Rajsamand News: घटते वन क्षेत्र और पेड़ों की कमी को दूर करने के लिए सरकार अपने स्तर पर कई तरह के प्रयास कर रही है, लेकिन पिछले 6 वर्षों से जंगलों को घना बनाने और जरूरतमंद पेड़ों की संख्या बढ़ाने के लिए केन्या देश की तर्ज पर राजसमंद जिले में महिला मंडल के नेतृत्व में महिलाएं प्रेरणादायक पहल कर रही हैं. पिछले 6 वर्षों में ये महिलाएं लाखों सीड्स बॉल तैयार कर चुकी हैं.
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Rajsamand News: राजस्थान के राजसमंद में घटते वन क्षेत्रों और पेड़ों की कमी को दूर करने के लिए सरकार अपने स्तर पर कई तरह के प्रयास और उपाय कर रही है, लेकिन पिछले 6 वर्षों से जंगलों को घना बनाने और जरुरतमंद पेड़ों की संख्या बढ़ाने के लिए केन्या देश की तर्ज पर राजसमंद जिले के देवगढ़ उपखंड में महिला मंडल के नेतृत्व में जल, जमीन, जंगल और लुप्त होती पक्षियों की प्रजातियों के लिए महिलाएं प्रेरणादायक पहल कर रही हैं.
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी प्रशासनिक उपखंड अधिकारी देवगढ़ संजीव खेदर और उपखंड अधिकारी करेडा बंशीधर योगी और एक निजी संस्थान राजसमंद की अध्यक्ष भावना पालीवाल के साथ दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रो में पैदल-पैदल कच्चे पगडंडी मार्ग घने जंगल से गुजरते हुए 800 से अधिक सीढ़ीयां चढ़ कर 2500 फीट अरावली की दूसरी सबसे ऊंची शिखर के सेंडमाता मंदिर पर पहुंचकर जंगल और पहाडियों की चारों दिशाओं में ऊंचे इलाकों पर जहां पहुंच नहीं थी.
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वहां गुलेल के माध्यम से 10 हजार से अधिक बीजो की गेंद को छोड़ा और कई जगह पर खड़ा खोद कर सीड्स बॉल को अंदर दबा दिया. इस वर्ष सीड्स बॉल बनाने और उनके छिड़काव के लिए राजसमंद जिला पर्यावरण प्रभारी मीनल पालीवाल, देवगढ़ से अवंतिका शर्मा, आमेट प्रभारी भावना सुखवाल सहित कई महिलाओं और युवतियों ने सहयोग किया.
भीम प्रभारी विजय लक्ष्मी धाभाई, रेलमगरा प्रभारी हेमलता पालीवाल, किरण गोस्वामी, अरीना, हंशिका जांगिड़, हिमांशी कंसारा, हर्षिता सेन, उर्मिला रत्नावत, ज्योति चुंडावत, संजू चुंडावत, डाली गुर्जर, शिवानी कंवर, प्रिया गहलोत, विष्णु कंवर कृष्णा, किरण, बबिता रावत, दर्शना पालीवाल ने सहयोग किया. अवंतिका शर्मा ने बताया कि ये महिलाएं बरसात आने से पहले हजारों सीड बॉल तैयार करती हैं ताकि ये बीज बरसात में पौधों का आकार लेकर बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन का स्त्रोत बने.
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पिछले एक माह में 50 हजार से अधिक सीड्स बॉल तैयार किए जा चुके हैं. सामाजिक कार्यकर्ता भावना पालीवाल ने बताया कि संस्था पिछले 6 साल से सीड्स बॉल टेक्निक का प्रयोग कर रही है. बारिश के समय सक्सेस रेट 70 प्रतिशत से भी ज्यादा रहता है. 2019 में 10 हजार, 2020 में 17 हजार, 2021 में 25000 और 2022 में 30000, 2023 में 40000 सीड्स बॉल का छिड़काव भीम, देवगढ़, आमेट और कुम्भलगढ़ में कर चुके हैं और इस वर्ष 50 हजार से अधिक सीड्स बॉल छोड़ने का लक्ष्य है.
इन महिलाओं के पास कोई बड़ा ड्रोन और संसाधन नहीं लेकिन हिम्मत और जज्बा उससे भी बड़ा है. पिछले कई सालों से गुलेल के माध्यम से और खड्डे खोदकर कई बीजों का छिड़काव किया है. मंडल की महिलाओं का कहना है कि अगर इन्हें कहीं से ड्रोन या ऐसा कोई संसाधन मिले, तो पूरे संभाग में इस प्रकार का कार्य करना चाहती हैं.
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सीड्स बॉल के द्वारा मुख्य तौर पर नीम, पीपल, बबूल, रोहिडा, अमलताश, करंज, बड़, शीशम तथा जामुन आदि के बीज थे. छिड़काव से पहले इन सीड्स बॉल को भिगोकर रखा गया, ताकि थोड़ी सी भी मिट्टी मिलते ही यह बीज जड़ पकड़ लें. बता दें कि सीड बॉल तैयार करने के लिए सबसे पहले बीज एकत्रित करना होगा. उपजाऊ मिट्टी के साथ गोबर या कम्पोस्ट खाद की बराबर मात्रा में मिश्रण तैयार कर गीला किया जाता है. उसे लड्डू के रूप में बनाकर बीचों बीच बीज डालकर बंद कर दिया जाता है.
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ऐसे जगह रखकर सुखाया जाता है, जहां सूरज की किरण न पहुंच सके. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि धूप की किरण नहीं पड़ने से गीली मिट्टी के बीच में रहने के बाद भी बीज अंकुरित नहीं होता है. सीड बॉल को पूर्ण रूप से सूख जाने पर अपने हिसाब से खाली पड़े स्थानों पर बारिश के मौसम में छोड़ दिया जाता है. मिट्टी जैसे ही गीली होती है बीज अंकुरित हो जाएगा और नए पौधे तैयार हो जाएंगे.