धरती पर पहला वट वृक्ष लेकर आई थीं माता पिपलाज, राजसमंद में मौजूद है खास मंदिर
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धरती पर पहला वट वृक्ष लेकर आई थीं माता पिपलाज, राजसमंद में मौजूद है खास मंदिर

 Chaitra Navratri 2024: राजस्थान के राजसमंद में खमनोर के पास देवल उनवास में मां पिपलाज का भव्य मंदिर है. इस मंदिर से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं. पिपलाज माता मंदिर से एक किमी दूरी पर वड़ल्या हिंदवा नामक स्थान है. इस वट वृक्ष के नीचे वड़ल्या हिंदवा नाम से माताजी की प्रतिमा स्थापित है. 

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Rajsamand News: राजस्थान में मां दुर्गा के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां पर भक्तों द्वारा मांगी गई हर मुराद होती है. इन मंदिरों में भक्तों की प्रगाढ़ आस्था है. वहीं, राजसमंद जिले में एक ऐसा चमत्कारी मंदिर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वहां मौजूद वट वृक्ष के नीचे नौ देवियां झूला झूलती थी. राजसमंद जिले के खमनोर क्षेत्र में पिपलाज माता या वडल्या माता का प्रसिद्ध स्थान स्थापित है. मेवाड़ के लोक नृत्य गवरी में भी वड़ल्या हिंदवा का प्रसंग भी इसी स्थान को लेकर आता है. मान्यता है कि पाताल से राजा वासु के उद्यान से यह वट वृक्ष लेकर आए थे.

खमनोर के पास देवल उनवास में मां पिपलाज का भव्य मंदिर है. इस मंदिर से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं. पिपलाज माता मंदिर से एक किमी दूरी पर वड़ल्या हिंदवा नामक स्थान है. इस वट वृक्ष के नीचे वड़ल्या हिंदवा नाम से माताजी की प्रतिमा स्थापित है. ग्रामीणों के अनुसार यह वट वृक्ष धरती का पहला वट वृक्ष है. किवदंती है कि इस वृक्ष के नीचे नौ देवियां खेला करती थी. इसी स्थान के नाम से मेवाड़ का पारंपरिक गवरी नृत्य की शुरुआत हुई. वड़ल्या हिंदवा का अर्थ है कि वट वृक्ष के नीचे देवियां झूला झूलती हैं.

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उनवास निवासी कृष्णवल्लभ श्रीमाली और ललित श्रीमाली ने बताया कि मंदिर की स्थापना करीब 11वीं शताब्दी में हुई. मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार विक्रम संवत 1,016 में तत्कालीन मेवाड़ नरेश आलू-अल्लट ने मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया था. यह बात मंदिर में लगे शिलालेख से स्पष्ट होती है. 

दूध-दही से सींचा वट वृक्ष
दूध-दही से सिंचा वटवृक्ष के नीचे नौ देवियां यहां झूला झूलती थी. अकाल के समय देवी शक्तियों ने पाताल में राजा वासु से युद्ध कर वहां उद्यान से वट वृक्ष पृथ्वी पर लाए. पानी के अभाव में दूध, दही से सिंचाई करके इस वट वृक्ष बड़ा किया और इस वट वृक्ष के नीचे नौ देवियां झूला झूलती थी.

लोक नृत्य गवरी में भी इस प्रसंग का मंचन
मेवाड़ के लोकनृत्य गवरी में वड़ल्या हिंदवा के प्रसंग का मंचन किया जाता है. यह प्रसंग उनवास के ही पीपलाज माता से जुड़ा हुआ है. गवरी में पृथ्वी में अकाल पड़ने पर राजा वासु के उद्यान से वट वृक्ष लाने और वरजू कांजरी का खेल दिखाया जाता है. 

नवरात्रि में माताजी की है होती है पूजा-अर्चना 
वट वृक्ष की कोठर में स्थापित वड़ल्या हिंदवा माताजी पर नवरात्रि में माता की पूजा अर्चना होती है, जबकि एक किमी दूर देवल उनवास में पिपलाज माता मंदिर नवरात्रि में नौ ही दिन शक्ति की अराधना, पूजा-पाठ, गरबा आदि कार्यक्रम होते हैं. 

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