राजस्थान में प्रकट हो चुके हैं 'कंबल वाले बाबा',काले कम्बल से कर देते हैं नासूर का इलाज!
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राजस्थान में प्रकट हो चुके हैं 'कंबल वाले बाबा',काले कम्बल से कर देते हैं नासूर का इलाज!

कम्बल वाले बाबा उर्फ गणेश भाई ने यह भी बताया कि 15 दिन तक एक जगह पर शिविर रहता है. जिसमें लगभग 20 हजार से ज्यादा लोग आते हैं उनमें लगभग 5 हजार मरीज होते हैं. 

राजस्थान में प्रकट हो चुके हैं 'कंबल वाले बाबा',काले कम्बल से कर देते हैं नासूर का इलाज!

Rajsamand: राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित कुंवारिया थाना इलाके के फियावड़ी में कम्बल वाले बाबा उर्फ गणेश भाई अपने चमत्कारी कम्बल से लोगों के उपचार करने का दावा कर रहे हैं. कम्बल वाले बाबा अपना काला कम्बल शिविर में मौजूद मरीज के उपर फेरते हैं और 5 दिन शिविर में रूकने की बात कहते है. बता दें कि इन कम्बल वाले बाबा के पास कई प्रदेशों के लोग अपना उपचार करवाने के लिए आ रहे हैं और 5 से ​10 दिन तक वहां पर ही यानि जंगल में टेंट में रहने को मजबूर रहते हैं और मरीज के साथ आ रहे परिजन उम्मीद लगा के बैठे रहते हैं कि हमें भी मर्ज से छुटकारा मिलेगा.

वहीं जब इस शिविर में जी मीडिया की टीम पहुंची तो वहां पर देखा कि हजारों की तादाद में लोग हाईवे के पास स्थित फियावड़ी के रोड किनारे एकांत जगह यानि खेत में अलग अलग टूकड़ों में शिविर लगा हुआ है. जी मीडिया की टीम इस कम्बल वाले बाबा उर्फ गणेश भाई की हकीकत जानने के लिए शिविर के सभी भागों में पहुंची और वहां मौजूद लोगों से विस्तार के साथ कम्बल वाले बाबा से भी बात की. शिविर में जैसे ही जी मीडिया की टीम पहुंची तो वहां से पता चला कि बाबा के उपचार करने का समय दोपहर 12 बजे का है. इसके बाद कम्बल वाले बाबा को ढूंढते हुए उनकी ​कुटिया में पहुंचे जहां पर वहां भोजन कर रहे थे. ऐसे जब उनसे बात की गई तो उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्रा और राजस्थान में शिविर लगा चुका हूं.

उन्होंने बताया कि राजस्थान में पूर्व में पाली, सिरोही, चित्तोड़गढ़ में शिविर लगा चुका हूं अभी यह मेरा राजसमंद जिले में दूसरा शिविर है.पहला शिविर चारभुजा में लगाया था और अब दूसरा शिविर कुंवारिया के फियावड़ी में लगा है.  इसके बाद मेरा बाड़मेर में शिविर लगाने का कार्यक्रम है. कम्बल वाले बाबा उर्फ गणेश भाई ने यह भी बताया कि 15 दिन तक एक जगह पर शिविर रहता है. जिसमें लगभग 20 हजार से ज्यादा लोग आते हैं उनमें लगभग 5 हजार मरीज होते हैं. इसके बाद जी मीडिया की टीम ने वहां आए लोगों से बात की कई लोगों ने कहा कि 5 दिन रूकने के बाद भी हमें कोई आराम नहीं मिला है. वहीं जी मीडिया को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज निवासी सुनील पासवान ने बताया कि बाबाजी का शिविर मुझे समझ नहीं आ रहा है और मुझे किसी तरह का कोई आराम नहीं मिल रहा है.उन्होंने बताया कि एक जगह और बाबाजी का शिविर लगा था वहां से यह चले गए थे या भाग गए थे ये तो इन्हें ही पता है अब मैं फिर उम्मीद लगाकर राजसमंद आया लेकिन यहां पर भी कुछ समझ नहीं आ रहा है.

इसके बाद मध्यप्रदेश निवासी रामसिंह से बात की गई तो उन्हेंने बताया कि मैं मेरे बच्चे को यहां पर लया था जो कि चल नहीं पाता है 5 दिन शिविर में रूकने के बाद थोड़ा फर्क महसूस हुआ है. इसके बाद शिविर के भंडारे वाले जगह पर पहुंचे तो वहां पर देखा कि शिविर में आने वाले लोगों के लिए शाम के खाने की व्यवस्था हो रही है. जब वहां पर पूछताछ की गई तो बताया कि भंडारा शाम को 6 बजे से शुरू हो जाता है और रात तक चलता है यहां पर आने वाले सभी लोगों के लिए निशुल्क भोजन होता है. इसके बाद जब पूरी जांच पड़ताल की गई तो पता चला कि सुबह का भोजन सभी अपने अपने रूपए से करना होता है जिसके लिए कैंटीन बनाई हुई और 40 रूपए देकर खाना खा सकते हैं ऐसे कई लोग अपने खाने की व्यवस्था खुद ही करते हुए नजर आए.

हकीकत: जी मीडिया के कैमरे में शिविर का कुछ ऐसा भाग ​भी कैद हुआ जो समझदार को इशारा ही काफी है. बता दें कि शिविर में जब जी मीडिया की टीम ने जायजा लिया तो वहां पर पता चला कि शिविर में उपचार करवाने आने वालों के लिए शिविर में जगह जगह दान पेट भी रखी हुई है जहां पर हजारों की संख्या में आने वाले लोग 100 रूपए से लेकर 500 रूपए तक दान कर रहे हैं. तो वहीं उपचार के नाम पर कम्बल वाले बाबा ने हवन की भी व्यवस्था की हुई जहां पर इसका अलग से ​कैंप लगा हुआ है और यहां पर लगभग 9 से 10 हवन कुंड बने हुए है और हवन करने की फीस 500 रूपए तय की हुई है.

एक हवन कुंड के पास लगभग 8 से 10 लोगों को बैठाया जाता है. बाबा के इस शिविर में कम्बल वाले बाबा उर्फ गणेश भाई के साथ उनकी दुकानें भी चलती है.जिसमें परचून का सामान भी उपलब्ध होता है और यहां पर आने वाले लोगों को पानी भी खरीदकर पीना होता है. ऐसे में गांव के कुछ लोगों ने कम्बल वाले बाबा के शिविर को दुकान का नाम भी दिया है. 

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