Rajasthan: 2023 में टूटेगा 2018 का रिकॉर्ड! दागी और बागी फिर चुनावी मैदान में उतरने को तैयार
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Rajasthan: 2023 में टूटेगा 2018 का रिकॉर्ड! दागी और बागी फिर चुनावी मैदान में उतरने को तैयार

Rajasthan Election 2023: दागी और बागी भी ठोकते हैं चुनावी ताल, हर बार बढ़ रही है संख्या, क्या पिछला रिकॉर्ड टूटेगा

 

Rajasthan: 2023 में टूटेगा 2018 का रिकॉर्ड! दागी और बागी फिर चुनावी मैदान में उतरने को तैयार

Rajasthan Election 2023: राजस्थान में भी दागी और बागी दोनाें ही चुनावी मैदान में ताल ठोकते आ रहे हैं. सत्ता के इस महासंग्राम में दागी और बागी दोनों ही की भरमार रहती है. पिछले विधानसभा चुनाव को देखें तो 23 प्रतिशत विधायकों पर अपराधिक मामले थे, हालांकि चुनाव लड़ने वालों में इसका प्रतिशत कहीं ज्यादा था. इस बार भी दागी और बागी चुनाव समर में कूदने के लिए तैयार हैं.

राजस्थान में विधानसभा चुनाव में सत्ता का महासंग्राम जारी है. इस महासंग्राम को जीतने के लिए राजनीतिक दल साम दाम दंड भेद अपनाते रहे हैं. राजनीतिक दल हर हाल में चुनाव जीतने के लिए दागियों और बागियों को भी सहारा लेने से नहीं चूकते हैं. ऐसे में दागी और बागी को टिकट देकर मैदान में उतार देते हैं, जो दम खम दिखाकर चुनाव जीतने को आतुर रहते हैं. बात पिछले विधानसभा चुनाव 2018 की बात की जाए तो चुने हुए 200 विधायकों में ही 46 विधायकों पर अपराधिक मामले दर्ज थे. अर्थात करीब 23 प्रतिशत पर माननीय विधायक दागी थे. वहीं अगर बात 2013 के विधानसभा चुनाव की जाए तो 200 में से 36 विधायकों अर्थात 18 प्रतिशत विधायकों ने खुद पर अपराधिक मामले होना घोषित किया था.

गंभीर आपराधिक मामले भी दर्ज

पिछले चुनाव में देखा जाए तो 28 विधायकाें अर्थात 14 प्रतिशत पर गंभीर प्रकृति के केसों में वांछित हैं. इनमें हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण आदि से सम्बंधित अपराध शामिल हैं. इसी तरह 2013, राजस्थान विधानसभा चुनाव में 199 में से 19 (10 प्रतिशत) विधायकों ने अपने ऊपर गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए थे.

बागियों पर भी जीत का दांव

पिछले चुनावों की तरह कुछ इसी तरह का नजारा बागियों को लेकर भी रहता है. एक दल में टिकट नहीं मिलता है तो दूसरे दल से टिकट लेकर चुनावी मैदान में उतरते हैं. कार्यकर्ता भले ही विरोध करते हैं, लेकिन बागी चुनाव जीत भी जाते हैं. इस बार भी कांग्रेस व बीजेपी के साथ ही अन्य दलों में भी बागियों की कतार दिखाई देगी. बीजेपी की पहली सूची में ही दूसरे दलों से आकर टिकट लेने वाले चेहरे शामिल हैं.

गंभीर अपराधाें के लिए यह है मापदंड

पांच साल या उससे अधिक सजा वाले अपराध, गैरजमानती अपराध, चुनाव से सम्बंधित अपराध, सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने वाले अपराध, हमला, हत्या, अपहरण, बलात्कार से सम्बंधित अपराध. लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अपराध, महिलाओं पर अत्याचार से सम्बंधित अपराध .

लगातार बढ़े गए ''दागी''

वर्ष 2008 में 200 विधायकों में 30 अर्थात 15 प्रतिशत विधायकों पर अपराधिक केस दर्ज थे. इनमें आठ पर गंभीर मामले शामिल है

वर्ष 2013 में 200 विधायकों में 36 अर्थात 18 प्रतिशत विधायकों पर अपराधिक केस दर्ज थे. इनमें 19 पर गंभीर मामले दर्ज थे

वर्ष 2018 में 200 विधायकों में 46 अर्थात 23 प्रतिशत विधायकों पर अपराधिक केस दर्ज थे. इनमें 28 पर गंभीर किस्म के मामले दर्ज थे.

बीजेपी कांग्रेस दोनों में दागी

एक मंत्री ने अपने पर हत्या का मामले में शामिल होने, कांग्रेस के चार विधायकाें ने हत्या के प्रयास में नामजद होना बताया था.

कांग्रेस से 99 में से 25 तथा बीजेपी के 73 विधायकों में से 12 बसपा के छह में से दो विधायकों पर अपराधिक मामले दर्ज थे.

इनमें भी कांग्रेस के 16 विधायक, बीजेपी के 7 तथा बसपा के दोनों विधायकों पर दर्ज मामले गंभीर श्रेणी के थे.

ऐसे में साफ है कि हर बार दागी और बागी दोनों ही चुनाव मैदान में उतरते हैं और जनता भी इनको ही चुनती है. कारण जो भी हो लेकिन लोकतंत्र में यह काला स्याह चेहरा कब बदलेगा या फिर स्वच्छ राजनीतिक करने वाले लोग कब आगे आएंगे, क्या आने वाले समय में यह तस्वीर बदलेगी ?

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