Rajastahn Congress : कांग्रेस में कुछ बोलने पर तलवार से गर्दन नहीं काटी जाती। सचिन पायलट मामले पर सह प्रदेश प्रभारी अमृता धवन का बयान। घर में बच्चे की राय भी कुछ अलग हो तो उसे भी सुना जाता है।
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Rajastahn Congress : चुनावी साल में कांग्रेस पार्टी का संगठन राजस्थान के नेताओं में तालमेल को लेकर पूरी तरह आशान्वित दिख रहा है. जयपुर आए सह-प्रभारियों का कहना है कि संगठन सबको साथ लेकर चलेगा. सचिन पायलट के सवाल पर सह-प्रभारी अमृता धवन ने साफ कहा कि कांग्रेस में बोलने पर तलवार से गर्दन काटने की परिपाटी नहीं है. धवन ने कहा कि परिवार में आपसी बातचीत से सब समाधान हो जाएगा. तो वहीं सह-प्रभारी वीरेन्द्र सिंह राठौड़ कहते हैं कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों ही बलशाली नेता हैं. राठौड़ कहते हैं कि इनके अनुभव और नौजवान ऊर्जा के संगम का ज़िम्मा अब संगठन पर है. ऐसे में प्रभारी की भाषा से लग रहा है कि कांग्रेस का संगठन आशान्वित तो है, लेकिन उसके लिए पहल कौन करेगा?
कांग्रेस के संगठन और एआईसीसी के प्रतिनिधियों को राजस्थान के नेताओं में तालमेल की पूरी उम्मीद है. संगठन की भाषा से तालमेल की यह आशा साफ झलक रही है. अपनी नियुक्ति के बाद जयपुर की धरती पर पहली बार आए सह प्रभारी वीरेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों को ही पार्टी साथ लेकर पार्टी चलेगी. राठौड़ कहते हैं कि पायलट और गहलोत दोनों बलशाली नेता हैं. एक के पास बड़ा अनुभव है तो दूसरे के पास नौजवान ऊर्जा है. ऐसे में इसका संगम कराना संगठन का काम है.
वहीं संगठन में बयानबाजी के सवाल पर सह प्रभारी अमृता धवन ने कहा कि परिवार के मामले को आपसी बातचीत से सुलझा लेंगे. धवन ने तो यहां तक कह दिया कि कांग्रेस में कुछ भी बोलने पर सीधे तलवार से गर्दन काटने की परिपाटी नहीं है. वे कहती हैं कि डिफरेंस ऑफ ओपिनियन तो किसी भी परिवार में भी हो सकती है और लोकतन्त्र में इसकी गुंजाइश है.
धवन ने कहा कि परिवार में कोई बच्चा भी अगर कुछ कहता है, तो उसे कहने का अधिकार है. उसे सुना जाता है. सह-प्रभारी ने कहा कि कांग्रेस का परिवार मिल बैठकर इन मसलों को सुलझा लेगा. उन्होंने कहा कि यहां पार्टी प्लेटफॉर्म पर कोई कुछ भी कह सकता है और सबको सुना भी जाता है.
चुनावी साल में राजस्थान कांग्रेस को मिले तीन सह-प्रभारियों में से दो ने तो संगठन को सर्वोपरि बताते हुए अपनी आमद दर्ज करा दी है. तालमेल को लेकर सब सुलझा लेने की बात भी की जा रही है. लेकिन सवाल यह उठता हैं? कि क्या इन नेताओं के लिए यह सब बोलने जितना ही आसान होगा? सवाल यह भी कि क्या कोई भी सह-प्रभारी कांग्रेस के इन कद्दावर नेताओं को एक टेबल पर ला सकेगा? और सवाल यह भी कि जो काम अभी तक प्रभारी नहीं कर पाए उसे लेकर सह-प्रभारियों की उम्मीदों को पंख किस फेविकॉल से जोड़े हुए हैं?
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