Sachin Pilot के पिता राजेश पायलट का असली नाम क्या था, राजस्थान में क्यों बदलना पड़ा नाम
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Sachin Pilot के पिता राजेश पायलट का असली नाम क्या था, राजस्थान में क्यों बदलना पड़ा नाम

Rajesh Pilot real Name: सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट की आज 11 जून को पुण्यतिथि है. जयपुर और दौसा समेत पूरे राजस्थान में अलग-अलग कार्यक्रम हो रहे है. राजेश पायलट का असली नाम क्या था. उनको अपना नाम बदलना क्यों पड़ा. क्या है इसके पीछे का सियासी किस्सा. जानिए.

Rajesh Pilot and Sachin pilot

Rajesh Pilot real Name: राजस्थान में पिछले 4 दशक से पायलट परिवार सियासत में अपनी एक अलग जगह रखता है. सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट की आज 11 जून को पुण्यतिथि है. इसी दिन साल 2002 में सड़क हादसे में उनका निधन हो गया था. सचिन पायलट के नेतृत्व में दौसा में कार्यक्रम भी रखा गया है. इस कार्यक्रम में ममता भूपेश से लेकर प्रतापसिंह खाचरियावास, हेमाराम चौधरी, बृजेंद्र ओला, परसादीलाल मीणा शामिल हुए. विधायकों में खिलाड़ीलाल बैरवा, मुकेश भाकर, ओमप्रकाश हुड़ला भी शामिल हुए.

राजेश पायलट का असली नाम

राजेश पायलट मूल रूप से उत्तर प्रदेश में नोएडा के वैदपुरा गांव के रहने वाले थे. वे इंडियन एयरफोर्स में पायलट थे. 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में भी भाग लिया था. वे गांधी परिवार के करीबी थे. तो पार्टी की ओर से उनको साल 1980 में राजस्थान के भरतपुर चुनाव लड़ने भेजा गया. गुर्जर समाज से ताल्लुक रखने वाले राजेश पायलट का असली नाम राजेश्वर प्रसाद बिधुड़ी था. 

राजेश पायलट ने नाम क्यों बदला

ये बात साल 1980 की है. राजीव गांधी के कहने पर राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी राजस्थान के भरतपुर पहुंचे. दिल्ली से पार्टी कार्यकर्ताओं को ये संदेश पहुंचा था कि कोई पायलट यहां चुनाव लड़ने आ रहा है. वे यहां पहुंचे तो कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी दिखी. कार्यकर्ताओं को लगा कि ये वो पायलट नहीं है जिसके बारे में दिल्ली से हमें संदेश मिला था. फोन पर राजीव गांधी से बात हुई. राजीव गांधी ने ये सलाह दी कि आप कचहरी जाकर तुरंत अपना नाम बदल दो. राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी से बदलकर नाम राजेश पायलट कर दिया गया.

भरतपुर शहर की दीवारें नाम से भरी

राजेश पायलट ने नाम बदलने के बाद शाम में पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक ली. ये तय हुआ कि रातों रात भरतपुर शहर की हर दीवार पर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में राजेश पायलट नाम लिखा जाएगा. ताकि हर आदमी के दिमाग में ये नाम बैठ जाए. उस दौर में प्रचार-प्रसार के लिए दीवारों पर ही पार्टियों और प्रत्याशियों का प्रचार होता था.

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