया जाए.
Report- Damodar Inaniya